ख़ालिक़ ने सूरत अपनी से ये ज़ुहूर दिया है मोहम्मद को
ख़ालिक़ ने सूरत अपनी से ये ज़ुहूर दिया है मोहम्मद को
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
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ख़ालिक़ ने सूरत अपनी से ये ज़ुहूर दिया है मोहम्मद को
आपी वो अहद आपाँ मेव है नाम लिया है मोहम्मद को
जो इस असरार को बूझा है बस उस को सब कुछ सूझा है
यहाँ पर नहीं कोई दूजा है आपी आप किया है मोहम्मद को
जिस को नशा है वहदत का उस को क्या डर है महशर का
जो मस्त-ए-अलस्त के हैं सीने बस 'इल्म दिया है मोहम्मद को
है शाँ में किस के इन्ना फ़तमन्ना ला-फ़ता किस की शान में है
लहमक लहमी जिस्मुका जिस्मी से जान लिया है मोहम्मद को
दरशन अपने में पाया है मुर्शिद-ए-बर-हक़ का साया है
'ख़ादिम' सफ़ी की कृपा से पहचान लिया है मोहम्मद को
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