क़ाफ़िले चाँद सितारों के उधर जाते हैं
रोचक तथ्य
منقبت درشان حضرت نواب علی شاہ حسنی جہاں گیری (فتح پور۔اترا پردیش)
क़ाफ़िले चाँद सितारों के उधर जाते हैं
जिस तरफ़ से शह-ए-नव्वाब गुज़र जाते हैं
जब ख़याल-ए-शह-ए-नव्वाब दर-ए-दिल को छुए
इ'श्क़-ओ-मस्ती के हसीं रंग बिखर जाते हैं
इस तरफ़ से जो गुज़रते हैं सबा के झोंके
ज़िक्र सुनने को तिरा वो भी ठहर जाते हैं
उन के दरबार में फ़रियाद तो कर के देखो
पल में बिगड़े हुए हालात सँवर जाते हैं
छोड़ कर तेरी इ'नायात-ओ-करम का साया
कैसे नादान हैं जो सू-ए-शजर जाते हैं
दर-ए-नव्वाब पे हम ही नहीं जाते हैं फ़क़त
रौशनी माँगने ख़ुर्शीद-ओ-क़मर जाते हैं
ऐसी वैसी नहीं नव्वाब मियाँ की चौखट
अहल-ए-दिल अहल-ए-नज़र अहल-ए-हुनर जाते हैं
मुनफ़रिद करता है ये वस्फ़ उन्हें औरों से
सँग-पारों को भी वो आईना कर जाते हैं
हम सर-ए-शाम तिरे नाम का करते हुए विर्द
तेरी यादों के समुंदर में उतर जाते हैं
वादी-ए-ख़्वाब में गुल-गश्त को जब आता है तू
चश्म-कासे तिरे दीदार से भर जाते हैं
हादसे आते तो हैं मुझ को हरासाँ करने
तेरे साए में मुझे देख के डर जाते हैं
तेरे दीवाने तिरा एक इशारा पा कर
राह कैसी भी हो बे-ख़ौफ़ गुज़र जाते हैं
मेरी बस्ती से गुज़रते हुए मौसम ऐ 'नूर'
भीक लेने शह-ए-नव्वाब के घर जाते हैं
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