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मुझे मदहोश करना और दीवाना बना देना

शाह तक़ी राज़ बरेलवी

मुझे मदहोश करना और दीवाना बना देना

शाह तक़ी राज़ बरेलवी

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    मुझे मदहोश करना और दीवाना बना देना

    मिला कर आँख अफ़्साना दर अफ़्साना बना देना

    तुम्हारी मस्त नज़रों में है इक तूफ़ान-ए-सर-मस्ती

    तुम्हारा खेल है क़तरा को मय-ख़ाना बना देना

    ग़रज़ ये है सुकूँ हासिल हो मुझ को ज़माने में

    जो अपना बन पाऊँ मैं तो बेगाना बना देना

    मुझे अपना गदा अपना भिकारी अपना सौदाई

    नियाज़ाना नहीं तो बे-नियाज़ाना बना देना

    तमन्ना है मगर इक 'राज़' की सूरत से है दिल में

    अभी तो रिंद हूँ फिर पीर-ए-मय-ख़ाना बना देना

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