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Sufinama

औरों से जुदा बीमार शह-ए-अबरार की हालत होती है

सफ़ीउल आलम शहबाज़ी

औरों से जुदा बीमार शह-ए-अबरार की हालत होती है

सफ़ीउल आलम शहबाज़ी

MORE BYसफ़ीउल आलम शहबाज़ी

    औरों से जुदा बीमार शह-ए-अबरार की हालत होती है

    आराम में कुल्फ़त होती है तकलीफ़ में राहत होती है

    उस बाब-ए-हरीम-ए-नाज़ पे जब मुश्ताक़ निगाहें फिरती हैं

    हर सुब्ह करम फ़रमाते हैं हर शाम 'इनायत होती है

    हम अहल-ए-मता-ए’-शौक़ के घर क्या चीज़ नहीं अहल-ए-ख़िरद

    अनवार की ने'मत होती है दीदार की जन्नत होती है

    जज़्बात की तूफ़ाँ-ख़ेज़ी भी फ़ुर्क़त के घनेरे बादल भी

    आँखों की सुनहरी रिम-झिम में बरसात की रंगत होती है

    जूयान-ए-रुख़-ए-महबूब रुको वा अपनी ज़रा आँखें कर लो

    वल्लैल-ओ-ज़ुहा के जल्वों से आरास्ता जन्नत होती है

    उम्मत-ए-हक़ के फ़रज़ंदो शर-ए-नबी के मतवालो

    बे-राह-रवी सुन्नत से मजरूह 'अक़ीदत होती है

    जब बज़्म-ए-’अक़ीदत की शाँ में महबूब का नाम जाता है

    सल्ले-'अला हर दिल में 'अजब पुर-कैफ़ मसर्रत होती है

    जज़्बात की रंग-आमेज़ी में एहसास के फूल निखरते हैं

    जब शौक़ जवाँ हो जाता है कुछ और तबी'अत होती है

    हो शर्ह-ए-अहद मतलूब अगर तशरीह-ए-मोहम्मद पढ़ जाओ

    उन चार मुशर्रह हर्फ़ों से तशर्ह-ए-हक़ीक़त होती है

    आईना-ए-हुस्न-ए-तसव्वुर में तशरीफ़ जो वो ले आते हैं

    मम्नून 'अक़ीदत होती है मश्कूर मोहब्बत होती है

    वो नूर कि रोज़-ए-सुब्ह-ए-अज़ल चमका था सर-ए-'अर्श-ए-आ’ज़म

    उस नूर की रौशन किरनों से कौनैन की ज़ीनत होती है

    शौक़ के दामन फैल ज़रा कुछ और वसीअ' कुछ और वसीअ'

    जब ज़ौक़-ए-तलब बढ़ जाता है फिर तेरी ज़रूरत होती है

    कुछ नज़्र-ए-’अक़ीदत के मोती दामन में सजा लाया हूँ 'सफ़ी'

    कुछ उन की तवज्जोह चाहूँगा कुछ अपनी भी हिम्मत होती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : Kilk-e-Midhat (पृष्ठ 30)

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