हर इक दिल-ओ-इलाह-ओ-शैदा है महबूब-ए-इलाही का
रोचक तथ्य
منقبت در شان محبوب الٰہی خواجہ نظام الدین اؤلیا (دہلی-بھارت)
हर इक दिल-ओ-इलाह-ओ-शैदा है महबूब-ए-इलाही का
जहाँ में हर तरफ़ ग़ौग़ा है महबूब-ए-इलाही का
हमें कुछ ग़म नहीं हो ताबिश-ए-ख़ुर्शीद-ए-महशर से
हमारे सर पे एक साया है महबूब-ए-इलाही का
बहुत अंधों की आँखें खोल दीं और कान बहरों के
दम-ए-अक़्दस दम-ए-'ईसा है महबूब-ए-इलाही का
जहाँ में शोर-ओ-ग़ौग़ा है हर इक के सर में सौदा है
जिसे देखा वो दीवाना है महबूब-ए-इलाही का
मज़ार-ए-पाक पर क़ुर्बान शब को चाँद होता है
ये दिन को महर परवाना है महबूब-ए-इलाही का
उसे 'आलम पनाही है वो महबूब-ए-इलाही है
वो प्यारा हक़ का हक़ प्यारा है महबूब-ए-इलाही का
निज़ामुद्दीन से हुस्न-ए-निज़ाम दीन-ओ-दुनिया से
पर तीर-ए-क़ज़ा ईमा है महबूब-ए-इलाही का
वली है वो मोहम्मद मुस्तफ़ा के दीन का रहबर
दर-ए-फ़िर्दौस इक कूचा है महबूब-ए-इलाही का
जहाँ में हर किसी को इक सहारा है भरोसा पर
ग़ुलामों को फ़क़त तकिया है महबूब-ए-इलाही का
जो कुछ 'अल्वी' नशा में बिकता रहता है तो बिकने दो
लो ये अंदाज़-ए-मस्ताना है महबूब-ए-इलाही का
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.