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अगर हो यूँ रक़म तब लुत्फ़ है ना'त-ए-पयम्बर का

शब्बीर साजिद मेहरवी

अगर हो यूँ रक़म तब लुत्फ़ है ना'त-ए-पयम्बर का

शब्बीर साजिद मेहरवी

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    अगर हो यूँ रक़म तब लुत्फ़ है ना'त-ए-पयम्बर का

    स्याही मुश्क की हो और क़लम जिब्रईल के पर का

    दिल-ए-बे-ताब समझा खुल गए सरकार के गेसू

    हुआ महसूस झोंका जब कोई ख़ूशबू-ए-'अंबर का

    बुरा हूँ या भला हूँ या मोहम्मद आप का हूँ मैं

    ब-जुज़ सरकार के है कौन मुझ मिस्कीन चाकर का

    मेरे 'ऐबों पे पर्दा डाल दीजिए या रसूलुल्लाह

    स्याह कमली का सदक़ा वास्ता ज़ैनब की चादर का

    हसीन ऐसे कि जिन के हुस्न का यूसुफ़ तमन्नाई

    हसीनान-ए-जहाँ सदक़ा हैं उन के रू-ए-अनवर का

    मेरे जुर्मों पे 'साजिद' पारसाई नाज़ करती है

    मैं मुजरिम हूँ मगर किस का शफ़ी'-ए-रोज़-ए-महशर का

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