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हम ने वस्फ़-ए-गौहर-ए-इरफ़ाँ को जब लिखना किया

शाह नसीर

हम ने वस्फ़-ए-गौहर-ए-इरफ़ाँ को जब लिखना किया

शाह नसीर

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    हम ने वस्फ़-ए-गौहर-ए-इरफ़ाँ को जब लिखना किया

    मौज से मुस्तर कशीदः सफ़्हः-ए-दरिया किया

    हो गया अहमद ही अपनी मीम-ए-मज़हर से अहद

    इस में कुछ पर्दा नहीं है नाम का पर्दा किया

    ऐन-ए-इल्म-ए-हक़ नज़र आया उसे ऐन-ए-अली

    सूरत-ए-आईनः जिस ने चश्म-ए-दिल को वा किया

    दस्त-ए-क़ुदरत है मिरी नज़रों में ज़ात-ए-पंजतन

    बे-सबब अल्लाह ने इन को नहीं यकजा किया

    शश-जिहत की किस से हो रौनक़ ब-जुज़ बारह इमाम

    आप हक़ ने सब को मालिक दीन-ओ-दुनिया का किया

    शम'अ-ए-ऐवान-ए-ख़ुदा हैं चार-दह मा'सूम-ए-पाक

    जिन से उन चौदह तबक़ को रौशन और उजला किया

    ज़ाहिदा उन में क्यूँ हो जल्वः-ए-नूर-ए-ख़ुदा

    ख़ुद-नुमाई के लिए उस ने उन्हें पैदा किया

    सीना-कूबी दिल-ख़राशी गिर्यः-ओ-आह-ओ-फ़ुग़ाँ

    हम ने इश्क़-ए-पंजतन में देखना क्या क्या किया

    चार यार-ए-बा-सफ़ा हक़ की किताबें चार हैं

    आप जिन को मुंशी-ए-तक़दीर ने इंशा किया

    या'नी बू-बकर-ओ-उमर उसमान-ओ-हैदर बिल-यक़ीं

    जिन को चार अरकान-ए-दीन-ए-पाक है मौला किया

    सूरत-ए-अर्बा'-अनासिर था बहम चारों में रब्त

    रुब-ए-मस्कूँ में उन्होंने दीन को एहया किया

    पंज अंगुश्त-ए-यदुल्लाह हैं जनाब-ए-पंजतन

    वस्फ़ उन का कातिब-ए-क़ुदरत ने जो इमला किया

    सफ़्हः-ए-क़िर्तास नूर-अफ़शाँ यद-ए-बैज़ा बना

    यक-क़लम ख़ामे को अंगुश्त-ए-यद-ए-बैज़ा किया

    ज़ेब-ए-दीवाँ क्यूँ हो हर बैत इस की 'नसीर'

    इस ग़ज़ल को शान-ए-अहल-ए-बैत में इंशा किया

    स्रोत :
    • पुस्तक : कुल्लियात-ए-शाह नसीर संकलन: तनवीर अहमद अलवी (पृष्ठ 145)
    • रचनाकार : शाह नसीर
    • प्रकाशन : मज्लिस-ए-तरक़्क़ी अदब, लाहौर (1971)
    • संस्करण : First

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