जन्म कनहैया-जी
है रीत जन्म की यूँ होती जिस घर में बाला होता है
उस मंडल में हर मन भीतर सुख चैन दो-बाला होता है
सब बात बिथा की भूले हैं जब भोला-भाला होता है
आनंद मुंदेले बाजत हैं जब भवन उजाला होता है
यूँ नेक नक्षत्तर लेते हैं इस दुनिया में संसार जन्म
पर उन के और ही लच्छन हैं जब लेते हैं अवतार जन्म
सुभ साअ'त से यूँ दुनिया में अवतार गर्भ में आते हैं
जो नार दमन हैं ध्यान भले सब उन का भेद बताते हैं
वह नेक महूरत से जिस दम इस सिष्ट में जन्मे जाते हैं
जो लीला रचनी होती है वह रूप ये जा दिखलाते हैं
यूँ देखने में और कहने में वह रूप तो बाले होते हैं
पर बाले ही पन में उन के अब कार निराले होते हैं
ये बात कही जो मैं ने अब यूँ इस को तू अब ध्यान लगा
है पंडित पुस्तक बीच लिखा था कंस जो राजा मथुरा का
धन ढेर बहुत बल तेज निपट सामान और डील बड़ा
गज और तुरंग अच्छे नीके अम्बारी होवे ज़ीन सजा
जब बन-ठन ऊँचे हस्ती पर वह पापी आन निकलता था
सब साज़ झला-झल करता था और संग कटक दिल चलता था
एक रोज़ जो अपने भुज बल पर वह कंस बहुत मग़रूर हुआ
और हँस कर बोला दुनिया में है दूजा कौन बली मुझ सा
था एक पुरुष वह यूँ बोला तू भूला अपने बल पर क्या
जो तेरा मारनहारा है सो वह भी जन्म अब लेवेगा
वह बोला मथुरा नगरी में एक रोज़ जन्म वह पावेगा
जब स्याना होगा एक पल में वह तुझ को मार गिरावेगा
वह ऐसे ऐसे कितने ही जो बोल गरब के कहता था
सब लोग सभा के सुनते थे क्या ताब जो बोले कोई ज़रा
था एक पुरुख वह यूँ बोला तु भूला अपने बल पर क्या
जो तेरा मारनहारा है सो वह भी जन्म अब लेवेगा
तू अपने बल पर ऐ मूरख इस आन अबस बनकार लिया
वह तुझ को मार गिरा देगा यूँ जैसे भंगा मार लिया
ये बात सुनी जब कंस ने वाँ तब सुन कर उस के होश उड़े
भौमन के भीतर आन भरा और बोल गरब सगरे बिसरे
यूँ पूछा वह किस देस में हैं और कौन भवन आ कर जन्मे
कौन उस के मात-पिता होवें जो पालें उस को चाहत से
वह बोला मथुरा नगरी में एक रोज़ जन्म वह पावेगा
जब सियाना होगा तब तुझ को एक पल में मार गिराएगा
ये बात सुनाई कंस को फिर आठ लकीरें वाँ खींचीं
बसुदेव पिता का नाम कहा और देवकी माता ठहराई
उन आठ लकीरों की बातें फिर कंस को उस ने समझाएँ
सब छोरा-छोरी देवकी के हैं जग में होते आठ यूँही
जो अपनी जान बचाने का कर सोच ये उस ने फंद किया
बुलवा बसुदेव और देवकी को एक मंदिर भीतर बंद किया
इस बात को सुन कर कंस बहुत तब मन में अपने घबराया
जब नारद-मुन उस के पास गए तब उन से उस ने भेद कहा
तब नारद-मुन ने भी उस को कुछ और तरह से समझाया
फिर कंस को वाँ इस बात सिवा कुछ और न मार्ग बन आया
जो अपनी जान बचाने का कर सोच ये उस ने फंद किया
बुलवा बसुदेव और देवकी को इक मंदिर भीतर बंद किया
जब क़ैद किया उन दोनों को तब चौकी-दार दिये बिठला
एक आन न निक्सन पावें ये फिर उन सब को ये हुक्म दिया
सामान रसोई का जो था सब उन के पास दिया रखवा
और द्वार दिए उस मंदिर के तब भारी ताले भी जड़वा
हुशियार लगे यूँ रहने वाँ नित चौकी के देने हारे
क्या तब जो कोठे छज्जे पर इक आन परिंदा पर मारे
भय बैठा था जो कंस के मन वह भर कर नींद न सोता था
कुछ बात सुहाती ना उस को नित अपनी पलक भिगोता था
उस मंदिर में उन दोनों के जब कोई बालक होता था
कंस आन उसे झट मारे था मन मात-पिता का रोता था
एक मुद्दत तक उन दोनों का उस मंदिर में ये हाल रहा
जो बालक उन के घर जन्मा सो मारता वह चंडाल रहा
फिर आया वाँ एक वक़्त ऐसा जो आये गर्भ में मन-मोहन
गोपाल मनोहर मुरलीधर श्री-कृष्ण किशोरन कमल-नयन
घनश्याम मुरारी बनवारी गिरधारी सुन्दर श्याम-बरन
प्रभु-नाथ बिहारी कान्ह-लला सुखदाई जग के दुख भंजन
जब साअ'त परगट होने की वाँ आई मुकुट-धरैया की
अब आगे बात जन्म की है जय बोलो कृष्ण-कन्हैया की
था नेक महीना भादों का और दिन बुध गिनती आठन की
फिर आधी रात हुई जिस दम और हुआ नछत्तर रोहिनी भी
शुभ साअ'त नेक मुहूरत से वाँ जन्मे आकर कृष्ण जभी
उस मंदिर के अँधियारे में जो और उजाली आन भरी
बसुदेव से बोली देवकी-जी मत डर भूमन में घेर करो
इस बालक को तुम गोकुल में ले पहुँचो और मत देर करो
जो उस के तुम ले जाने में याँ तक टक भी देर लगाओगे
वह दुष्ट उसे भी मारेगा पचताते ही रह जाओगे
इस आन सँभल कर तुम इस को जो गोकुल में पहुँचाओगे
इस बात में ये फल पाओगे जो इस की जान बचाओगे
वाँ गोकुल-बाशी जो इस को ले अपनी गोद सँभालेगा
कुछ नाम वह इस का रख लेगा और मोहर दया से पाएगा
जो हाल ये वाँ जा पहुँचेगा तो इस का जी बच जावेगा
जो कर्म लिखी है तो फिर भी मुख हम को आन दिखावेगा
जिस घर के बीच पलेगा ये वह घर हम को बतलावेगा
हम इस से मिलने जावेंगे ये हम से मिलने आवेगा
ये बात न थी मालूम उन्हें ये बालक जग निस्तारेगा
कब मार सकेगा कंस इसे ये कंस को आपी मारेगा
है आधी रात अभी तो हाँ ले जाओ इसे तुम अपने हाल इधर
लिपटा लो अपनी छाती से दे आओ जा के और के घर
मन बीच उन्हों के था डर ये दिन होवेगा तो कंस आ कर
इक आन में उस को मारेगा रह जावेंगे हम आँसू भर
ये बात न थी मालूम उन्हें ये बालक जग निस्तारेगा
कब मार सकेगा कंस उसे ये कंस को भी आपी मारेगा
जब देवकी ने बसुदेव-जी से वाँ रो-रो कर ये बात कही
वह बोले क्यूँकर ले जाऊँ है बाहर तो चौकी बैठी
और द्वार लगे हैं ताले कुल कुछ बात नहीं मेरे बस की
तब देवकी बोलीं ले जाओ मन ईश्वर की रख आस अभी
वह बालक को जब ले निकले सब साँकड़ पट पट छूट गए
थे ताले जितने द्वार लगे उस आन झड़-झड़ टूट गये
जब आए चौकी-दारों में तब वाँ भी ये सूरत देखी
सब सोते पाए उस साअ'त हर आन जो देते थे चौकी
जब सोता देखा उन सब को हो निर्भय निकले वाँ से भी
फिर आये जमुना पास ज्यूँ हीं जमुना-जी देखी बहुत चढ़ी
ये साच हुआ मन बीच उन्हें पैर इस जल में कैसे धरिये
है रैन अँधेरी सँग बालक इस बिपता में अब क्या करिए
यूँ मन में ठहरा फिर चलिये फिर आप ही मन मज़बूत हुआ
भगवान दया पर आस लगा वाँ जमुना-जी पर ध्यान धरा
ये ज्यूँ ज्यूँ पाँव बढ़ाते थे वह पानी चढ़ता आता था
ये बात लगी जब होने वाँ बसुदेव गये मन में घबरा
तब पाँव बढ़ावे बालक ने जो आप से और भीगे जल में
जब जमुना ने पद चूम लिये जा पहुँचे पार वह एक पल में
जब आन बिराजे गोकुल में सब फाटक वाँ भी पाय खुले
तब वाँ से चलते-चलते वह फिर नंद के द्वारे आ पहुँचे
वाँ नंद-महल के द्वारे भी सब देखे पट पट दूर खड़े
जो चौकी वाले सोते थे अब कौन इन्हें रोके-टोके
जब बीच महल के जा पहुँचे सब सोते वाँ घर वाले थे
हर चार तरफ़ उजयाली थी ज्यूँ साँझ में देवे बाले थे
एक और अचम्भा ये देखो जो रात जन्म श्री-कृष्ण की थी
उस रात यशोदा के घर में थी यारो जन्मी एक लड़की
वाँ सोते देख जसोदा को और बदली कर उस बालक की
उस लड़की को वह आप उठा ले निकले आये मथुरा-जी
जब लड़की लाए मंदिर में सब ताले मंदिर लाग उठे
जो चौकी देने वाले थे सो वह भी उस दम जाग उठे
जब भोर हुई तब घबरा कर सुध कंस ने ली उस मंदिर की
जब ताले खुलवा बीच गया तब लड़की जन्मी एक देखी
ले हाथ फिराया चक्कर दे तो पटके वह बिन पटके ही
यूँ जैसे बिजली कौंदे है जठ छूट हवा पर जा पहुँची
ये कहती निकली ऐ मूरख क्या तू ने सोच विचारा है
वह जीता अब तो सीस मुकुट जो तेरा मारनहारा है
जब कंस ने वाँ ये बात सुनी मन बीच बहुत सा लजियाया
जो कारज होने वाला है वह टाले से कब है टलता
सौ फ़िक्र करो सौ पेच करो सौ बात सुनाओ हासिल क्या
हर आन वही याँ होता है जो माथे के है बीच लिखा
हैं कहते बुद्ध जिसे अब याँ वह सोच बड़े ठहराति है
तक़दीर के आगे पर यारो तदबीर नहीं काम आती है
अब नंद के घर की बात सुनो वाँ एक अचम्भा ये ठहरा
जो रात को जन्मी थी लड़की और भोर को देखा तो लड़का
घोड़ा नालें छूटीं नाच हुआ और नौबत का गुल शोर मचा
फिर कृष्ण गरग ने नाम रखा सब कम्बे के मिल बैठे आ
नंद और जसोदा और कवात करने वाँ हेरा फेर लगे
पकवान मिठाई मेवों के हर नारी आगे ढेर लगे
सब नारी आईं गोने की और पार-पड़ोसन आ बैठीं
कुछ ढोल मजेरे लाती थीं कुछ गीत जचा के गाती थीं
कुछ हर-दम मुख इस बालक का बलिहारी हो कर देख रहीं
कुछ थाल पंजेरी के रखतीं कुछ सोंठ सठोरा करती थीं
कुछ कहती थीं हम बैठे हैं नेग आज का दिन का लेने को
कुछ कहती थीं हम तो आए हैं नंद बिधावा देने को
कोई घुटी बैठी गर्म करे कोई डाले उस्पंद और भूसी
कोई लाई हँसुली और खड़वे कोई कुर्ता टोपी मेवः घी
कोई देखे रूप उस बालक का कोई माथा चूमे मेहर-भरी
कोई भवों की तारीफ़ करे कोई आँखों की कोई पलकों की
कोई कहती उम्र बड़ी होवे ऐ बीर तिहारे बालक की
कोई कहती बियाह बहू लाओ उस आस मुरादों वाले की
कोई कहती बालक ख़ूब हुआ ऐ बहना तेरी नेक-रिती
ये बाले उन को मिलते हैं जो दुनिया में हैं बड़भागी
इस कुम्बे की भी शान बढ़ी और भाग बड़े इस घर के भी
ये बातें सब की सुन सुन कर ये बात जसोदा कहती थी
ऐ बीर ये बालक जो ऐसा अब मेरे घर में जन्मा हैं
कुछ और कहूँ मैं क्या तुम से भगवान की मो पे कृपा है
थी कोने कोने ख़ुश-वक़्ती और तबले ताल खटकते थे
कोई नाच रही कोई कूद रही कोई हँस हँस के कुछ रूप सजे
हर चार-तरफ़ आनंदें थीं वाँ घर में नंद जसोदा के
कुछ आँगन बीच बिराजैं थी कोई बैठी कोठे और छज्जे
सो ख़ूबी और ख़ुश-हाली ही दिखलाती थी सामान खड़ी
सच बात है बालक होने की है दुनिया में आनंद बड़ी
फिर और ख़ुशी की बात हुई जब रीत हुई दुकानों की
रखवाई वद्ध की मटकी फिर और डाली हल्दी बहुतेरी
ये उस पर फेंके भर-भर कर वह उस पर डाले घड़ी घड़ी
कोई पूजे मुख और बाहिन को कोई सखरनी फेंके और मुठड़ी
इस वद्ध की भी रंग-रलियों में रूप और हुआ नर-नारी का
और तन की अबरन यूँ भीगे जूँ रंग हो केसर क्यारी का
सुख मंडल में ये धूम मची और हर नेगी और जोगी भी
कुछ नाचें भाँड भीगते भी कुछ हिजड़े पावें बेल बड़ी
आनंद बिधावे बाज रहे नरसंगे सरना और तरई
रंगीन सुनहरे पालने भी ले हाथ खड़े कितने परभी
हर आन उठाती थीं मानिक क्या गिनती रूपे सोने की
नंद और जसोदा ने ऐसी की शादी बालक होने की
जो नेगी जोगी थे उन को उस आन निपट ख़ुश-हाल किया
पहराए बागे रेशम के और ज़र भी बख़्शा बहतेरा
और जितने नाचने वाले थे अस्बाब उन्हें भी ख़ूब दिया
मेहमान जो घर में आए थे सब उन का भी आदर मान किया
दिन-रात छुट्टी होने तक मन ख़ुश-दिल लोग-लगानी का
भर थाल रूपे और मोहरें दीं जब नेग चुकाया दाई का
नंद और जसोदा बालक को वाँ हाथों छाँव में रखते थे
नित प्यार करें तन-मन वारें सुथरे अबरन गहने नीके
जी बहलाते मन परचाते और ख़ूब खिलौने मंगवाते
हर आन झुलाते पालने में वह ईधर और उधर बैठे
कर याद 'नज़ीर' अब हर साअ'त उस पालने और उस झूले की
आनंद से बैठो चैन करो जै बोलो कान्ह झँडूले की
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