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गुनहगारान-ए-उम्मत जब ब-रू-ए-किब्रिया आए

बाक़िर शाहजहांपुरी

गुनहगारान-ए-उम्मत जब ब-रू-ए-किब्रिया आए

बाक़िर शाहजहांपुरी

MORE BYबाक़िर शाहजहांपुरी

    गुनहगारान-ए-उम्मत जब ब-रू-ए-किब्रिया आए

    शफ़ा'अत के लिए तब शाफ़े-ए'-रोज़-ए-जज़ा आए

    कोई रहनुमा आए कोई पेशवा आए

    हमें जब बख़्शवाने को मोहम्मद मुस्तफ़ा आए

    फ़रिश्तों ने कहा हट जाओ महबूब-ए-ख़ुदा आए

    किया बरताव कैसा फ़ातिमा ज़हरा की जानी से

    कि तर करने पाए हलक़-ए-असग़र शाह पानी से

    बहुत पहुँची अज़िय्यत शह को अकबर की जवानी से

    चला जब तिश्ना-ए-दीदार कोई दार-ए-फ़ानी से

    बुझाने प्यास की शिद्दत शहीद-ए-कर्बला आए

    तो दे 'बाक़र' के दिल में भी मोहब्बत कमली वाले की

    दिखा दे या ख़ुदा शान-ए-रिसालत कमली वाले की

    मुझे दरकार है इतनी 'इनायत कमली वाले की

    समा जाये मरी आँखों में सूरत कमली वाले की

    मिरे हर साँस से बस या मोहम्मद की सदा आए

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 144)
    • रचनाकार : Meraj Ahmed Nizami
    • संस्करण : Second

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