नक़ाब रुख़ से ज़रा उठाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
नक़ाब रुख़ से ज़रा उठाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
वो चाँद सी सूरत दिखाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
तू जल्वा-ए-नूर-ए-ख़ुदा सरासर नहीं है तेरा कोई भी हम-सर
तू सारे 'आलम से है यगाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
समाया आँखों में है तू प्यारे ज़बाँ पे सल्ले-अ'ला के ना'रे
है दिल पे उल्फ़त क्या ठिकाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
पिलाया ऐसा शराब-ए-साक़ी रहा न कुछ दिल में ग़ैर बाक़ी
बनाया दिलबर ने दिल में ख़ाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
भँवर में हैरत के कश्ती मेरी तूफ़ान-ए-ग़म की चली अँधेरी
आ कशती-ए-बानाँ मुझे बचाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
खड़ा हूँ दर पे मैं तेरे आकर ये 'अर्ज़ करता हूँ सर झुका कर
कभी तो आना गले लगाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
तुई है 'हाफ़िज़' तुई है नासिर तुई है दिलबर तुई है रहबर
तुई है महशर को बख्शवाना ऐ जान-ए-जानाँ कमलिया वाले
- पुस्तक : गुलदस्ता-ए-मक़बूल
- संस्करण : First
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