'उसमाँ के ला'ल आप का दरबार है 'आली अजमेर के वाली
'उसमाँ के ला'ल आप का दरबार है 'आली अजमेर के वाली
पीर नसीरुद्दीन नसीर
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रोचक तथ्य
منقبت درشان غریب نواز خواجہ معین الدین حسن چشتی (اجمیر-راجستھان)
'उसमाँ के ला'ल आप का दरबार है 'आली अजमेर के वाली
साएल तेरे दरबार से जाता नहीं ख़ाली अजमेर के वाली
तू इब्न-ए-'अली फ़ातिमा ज़हरा का दुलारा सिबतैन का प्यारा
वलियों में मिली है तुझे क्या शान-निराली अजमेर के वाली
दे-दे मुझे कुछ वाली-ए-बग़दाद का सदक़ा अज्दाद का सदक़ा
भर दे कि मिरा दामन-ए-उम्मीद है ख़ाली अजमेर के वाली
तू सय्यद-ए-सादात है ऐ हिन्द के राजा अजमेर के ख़्वाजा
ख़ुश-बख़्त है वो जिस पे नज़र तू ने है डाली अजमेर के वाली
जैसा भी हूँ तेरा हूँ बुरा हूँ कि भला हूँ टुकड़ों पे पला हूँ
क्यूँ जाए किसी दर पे तेरे दर का सवाली अजमेर के वाली
दरशन को तरसती हूँ मिरे भाग जगाओ अजमेर बुलाओ
चूमूँ मैं तिरे रौज़ा-ए-पुर-नूर की जाली अजमेर के वाली
धुन है कि 'नसीर' आप के दरबार में पहुँचे सरकार में पहुँचे
लेकर दर-ए-अक़्दस पे वो इख़्लास की डाली अजमेर के वाली
- पुस्तक : Kulliyat-e-Naseer
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