बाज़ गुफ़्तन-ए-बाज़र्गाँ बा-तूती आँ-चे दीद अज़ तूतियान-ए-हिंदुस्ताँ
बाज़ गुफ़्तन-ए-बाज़र्गाँ बा-तूती आँ-चे दीद अज़ तूतियान-ए-हिंदुस्ताँ
सौदागर का फिर तूती से कहना जो कुछ उस ने हिन्दोस्तान में देखा था
कर्द बाज़र्गाँ तिजारत रा तमाम
बाज़ आमद सू-ए-मंज़िल शाद-काम
सौदागर ने तिजारत मुकम्मल कर ली
और वतन की तरफ़ ख़ुशी से लौटा
हर गु़लामे रा ब-यावुर्द अरमुग़ाँ
हर कनीज़क रा ब-बख़्शीद ऊ निशाँ
हर ग़ुलाम के लिए सौग़ात लाया
उस ने हर कनीज़ को एक निशानी दी
गुफ़्त तूती अरमुग़ान-ए-बंदः कू
आँ-चे गुफ़्ती-ओ-आँ-चे दीदी बाज़ गो
तूती बोली बंदी का तोहफ़ा कहाँ है?
जो तू ने देखा और जो कहा वो भी बयान कर
गुफ़्त ने मन ख़ुद पशेमानम अज़ाँ
दस्त-ए-ख़ुद ख़ायाँ-ओ-अंगुश्ताँ गज़ाँ
वो बोला नहीं, मैं उस से ख़ुद शर्मिंदा हूँ
अपने हाथ को चबा रहा हूँ और उंगलियों को काटता हूँ
मन चरा पैग़ाम-ए-ख़ामे अज़ गज़ाफ़
बुर्दम अज़ बे-दानिशी-ओ-अज़ नशाफ़
कि क्यों लग़्वियत से बेकार पैग़ाम
मैं ले गया, बे अक़ली और ग़लती से?
गुफ़्त ऐ ख़्वाजः पशेमानी ज़ चीस्त
चीस्त आँ कीं ख़श्म-ओ-ग़म रा मुक़्तज़ीस्त
उस ने कहा ऐ ख़्वाजा ! किस बात से शर्मिंदगी है?
कौन सी बात है जो गु़स्सा और ग़म की मुतकाज़ी है
गुफ़्त गुफ़्तम आँ शिकायत-हा-ए-तू
बा-गिरोह-ए-तूतियाँ हमता-ए-तू
उस ने कहा, मैंने तेरी शिकायतें बतायीं-
तेरी हम-जिंस तूतियों को
आँ यके तूती ज़ दर्दत बू-ए-बुर्द
ज़हरः-अश बद्रीद-ओ-लर्ज़ीद-ओ-ब-मुर्द
एक तूती को तेरे दर्द का एहसास हुआ
उस का पित्ता फटा, कपकपाई और मर गई
मन पशेमाँ गश्तम ईं गुफ़्तन चे बूद
लैक चूँ गुफ़्तम पशेमानी चे सूद
मैं शर्मिंदा हुआ कि ये क्या कहने की बात थी
लेकिन जब कह चुका तो शर्मिंदगी से क्या फ़ायदा?
नुक्तः-ए-काँ जस्त नागह अज़ ज़बाँ
हम-चु तीरे-दाँ कि जस्त आँ अज़ कमाँ
जो बात अचानक ज़बान से निकल गई
उस को उस तीर जैसा समझ जो कमान से निकल जाये
वा न-गर्दद अज़ रह-ए-आँ तीर ऐ पिसर
बंद बायद कर्द सैले रा ज़ सर
ऐ बेटा! वो तेरा रास्ता से वापस नहीं आ सकता
सैलाब को इब्तिदा ही से बंद करना चाहिए
चूँ गुज़श्त अज़ सर जहाने रा गिरफ़्त
गर जहाँ वीराँ कुनद न-बुवद शिगुफ़्त
जब पानी सर से गुज़र गया उस ने दुनिया को घेर लिया
अगर दुनिया को वीरान कर दे तो कोई ताज्जुब न होगा
फ़े'ल रा दर ग़ैब असर-हा ज़ाद नीस्त
वाँ मवालीदश ब-हुक्म-ए-ख़ल्क़ नीस्त
ग़ैब में फे़अल के आसार पैदा होने वाले हैं
और उस के वो नतीजे मख़लूक़ के हुक्म से नहीं हैं
बे-शरीके जुमल: मख़्लूक़-ए-ख़ुदास्त
आँ मवालीद अर चे निस्बत शाँ ब-मास्त
बग़ैर शिरकत ये सब ख़ुदा के पैदा-कर्दा हैं
तमाम नतीजे, अगरचे उनकी निसबत हमारी तरफ़ है
ज़ैद पर्रानीद तीरे सू-ए-'अम्र
'अम्र रा ब-गिरफ़्त तीरश हम-चु नम्र
जै़द ने अम्र की तरफ़ तीर चलाया
और उस के तीर ने अम्र को तेन्दुए की तरह दबोच लिया
मुद्दते साले हमी ज़ाईद दर्द
दर्द-हा रा आफ़रीनद हक़ न मर्द
साल भर दर्द होता रहा
दर्दों को ख़ुदा पैदा करता है, न कि इन्सान
ज़ैद रा मी आँ दम अर मुर्द अज़ वजल
दर्द-हा मी ज़ाइद आँ-जा ता-अजल
अगर तीर चलाने वाला जै़द ख़ौफ़ से उसी वक़्त मर गया
उस जगह मरने तक दर्द पैदा होते रहेंगे
ज़ाँ मवालीद-ए-वजा' चूँ मुर्द ऊ
ज़ैद रा मी ज़ीं सबब क़त्ताल गो
जब वो दर्द के उन नतीजों से मर गया
जै़द को इबतिदाई सबब की वजह से क़ातिल कहो
आँ वजा'-हा रा बदू मंसूब दार
गर चे हस्त आँ जुम्लः सुन'-ए-किर्दगार
उन दर्दों को उस की तरफ़ मंसूब कर
अगरचे वो सब अल्लाह की कारफ़रमाई है
हम-चुनीं किश्त-ओ-दम-ओ-दाम-ओ-जिमा'
आँ मवालीदस्त हक़ रा मुस्तता'
इसी तरह कमाई और तदबीर और जाल और हमबिस्तरी
वो सब काम अल्लाह के पैदा-करदा और मक़दूर हैं
औलिया रा हस्त क़ुदरत अज़ इलाह
तीर जस्तः बाज़ आरंदश ज़ राह
अल्लाह की जानिब से औलिया को क़ुदरत हासिल है
(कि वो) छूटे हुए तीर को रास्ता से वापस ले आएं
बस्तः दर हा-ए-मवालीद अज़ सबब
चूँ पशेमाँ शुद वली ज़ाँ दस्त-ए-रब
सबब से नतीजों के दरवाज़े के बंद हो जाते हैं
ख़ुदा के हाथ से, जब वली शर्मिंदा होता है
गुफ़्त: ना-गुफ़्तः कुनद अज़ फ़त्ह-ए-बाब
ता अज़ाँ ने सीख़ सोज़द ने कबाब
दरवाज़ा खुला हुआ होने की वजह से वो कहे हुए को न कहा हुआ कर दे
ताकि उस से सीख़ जले न कबाब
अज़ हमः दिल-हा कि आँ नुक्तः शनीद
आँ सुख़न रा कर्द महव-ओ-ना-पदीद
उन तमाम दिलों से जिन्हों ने वो बात सुनी है
उस बात को महव और नाबूद कर दे
गर्त बुरहाँ बायद-ओ-हुज्जत मिहा
बाज़ ख़्वाँ मिन आयतिन औ नुनसिहा
ऐ बुज़ुर्ग ! अगर तुझे हुज्जत और दलील चाहिए
क़ुरआन में से आयत- पढ़ ले अंसौकुमू
आयत-ए-अंसौकुमु ज़िक्री ब-ख़्वाँ
क़ुदरत-ए-निस्याँ निहादन शाँ बदाँ
अंसौकुमू ज़िक्री पढ़ ले
और उन में भला नेकी क़ूव्वत पैदा किए जाने को समझ ले
चूँ ब-तज़्कीर-ओ-ब-निस्याँ क़ादिरंद
बर हमः दिल-हा-ए-ख़लक़ाँ क़ाहिरंद
चूँकि वो याद दिलाने और भुलाने पर क़ादिर हैं
तमाम मख़लूक़ के दिलों पर हाकिम हैं
चूँ ब-निस्याँ बस्त ऊ राह-ए-नज़र
कार न-तवाँ कर्द वर बाशद हुनर
जब उस ने भुला देने के ज़रिया गौर-ओ-फ़िक्र की राह बन्द कर दी
काम नहीं कर सकता है ख़्वाह हुनर मौजूद हो
ख़िल्तुमु सुख़्रिय्यतन अहलस्सुमू
अज़ नुबे बर ख़्वाँ ता अंसौकुमू
मरतबा वालों को तुमने मज़ाक़ बनाया
अंसौकुमू तक क़ुरान में पढ़ो
साहिब-ए-दिह पादशाह-ए-जिस्म-हास्त
साहिब-ए-दिल शाह-ए-दिल-हा-ए-शुमास्त
शहर का हाकिम जिस्मों का बादशाह है
तुम्हारे दिलों का बादशाह, अहल-ए-दिल है
फर्अ' दीद आमद 'अमल बे-हेच शक
पस न-बाशद मर्दुम इल्ला मर्दुमक
बिला शक अमल देखने की शाख़ है
तो इन्सान पुतली के सिवा कुछ न होगा
मन तमाम ईं न-यारम गुफ़्त अज़ आँ
मना' मी आयद ज़ साहिब मर्कज़ाँ
मैं उन को पूरा नहीं बता सकता क्योंकि
मरकज़ वालों की तरफ़ से उसकी मुमानिअत होती है
चूँ फ़रामोशी-ए-ख़ल्क़-ओ-याद-ए-शाँ
बा-वै-स्त-ओ-ऊ रसद फ़रियाद-ए-शाँ
चूँकि लोगों की भूल और उन की याद
उस से मुताल्लिक़ है, और वो उनकी फ़र्याद को पहुँचता है
सद हज़ाराँ नेक-ओ-बद रा आँ बही
मी कुनद हर शब ज़ दिल-हा शाँ तही
वो बाकमाल लाखों अच्छे और बुरे (ख़्यालात रात को)
उनके दिलों से हर दम निकालता है
रोज़ दिलहा रा अज़ाँ पुर मी कुनद
आँ सदफ़-हा रा पुर अज़ दुर्र मी कुनद
दिन में दिलों को उन (ख़्यालात) से पुर करता है
उन सीपों को मोतियों से पुर करता है
आँ हमः अंदेशः-ए-पेशान-हा
मी शनासद अज़ हिदायत जान-हा
तमाम गुज़शता ख़्यालात को
(औलिया की) रूहें पहचान लेती हैं अल्लाह की रहनुमाई की वजह से
पेशः-ओ-फ़रहंग-ए-तू आयद ब-तू
ता दर-ए-अस्बाब ब-गुशायद ब-तू
तेरा पेशा और अक़्ल तेरे पास आ जाते हैं
ताकि तुझ पर अस्बाब का दरवाज़ा खोल दें
पेशः-ए-ज़रगर ब-आहन-गर न-शुद
खू-ए-आँ ख़ुश-ख़ू ब-आँ मुंकिर न-शुद
सुनार का पेशा, लोहार के लिए नहीं होता है
उस ख़ुश अख़लाक़ की आदत उस मुनकर की तरफ़ नहीं जाती है
पेश-हा-ओ-ख़ुल्क़-हा हम-चु जिहाज़
सू-ए-ख़स्म आयन्द रोज़-ए-रस्त-ख़ेज़
पेशे और अख़लाक़ सामान-ए-सफ़र की तरह
क़यामत के दिन मालिक की तरफ़ आएंगे
पेश-हा-ओ-ख़ुल्क़-हा अज़ बा'द-ए-ख़्वाब
वापस आयद हम ब-ख़स्म-ए-ख़ुद शिताब
पेशे और अख़लाक़, सोने के बाद
अपने मालिक की तरफ़ फ़ौरन लौट आते हैं
पेश-हा-ओ-अंदेश-हा दर वक़्त-ए-सुब्ह
हम बदाँ-जा शुद कि बूद आँ हुस्न-ओ-क़ुब्ह
पेशे और ख़्यालात सुबह के वक़्त
उसी जगह पहुच जाते हैं जहाँ वो हुस्न और क़ुबह (का सबब) थे
चूँ कबूतर-हा-ए-पैक अज़ शहर-हा
सू-ए-शहर ख़्वेश आरद बहर-हा
नामा बरी के कबूतरों की तरह, शहरों से
अपने शहर की जानिब (नामा-ओ-पयाम के) हिस्से लाते हैं
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