हूँ तिरे दर का भिकारी तिरा मंगता ख़्वाजा
रोचक तथ्य
منقبت درشان غریب نواز خواجہ معین الدین چشتی (اجمیر۔راجستھان)
हूँ तिरे दर का भिकारी तिरा मंगता ख़्वाजा
हो अ'ता मुझ को भी हसनैन का सदक़ा ख़्वाजा
एक मुद्दत से उजाले नहीं आए मुझ तक
खोल दे मेरी तरफ़ अपना दरीचा ख़्वाजा
घर से निकला हूँ मैं अजमेर की जानिब रुख़ है
तेरा दर चूम लूँ बस ये है तमन्ना ख़्वाजा
रौशनी ता-कि मुझे छोड़ के जाए न कभी
मेरे सीने पे बना नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ख़्वाजा
मंज़िल-ए-क़ब्र हो या हश्र हो या दुनिया हो
मुझ को तन्हा न कहीं छोड़ेगा मेरा ख़्वाजा
याद आने लगीं तैबा की बहारें मुझ को
तेरा कूचा तो लगे बाब-ए-मदीना ख़्वाजा
है मिरे दिल की तमन्ना मिरी चाहत का गुलाब
मर्कज़-ए-अहल-ए-नज़र हिन्द का राजा ख़्वाजा
तेरे इकराम के साए में ही रहता हूँ मगर
चाहिए तेरा करम और ज़्यादा ख़्वाजा
एक दीवाना तिरा है जिसे कहते हैं 'मुजीब'
और कुछ कहता नहीं रटता है ख़्वाजा ख़्वाजा
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