संपूर्ण
ई-पुस्तक4
परिचय
ब्लॉग9
फ़ारसी कलाम8
फ़ारसी सूफ़ी काव्य1
सूफ़ी पत्र7
सूफ़ी उद्धरण150
मल्फ़ूज़5
ना'त-ओ-मनक़बत1
क़िता'1
ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के सूफ़ी पत्र
मक्तूब नंबर 4
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम हक़ाएक़-ओ-मआ’रिफ़ से वाक़िफ़, रब्बुल आ’रिफ़ीन के आ’शिक़ मेरे भाई क़ुतुबुददीन… वाज़ेह रहे कि इन्सानों में सबसे दाना या ज्ञानी फ़क़ीर लोग हैं, जिन्हों ने दरवेशी और ना-मुरादी को इख़्तियार कर रखा है, क्योंकि हर एक मुराद में
मक्तूब नंबर 1
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम मेरे प्यारे, मेरे क़ल्बी दोस्त, मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन देहलवी अल्लाह तआ’ला आपको दोनों जहाँ की सआ’दत अ’ता फ़रमाए। बंदा-ए-मिस्कीन मुई’नुद्दीन की तरफ़ से सलाम-ए-मस्नूना के बा’द वाज़ेह हो कि असरार-ए-इलाही के चंद निकात मैं
मक्तूब नंबर 2
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम “मेरे भाई ख़्वाजा क़ुतुबुद्दीन देहलवी, अल्लाह तआ’ला दोनों जहान में आपको सआ’दत नसीब करे”। सलाम-ए-मस्नूना के बा’द ये मक़्सूद है कि एक रोज़ हज़रत उ’स्मान हारूनी की ख़िदमत में ख़्वाजा नज्मुद्दीन साहिब रहमतुल्लाहि अ’लैह, सोग़रा
मक्तूब नंबर 6
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम मेरे भाई क़ुतुबूद्दीन, अल्लाह पाक आपको सलामत रखे ! एक रोज़ मेरे शैख़-साहिब रहमतुल्लाह अ’लैह ने नफ़ी-ओ-इस्बात के कलमे की बाबत क्या ही अच्छा फ़रमाया कि नफ़ी अपने आपको ना देखना है और इस्बात अल्लाह पाक को देखना है क्योंकि
मक्तूब नंबर 5
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम वासिलों के बर्गुज़ीदा। रब्बुल-आ’लमीन के आ’शिक़’ मेरे भाई क़ुतुबुद्दीन देहलवी (मा’बूद-ए-हक़ीक़ी की पनाह में होकर शाद काम रहें) एक रोज़ ये दुआ’-गो हज़रत ख़्वाजा उ’स्मान हारूनी रहमतुल्लाह अ’लैह की ख़िदमत में हाज़िर था कि