तुम्हारे नाम पे सब कुछ मिला ग़रीब-नवाज़
रोचक तथ्य
منقبت درشان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر۔راجستھان)
तुम्हारे नाम पे सब कुछ मिला ग़रीब-नवाज़
तुम्हारे नाम पे सब कुछ फ़िदा ग़रीब-नवाज़
क़ुबूल हो ये हमारी दु'आ ग़रीब-नवाज़
फिर अपने दर पे हमें लो बुला ग़रीब-नवाज़
मुझे भी हज़रत-ए-'उस्मान का मिले सदक़ा
कि मैं भी हूँ तिरे दर का गदा ग़रीब-नवाज़
उजड़ सकेगा ख़िज़ाँ से न मिरे दिल का नगर
तुम्हारा नाम है दिल पर लिखा ग़रीब-नवाज़
नवाज़ हम को भी अपनी ’इनायतों से शहा
हमें भी जाम मिले दीद का ग़रीब-नवाज़
जहाँ-जहाँ ये हैं आबाद अहल-ए-चिश्त तिरे
वहाँ-वहाँ पे है जल्वा तिरा ग़रीब-नवाज़
मुई'न चिश्त वहीं आगए करम बन कर
जहाँ किसी ने पुकारा है या ग़रीब-नवाज़
ये मस्त फ़ज़ा क्यूँ है आज महफ़िल की
यक़ीं है कि हैं जल्वा-नुमा ग़रीब-नवाज़
वो यूरिश-ए-ग़म-ए-दुनिया से डगमगा न सका
जिसे मिला है तिरा आसरा ग़रीब-नवाज़
ये चिश्तियों की है महफ़िल 'नियाज़ी' सुन तो ज़रा
हर एक दिल से है आती सदा ग़रीब-नवाज़
- पुस्तक : कुल्लियात-ए-नियाज़ी (पृष्ठ 88)
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