हक़ से मिलने आप का मे'राज जाना याद है
रोचक तथ्य
موسیٰ آزاد قوال کی آواز میں فلمی طرز پر لکھی ہوئی مقبولِ عام قوالی۔
हक़ से मिलने आप का मे'राज जाना याद है
जा के पल में 'अर्श से वो लौट आना याद है
चूम कर तलवा तुम्हारा या मोहम्मद नींद से
बा-अदब जिब्रील का तुम को जगाना याद है
मीम के पर्दे के अंदर ख़ालिक़-ए-कौनैन का
सरवर-ए-दीं आप को जल्वा दिखाना याद है
हर क़दम पर 'अर्श ने ना’लैन के बोसे लिए
'अर्श को वो रात वो मंज़र सुहाना याद है
मर्हबा माँ बाप को मर्ज़ी पे रब की छोड़ कर
उम्मत-ए-‘आसी को हक़ से बख्शवाना याद है
चाँद के दो टुकड़े करके जोड़ कर दिखला दिए
पत्थरों को आन में कलिमा पढ़ाना याद है
हज़रत-ए-हस्सान-बिन-ए-साबित का अक्सर झूम कर
ऐ 'हुनर' सरकार का ना'तें सुनाना याद है
- पुस्तक : Moosa Azad Qawwal, Part 1 (पृष्ठ 12)
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