शर्फ़-ए-मआब ऐ आ'ली वक़ार तेग़-ए-अ’ली
रोचक तथ्य
منقبت در شان حضرت تیغ علی (مظفر پور۔بہار)
शर्फ़-ए-मआब ऐ आ'ली वक़ार तेग़-ए-अ’ली
तुम्हारे फ़क़्र पे शाही निसार तेग़-ए-अ’ली
तमाम उ'म्र क़ियाम-ओ-सुजूद में गुज़री
थे एक आ’बिद-ए-शब ज़िंदा-दार-ए-तेग़-ए-अ’ली
तुम्हारा नय्यर-ए-इक़बाल है ज़िया-परवर
है ज़ात लाएक़-ए-सद-इफ़्तिख़ार तेग़-ए-अ’ली
बना हुआ है तजल्ली का महबत-ओ-मसदर
तुम्हारा रौज़ा-ए-ज़र्रीं-निगार तेग़-ए-अ’ली
तुम्हारे बाग़-ए-अ’क़ीदत का ख़ोशा-चीं जो है
हमेशा है वो मियाँ बहार तेग़-ए-अ'ली
जलाई तुम ने जो क़िंदील-ए-मा'रिफ़त उस से
रह-ए-सुलूक हुई नूर-बार तेग़-ए-अ'ली
है दीद-ओ-दाद के क़ाबिल ज़मीन सर का नहीं
है लम्हा-लम्हा यहाँ मुश्क-बार तेग़-ए-अली
मिली है आप की ज़ुल्फ़-ए-करम से आ'शिक़ को
नसीम-ओ-बहजत सुब्ह-ए-क़रार तेग़-ए-अ’ली
हमेशा तुम ने नवाज़ा है सोच से बढ़ कर
कभी दिखा ही नहीं इख़्तिसार तेग़-ए-अ'ली
उसे भी चश्म-ए-इ'नायत से मुस्तफ़ीज़ करें
है दर-ए-'वासिफ़'-ए-इ’स्याँ शिआ'र तेग़-ए-अ'ली
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