सरासर है रहमत का दर अल्लाहु अल्लाह
सरासर है रहमत का दर अल्लाहु अल्लाह
नबी-ए-मुकर्रम का घर अल्लाहु अल्लाह
मुनव्वर मुनव्वर मोअ'त्तर मोअ'त्तर
मदीने की हर रहगुज़र अल्लाहु अल्लाह
नबी के ही परतव से नज्म-ए-दरख़्शाँ
चमकते हैं शम्स-ओ-क़मर अल्लाहु अल्लाह
है कौनैन में फैली उन ही की ख़ुश्बू
मोअ'त्तर है हर बहर-ओ-बर अल्लाहु अल्लाह
चमकने लगी देखते मेरी क़िस्मत
मदीने का नूर-ए-सहर अल्लाहु अल्लाह
वो ख़त्म-ए-रुसुल आफ़्ताब-ए-रिसालत
नबूवत के हैं ताजवर अल्लाह अल्लाह
मदीने का मंज़र है ज़ौ-रेज़ कितना
मुनव्वर है शाम-ओ-सहर अल्लाहु अल्लाह
वो सब से जमील और सीरत भी उन की
है बे-मिस्ल और ख़ूब-तर अल्लाहु अल्लाह
वो मेहराब-ओ-मिम्बर वो रौज़े की जाली
वो क़द में ख़ैरुल-बशर अल्लाहु अल्लाह
अ'जब जाँ-फ़िज़ा सब्ज़-गुम्बद का मंज़र
है फ़िरदौस आया उतर अल्लाहु अल्लाह
रियाज़-उल-जन्नाँ में बे-ख़िराम आब-ए-रहमत
कि जन्नत में है इक नहर अल्लाहु अल्लाह
रुख़-ए-मुस्तफ़ा की झलक पर किसी की
ठहरती नहीं है नज़र अल्लाहु अल्लाह
यक़ीनन हैं दोनों जहाँ में सरफ़राज़
ग़ुलामान-ए-ख़ैर-उल-बशर अल्लाहु अल्लाह
सुनाता दिल मुज़्तरिब के में अहवाल
जो होता कोई नामा-बर अल्लाहु अल्लाह
तमन्ना है मग़्मूम आयत के दिल में
मदीने का फिर हो सफ़र अल्लाहु अल्लाह
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