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Sufinama

वाह रे शान ख़ुद-नुमाई की

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

वाह रे शान ख़ुद-नुमाई की

इम्दाद अ'ली उ'ल्वी

MORE BYइम्दाद अ'ली उ'ल्वी

    वाह रे शान ख़ुद-नुमाई की

    जिस से बू आती है ख़ुदाई की

    तेरे दर पर जो जबहा-साई की

    चर्ख़ ने ख़ूब आश्नाई की

    मस्ती में वा'ज़ का ख़याल रहा

    हमने रिंद में पारसाई की

    दिल-ए-वारफ़्ता तेरा क्या कहना

    आ'शिक़ी में ही दिल-रुबाई की

    वाह रे गर्मी-ए-तजल्ली-ए-इ'श्क़

    बह गया कोह मिस्ल राई की

    पी गया बह्र और रहा क़त्रा

    कैसी इंसान ने समाई की

    जिस को सब काएनात कहते हैं

    हद है इंसान की रसाई की

    दस्त-ओ-पा जब तलक रहे 'उल्वी'

    इ'श्क़ से ख़ूब हाथा-पाई की

    स्रोत :
    • पुस्तक : सुरूद-ए-रूहानी (पृष्ठ 161)
    • रचनाकार : Meraj Ahmed Nizami
    • संस्करण : Second

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