देर से हम दर-ए-दौलत पे सदा देते हैं
रोचक तथ्य
منقبت در شان صابر پاک حضرت علاؤالدین علی احمد صابر (کلیر-اتراکھنڈ)
देर से हम दर-ए-दौलत पे सदा देते हैं
आज देखें तो कि साबिर हमें क्या देते हैं
भूल जाता है जो कलियर की तेरी राह कोई
हज़रत-ए-गंज-ए-शकर आ के बता देते हैं
न सही बख़्त में कुछ मेरी मगर या साबिर
आप बिगड़ी हुई तक़दीर बना देते हैं
चुटकियाँ लेती है रह-रह के जिगर की फ़रियाद
नाला-ए-दिल मिरे रुक-रुक के मज़ा देते हैं
अपने बंदे को बना देते हैं दम में सुल्तान
शान यूँ बंदा-नवाज़ी की दिखा देते हैं
मिरे साबिर तिरे क़ुर्बां मैं पुकारूँ कब तक
मुँह से फ़रमाओ ख़ुदा के लिए हाँ देते हैं
अदब आमोज़ हक़ीक़त हैं वो जल्वे तेरे
कि सबक़ इन्नी-अना का वो पढ़ा देते हैं
रहम कर रहम हुसैन इब्न-ए-'अली का सदक़ा
तेरे 'मोहताज' तिरे दर पे सदा देते हैं
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