आमदन-ए-रसूल-ए-रूम ता अमीर-उल-मोमिनीन 'उमर रज़ी-अल्लाहु-'अन्हु-ओ-दीदन-ए-ऊ करामात-ए-'उमर रज़ी-अल्लाहु 'अन्हु
कै़सर-ए-रुम के एलची का पैग़ाम लेकर हज़रत-ए-उमर रज़ी अल्लाहु अन्हु के पास आना
ता 'उमर आमद ज़ क़ैसर यक रसूल
दर मदीनः अज़ बयाबान-ए-नग़ूल
कै़सर का एक एलची (हज़रत) उमर के पास आया
दूर-ओ-दराज़ जंगल से, मदीना में
गुफ़्त कू क़स्र-ए-ख़लीٖफ़ः ऐ हशम
ता मन अस्ब-ओ-रख़्त रा आँ-जा कशम
बोला! ए मुताल्लिक़ीन ख़लीफ़ा का महल कहाँ है?
ताकि मैं घोड़ा और सामान वहाँ ले जाऊँ
क़ौम गुफ़्तंदश कि ऊ रा क़स्र नीस्त
मर 'उमर रा क़स्र जान-ए-रौशनीस्त
लोगों ने कहाँ, उनका कोई महल नहीं है
उमर का महल तो उन की रोशन जान है
गरचे अज़ मीरी वरा आवाज़ः-ईस्त
हम-चु दरवेशाँ मर ऊ रा काज़ःईस्त
गरचे उन की सरदारी की शौहरत है
लेकिन फ़क़ीरों जैसी उनकी झोंपड़ी है
ऐ बिरादर चूँ ब-बीनी क़स्र-ए-ऊ
चूँकि दर चश्म-ए-दिलत रुस्तस्त मू
ए भाई तू उस का महल कैसे देख सकता है
जबकि तेरे दिल की आँख में पड़वाल उगा है
चश्म-ए-दिल अज़ मू-ओ-'इल्लत पाक आर
वाँ-गहाँ दीदार-ए-क़स्रश चश्म-दार
दिल की आँख को पड़वाल से साफ़ कर ले
फिर उस के महल के देखने की उम्मीद कर
हर कि रा हस्त अज़ हवस-हा जान-ए-पाक
ज़ूद बीनद हज़रत-ओ-ऐवान-ए-पाक
जिसकी जान हवसों से पाक है
वो दरबार और पाक महल जल्द देख लेगा
चूँ मोहम्मद पाक शुद ज़ीं नार-ओ-दूद
हर कुजा रू कर्द वज्हुल्लाह बूद
जब मोहम्मद (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) आग और धुऐं से पाक हो गए
जिस तरफ़ भी रुख किया ख़ुदा की ज़ात थी
चूँ रफ़ीक़ी वसवसः बद-ख़्वाह रा
के ब-दानी सम्मा वज्हुल्लाह रा
जबकि तू दुश्मन वस्वसा का दोस्त है
अल्लाह की ज़ात को कब देख सकता है?
हर कि रा बाशद ज़ सीन: फ़त्ह-ए-बाब
ऊ ज़ हर शहरे ब-बीनद आफ़ताब
जिस किसी के सीना का दरवाज़ा खुल जाये
वो हर ज़र्रा में देखेगा
हक़ पदीद अस्त अज़ मियान-ए-दीगराँ
हम-चु माह अंदर मियान-ए-अख़्तराँ
दूसरों के दरमियान अल्लाह इस तरह रोशन है
जैसा कि सितारों में चाँद
दो सर-ए-अंगुश्त बर दो चश्म नेह
हेच बीनी अज़ जहाँ इंसाफ़ देह
दो उंगलियों के सिरे दोनों पर रख
इन्साफ़ कर, दुनिया का तुझे कुछ नज़र आता है
गर न-बीनी ईं जहाँ मा'दूम नीस्त
'ऐब जुज़ ज़ अंगुश्त नफ़्स-ए-शूम नीस्त
अगर तू नहीं देखता है ये दुनिया तो मादूम नहीं है
मनहूस नफ़स की उंगली के अलावा कोई ऐब नहीं है
तू ज़ चश्म अंगुश्त रा बरदार हीं
वाँ-गहाने हर चे मी ख़्वाही ब-बीं
ख़बरदार आँख से उंगली हटा ले
फिर तू जो कुछ चाहता है, देख
नूह रा गुफ़्तंद उम्मत कू सवाब
गुफ़्त ऊ ज़ाँ सू-ए-वस्तग़शौ सियाब
उम्मत ने नूह (अलैहिस्सलाम) से कहा सवाब कहाँ
उसने कहा वसतग़शव सियाबहुम के उस तरफ़ है
रू-ओ-सर दर जाम-हा पेचीदः-ईद
ला-जरम बा-दीदः-ओ-ना-दीदः-ईद
तुमने मुंह और सर कपड़ों में लपेट रखा है
ला-मुहाला आँख वाले हो कर (भी) नाबीना बने हो
आदमी दीदस्त-ओ-बाक़ी पोस्तस्त
दीद आँ अस्त आँ-कि दीद-ए-दोस्तस्त
आदमी तो बीनाई है, बाक़ी खाल है
दीद तो दरअसल महबूब की दीद है
चूँ-कि दीद-ए-दोस्त न-बुवद कूर बह
दोस्त कू बाक़ी न-बाशद दूर बह
जबकि दोस्त का दीदार न हो, अंधा होना अच्छा है
जो दोस्त बाक़ी रहने वाला न हो उसका दूर होना अच्छा है
चूँ रसूल-ए-रूम ईं अल्फ़ाज़-ए-तर
दर समा' आवुर्द शुद मुश्ताक़-तर
जब रुम के एलची ने ये तर-ओ-ताज़ा लफ़्ज़
सुने, तो वो ज़्यादा मुश्ताक़ हो गया
दीद: रा बर जुस्तन-ए-'उम्मर गुमाश्त
रख़्त रा-ओ-अस्ब रा ज़ाए' गुज़ाश्त
आँखें हज़रत-ए-उमर के ढ़ूढ़ने पर लगा दें
सामान और घोड़े को बग़ैर हिफ़ाज़त के छोड़ दिया
हर तरफ़ अंदर पय-ए-आँ मर्द-ए-कार
मी शुदे पुर्सान-ए-ऊ दीवानः-वार
उस मर्द-ए-कार की तलाश में हर तरफ़
दीवानों की तरह पूछता फिरता
कीं चुनीं मर्दे बुवद अंदर जहाँ
वज़ जहाँ मानिंद-ए-जान बाशद निहाँ
कि ऐसा आदमी भी दुनिया में होगा
जो जान की तरह दुनिया से पोशीदा हो
जुस्त ऊ रा ताश चूँ बंदः बुवद
ला-जरम जूयंदः याबंदः बुवद
उनको ढ़ूंडा ताकि उनका ग़ुलाम जैसा हो जाये
ला-मुहाला तलाश करने वाला, पा लेने वाला होता है
दीद आ'राबी ज़ने ऊ रा दख़ील
गुफ़्त 'उम्मर निक ब-ज़ेर-ए-आँ नख़ील
एक बद्दू औरत ने उस को अजनबी देखकर
कहा यह उमर उस खुजूर के नीचे हैं
ज़ेर खु़र्मा बुन ज़ ख़ल्क़ाँ ऊ जुदा
ज़ेर-ए-सायः ख़ुफ़्तः बीं सायः ख़ुदा
खजूर के दरख़्त के नीचे मख़लूक़ से जुदा
ख़ुदा के साया को साया में सोता देख
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