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Sufinama

क्या वक़्त मुबारक होता है क्या ख़ूब वो साअ'त होती है

उमर वारसी

क्या वक़्त मुबारक होता है क्या ख़ूब वो साअ'त होती है

उमर वारसी

MORE BYउमर वारसी

    क्या वक़्त मुबारक होता है क्या ख़ूब वो साअ'त होती है

    जब ज़िक्र-ए-इलाही होता है जब ना'त-ए-रिसालत होती है

    याँ फ़र्श-ए-ज़मीं पर महफ़िल में उस नूर की अज़्मत होती है

    वाँ अर्श-ए-बरीं पर मलाएक में मद्दाहों की मिदहत होती है

    ईमान भी ताज़ः होता है दिल को भी मसर्रत होती है

    सब ने'मतें हासिल होती हैं जब दिल में मोहब्बत होती है

    था नूर-ए-इलाही साफ़ अयाँ इबलीस मगर मुंकिर ही रहा

    औसाफ़ नज़र आते ही नहीं जब दिल में कुदूरत होती है

    बू-जहल कहे तुम सब से बुरे सिद्दीक़ कहे तुम सब से भले

    आईनः में होती है अयाँ जिस तरह की सूरत होती है

    उस हुस्न-ए-तसव्वुर के क़ुर्बां उस फ़ैज़-ए-मोहब्बत के सदक़े

    हर-दम है वो रौज़ः आँखों में हर-वक़्त ज़ियारत होती है

    हो कोई सहाबी या कि वली सब में है 'उमर' ख़ुश्बू-ए-नबी

    खिलती है जो इस गुलशन में कली सब में वो निकहत होती है

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़किरा शोरा-ए-वारसिया (पृष्ठ 178)
    • प्रकाशन : फाइन बुकस प्रिंटर्स (1993)
    • संस्करण : First

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