सना-ख़्वाँ किस तरह हो कोई उस महबूब-ए-यकता का
सना-ख़्वाँ किस तरह हो कोई उस महबूब-ए-यकता का
ज़बाँ मैं ये कहाँ क़ुदरत क़लम को ये कहाँ यारा
वो जिस के ’इल्म की तफ़्सीर अलम-नश्रह-लका-सदरक
वो जिस के औज की ता'बीर सुब्हानलल्ज़ी-असरा
वो जिस के हाथ की जुम्बिश में सद ज़र्ब-ए-कलीमी थी
वो जिस के आस्तीं में थे निहाँ लाखों यद-ए-बैज़ा
मोहम्मद ज़ात जिस की बाइ'स-ए-तकवीन-ए-'आलम थी
मोहम्मद कारवाँ सालार-ए-अर्वाह-ए-मुजर्रद का
जिसे उस रोज़ दरस-ए-मुसहफ़-ए-असरार अज़बर था
ज़बान-ए-’अक़्ल-ए-कुल जब विर्द करती थी अलिफ़ बा का
वो जिस के रू-ए-अनवर में जमाल-ए-सरमदी पिन्हाँ
वो जिस की ख़ू-ए-अतहर में जलाल-ए-एज़दी पैदा
ग़ुरूर-ए-ख़ुसरवी जिस के वक़ार-ए-'अज़्म से लर्ज़ां
हिसार-ए-कुफ़्र जिस के ज़ोर-ए-ईमाँ से तह-ओ-बाला
जहान-ए-ख़ाक ने जिस से फ़लक की बरतरी पाई
वो जिस के दम-क़दम से और उभरा आ'लम-ए-बाला
उसी के नूर ही से अहल-ए-दिल का क़ल्ब है रौशन
उसी के फ़ैज़ से अहल-ए-नज़र की चश्म है बीना
उसी की ज़ात से क़ाएम सबात-ए-’अज़्मत-ए-इंसाँ
उसी की ज़ात से दाइम हयात-ए-मिल्लत-ए-बैज़ा
उसी की ज़ात हम से बे-सहारों का सहारा है
उसी की ज़ात का हम बे-कसों के सर पे साया है
- पुस्तक : Kulliyat-e-Sufi Tabassum (पृष्ठ 63)
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