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तुम्हारे इ'श्क़ की सीने में यूँ ख़ुश्बू उतर जाए

डॉ. मंसूर फ़रीदी

तुम्हारे इ'श्क़ की सीने में यूँ ख़ुश्बू उतर जाए

डॉ. मंसूर फ़रीदी

MORE BYडॉ. मंसूर फ़रीदी

    तुम्हारे इ'श्क़ की सीने में यूँ ख़ुश्बू उतर जाए

    क़ियामत तक मिरी हर पुश्त में जिस का असर जाए

    मयस्सर हो मदीने की गुज़रगाहों में यूँ चलना

    हो आगे-आगे दिल और पीछे-पीछे मेरा सर जाए

    मलें ख़ाक-ए-दर-ए-सरकार हम जो अपने चेहरों पर

    तो अपनी ज़िंदगी का और आईना निखर जाए

    जिसे मिलता हो बिन माँगै मिरे आक़ा की चौखट से

    ज़माने में भला क्यूँ वो इधर जाए उधर जाए

    शह-ए-लौलाक की चश्म-ए-करम हो जिस मुसाफ़िर पर

    'फ़रीदी' वो तो हर दुश्वार रस्ते से गुज़र जाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : Takhilat (पृष्ठ 263)

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