हम्द-ए-बारी और सना-ए-रहमतुल-लिल-’आलमीं
हम्द-ए-बारी और सना-ए-रहमतुल-लिल-’आलमीं
या मोहम्मद या ख़ुदा-ए-रहमतुल-लिल-’आलमीं
क़ालिब-ए-ख़ाकी में गोया रूह दाख़िल हो गई
मर्हबा तशरीफ़ लाए रहमतुल-लिल'आलमीं
मुज़्दा गो थे आप के अल्लाह के पैग़ाम्बर
सब के सब लाए नवा-ए-रहमतुल-लिल-'आलमीं
’इशरत-ए-सरकार-ए-’आली और क़ुरआन-अल-मजीद
मोहतरम दोनों बजा-ए-रहमतुल-लिल-'आलमीं
हो गया मक़्बूल दरगाह-ए-ख़ुदा-ए-बेनियाज़
बंदा-ए-लुत्फ़-ओ-’अता-ए-रहमतुल-लिल-'आलमीं
तूतिया-ए-चश्म-ए-अहल मा'रिफ़त बे-शक बना
हो गया जो ख़ाक-पा-ए-रहमतुल-लिल-'आलमीं
किस की हिम्मत थी हसन अत्तालिहून-ली कहे
कौन होता हम-नवा-ए-रहमतुल-लिल-'आलमीं
- पुस्तक : सुख़नवरान-ए-वतन (पृष्ठ 171)
- रचनाकार : रियाज़ गयावी
- संस्करण : First
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.