त'आलल्लाह है किस शान की सरकार क्या कहना
रोचक तथ्य
منقبت درشان محبوب الٰہی خواجہ نظام الدین اؤلیا (دہلی،بھارت)
त'आलल्लाह है किस शान की सरकार क्या कहना
कि महबूब-ए-इलाही का है ये दरबार क्या कहना
चराग़-ए-तूर है रौशन कलस रौज़े के गुंबद का
बरसते हैं ज़मीं पर 'अर्श के अनवार क्या कहना
बशर आँखें बिछाने को अदब से क्यूँ न झुक जाएँ
मलक हैं दस्त बस्ता हाज़िर-ए-दरबार क्या कहना
जो आँखें देखती हैं दिल से कुछ उस के मज़े पूछो
निगाहों पर खुले हैं पर्दा-ए-असरार क्या कहना
शराब-ए-’इश्क़ से लबरेज़ ’इरफ़ाँ सागर-ए-दिल है
मय-ए-तौहीद से आँखें भी हैं सरशार क्या कहना
सलामत मय-कदा तुझ पर ख़ुदा की रहमतें साक़ी
खड़े हैं हौज़-ए-कौसर पर तिरे मय-ख़्वार क्या कहना
तिरे मस्तों की मद-होशी भी हुश्यारी से अच्छी है
तिरे मदहोश मस्ती में भी हैं हुशियार क्या कहना
'इवज़ फूलों के लाऊँ डालियाँ भर कर दुरूदों की
पसंद आ जाएँ तो सल्ले-'अला सरकार क्या कहना
न क्यूँ दारुश्शिफ़ा समझें हम उस दरबार-ए-'आली को
बदलता है यहाँ सेहत से हर आज़ार क्या कहना
ये ए'जाज़-ए-मसीहाई कि हाज़िर होते ही दर पर
तवाना है 'शफ़क़' सा ना-तवाँ बीमार क्या कहना
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