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ए'जाज़ नुमायाँ है आईना क़ुदरत का

मसऊद लखीमपुरी

ए'जाज़ नुमायाँ है आईना क़ुदरत का

मसऊद लखीमपुरी

MORE BYमसऊद लखीमपुरी

    ए'जाज़ नुमायाँ है आईना क़ुदरत का

    आ'लम नज़र आता है कस्रत में भी वहदत का

    मा'मूर है हिकमत से हर काम रिसालत का

    क्या भेद है फ़ितरत का क्या राज़ है क़ुदरत का

    क्या अ'क़्ल को इंसाँ की हो दख़्ल मशिय्यत में

    ख़िल्क़त है मोहम्मद की इक राज़ हक़ीक़त का

    पर्दे में तजल्ली के जो तूर पे चमका था

    वो नूर-ए-हक़ीक़त में था नूर रिसालत का

    आँखों को बसारत दी कानों को समाअ'त दी

    क्यूँकर ज़माना हो क़ाइल तिरी क़ुदरत का

    'मसऊ'द' पे हो जाए यारब नज़र-ए-रहमत

    मोहताज-ए-तरह्हुम है तालिब है इनायत का

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-शो’रा-ए-उत्तर प्रदेश जिल्द दसवीं (पृष्ठ 285)
    • रचनाकार : इरफ़ान अ’ब्बासी

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