मक्तूब नंबर 3
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम
अल्लाहुस्समद, मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन, अल्लाह पाक आपके मर्तबे बुलंद रखे।
इस गुनहगार फ़क़ीर मुईनुद्दीन संजरी की तरफ़ से ख़ुशी-ओ-ख़ुर्रमी-आमेज़ उन्स-ओ-मुहब्बत भरा सलाम हो। मक़्सूद ये कि ता-दम-ए-तहरीर सेहत-ए-ज़ाहिरी के सबब मशकूर हूँ। अल्लाह पाक आपको सेहत-ए-दारैन अ’ता फ़रमाए।
भाई ! मेरे शैख़ ख़्वाजा उस्मान हारूनी फ़रमाते हैं सिवाए अहल-ए-मा’रिफ़त के और किसी को इ’श्क़ के रुमूज़ात (भेदों) से वाक़िफ़ नहीं करना चाहिए। ख़्वाजा शैख़ सा’दी ने उनसे से पूछा कि अहल-ए-मा’रिफ़त को कैसे पहचान सकते हैं तो ख़्वाजा साहिब ने फ़रमाया कि अहल-ए-मा’रिफ़त की अ’लामत तर्क है जिसमें तर्क होगी, यक़ीन जानो कि वो अहल-ए-मा’रिफ़त है और उसे ख़ुदा-शनासी हासिल है और जिसमें तर्क नहीं, उसमें मा’रिफ़त की बू भी नहीं। ये अच्छी तरह यक़ीन कर लो कि कलिमा-ए-शहादत और नफ़ी इस्बात हक़ तआ’ला की मा’रिफ़त है। माल-ओ-मर्तबा ने बहुत लोगों को सीधी राह से गुमराह किया और कर रहे हैं। ये बन्दों के ख़ुदा बन रहे हैं बहुत लोग जाह-ओ-माल की परस्तिश करते हैं।
जिसने माल-ओ-जाह की मोहब्बत को दिल से निकाल दिया, उसने गोया पूरी नफ़ी कर दी और जिसे हक़ तआ’ला की मा’रिफ़त हासिल हो गई उसने पूरा इस्बात कर लिया और ये बात ला-इलाहा इल्लल्लाह के कहने और उस पर अ’मल करने से हासिल होती है ।
वस्सलाम
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