ख़ुदाई का मख़्ज़न वुजूद-ए-मोहम्मद शहनशाह-ए-ख़ैरुल-बशर आ रहा है
ख़ुदाई का मख़्ज़न वुजूद-ए-मोहम्मद शहनशाह-ए-ख़ैरुल-बशर आ रहा है
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
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ख़ुदाई का मख़्ज़न वुजूद-ए-मोहम्मद शहनशाह-ए-ख़ैरुल-बशर आ रहा है
वही नूर है जिस से तख़्लीक़-ए-'आलम वही नूर पेश-ए-नज़र आ रहा है
ये नूरानी सूरत ये संजीदा फ़ितरत मेरे मुस्तफ़ा की है पाकीज़ा सीरत
ख़ुदा की क़सम ये ख़ुदा का करम है समझ में वुजूद-ए-बशर आ रहा है
'अजब तर्ह की रहनुमाई है उन की ख़ुदा भी है उन का ख़ुदाई भी उन की
ज़रा ग़ौर से देखो ऐ बज़्म वालो हमारे दिलों में असर आ रहा है
नज़र जब से अहल-ए-नज़र से लड़ी है ख़ुदाई के जल्वों में हलचल पड़ी है
ख़ुदा ख़ुद मोहम्मद की सूरत में आ कर इधर आ रहा है उधर जा रहा है
ये मसरूर दिल और ये ’इरफ़ानी बातें ये मय-ख़ाना मा'रिफ़त की हैं रातें
असर जाम-ए-वहदत का हम से न पूछो मज़ा हम को शाम-ओ-सहर आ रहा है
किताब-ए-शरी’अत का पहला सबक़ है उसी में मोहम्मद का है राज़ पिन्हाँ
मोहम्मद को पाओ तो तस्कीन होगी कि आगे कठिन इक सफ़र आ रहा है
ज़बाँ पर सदाक़त का कलिमा है जारी तसव्वुफ़ के मय-ख़ाना का है ये पुजारी
ये ही तो है 'रिज़वान' ग़ुलाम-ए-मोहम्मद झुकाए हुए अपना सर आ रहा है
- पुस्तक : अल-कबीर
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