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Sufinama

मक्तूब नंबर 6

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़

मक्तूब नंबर 6

ख़्वाजा ग़रीब नवाज़

MORE BYख़्वाजा ग़रीब नवाज़

    बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

    मेरे भाई क़ुतुबूद्दीन, अल्लाह पाक आपको सलामत रखे !

    एक रोज़ मेरे शैख़-साहिब रहमतुल्लाह अ’लैह ने नफ़ी-ओ-इस्बात के कलमे की बाबत क्या ही अच्छा फ़रमाया कि नफ़ी अपने आपको ना देखना है और इस्बात अल्लाह पाक को देखना है क्योंकि ख़ुद-बीं (ख़ुद को देखने वाला) ख़ुदा-बीं (ख़ुदा को देखने वाला) नहीं हो सकता| इसलिए नफ़ी करने वाला होना चाहिए वर्ना नफ़ी का कुछ फ़ाएदा नहीं| अगर ये ख़्याल करें कि हस्ती सिर्फ़ ख़ुदा की हस्ती है तब जाकर मतलब हासिल होता है|

    वाज़ेह रहे कि कलिमा-ए-शहादत, नमाज़ , रोज़ा वग़ैरा की सूरत भी है और हक़ीक़त भी| उनके हक़ाएक़ को छोड़कर सिर्फ़ ज़ाहिरी सूरतों पर क़नाअ’त कर लेना फ़ुज़ूल है| वो शख़्स बड़ा ही अहमक़ है जो उनके हक़ाएक़ तक नहीं पहुंचता|

    फिर फ़रमाया कि अल्लाह पाक हमेशा था और रहेगा| सालिक इब्तिदा में ना-बीना (नज़र नहीं होती) होता है जब हक़ तआ’ला की तरफ़ से उसे बीनाई हासिल हो जाती है तो फिर उससे देखता और सुनता है। वह अपने आपको भूल जाता है। जब ऐसी हालत हो जाती है तो वह वासिल और हमेशा के लिए ज़िंदा हो जाता है।

    वस्सलाम।

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