बाज़ तर्जीह निहादन-ए-शेर जेहद रा बर तवक्कुल
शेर का तवक्कुल पर कोशिश को दूसरी बार तर्जीह देना
गुफ़्त शेर आरे वले रब्बुल-'इबाद
नर्दबाने पेश-ए-पा-ए-मा निहाद
शेर ने कहा, हाँ लेकिन बंदों के परवरदिगार ने
हमारे पैरों के पास सीढ़ी रख दी है
पाय: पाय: रफ़्त बायद सू-ए-बाम
हस्त जब्री बूदन ईंं-जा तम'-ए-ख़ाम
कोठे पर रफ़्ता-रफ़्ता चढ़ना चाहिए
इस मक़ाम पर जब्री होना ख़ाम-ख़याली है
पा-ए-दारी चूँ कुनी ख़ुद रा तु लंग
दस्त-दारी चूँ कुनी पिन्हाँ तु चंग
तू पैर रखता है, क्यूँ अपने को लंगड़ा बनाता है
तू हाथ रखता है, पंजा को क्यूँ छुपाता है
ख़्वाजः चूँ बेले ब-दस्त-ए-बंद: दाद
बे-ज़बाँ मा'लूम शुद ऊ रा मुराद
आक़ा ने, जब ग़ुलाम को बेलचा थमा दिया
ब-ग़ैर कुछ कहे उसका मक़्सद मा’लूम हो गया
दस्त-ए-हम-चूँ बेल इशारत-हा-ए-ऊस्त
आख़िर अन्देशी 'इबारत-हा-ए-ऊस्त
बेलचा की तरह, हाथ, उस के इशारे हैं
जिसका मतलब अंजाम-बीनी है
चूँ इशारत-हाश रा बर जाँ नेही
दर वफ़ा-ए-आँ इशारत जाँ देही
जब तू उसके इशारों को दिल पर जमा लेगा
और उन इशारों को पूरा करने में जान दे देगा
पस इशारत-हा-ए-असरारत देहद
बार बर दारद ज़ तू कारत देहद
तब उसके इशारे तुझे राज़ ’अता करेंगे
तेरा बोझ हल्का कर देंगे, तुझे काम देंगे
हामिली महमूल गर्दानद तुरा
क़ाबिली मक़बूल गर्दानद तुरा
तू बार-बर-दार है तो तुझे सवार कर देगा
तू (हुक्म) को मानने वाला है तो तुझे मक़बूल बना देगा
क़ाबिल-ए-अम्र-ए-वै क़ाबिल शवी
वस्ल जूए बा'द अज़ आँ वासिल शवी
तू उसके हुक्म को क़ुबूल करने वाला है (दरबार) के क़ाबिल हो जाएगा
तू वस्ल का तालिब है, उ के बा’द विसाल वाला बन जाएगा
स'ई-ए-शुक्र-ए-ने'मतश क़ुदरत बुवद
जब्र-ए-तू इंकार-ए-आँ ने'मत बुवद
कोशिश, क़ुदरत की ने’मत का शुक्र अदा करना है
और तेरा जब्री होना उस ने’मत का इंकार है
शुक्र-ए-क़ुदरत क़ुदरतत अफ़्ज़ूँ कुनद
जब्र ने'मत अज़ कफ़त बैरूँ कुनद
ने’मत पर शुक्र अदा करना तेरी ने’मत को बढ़ाएगा
और ने’मत का कुफ़्र (उसको) तेरे क़ब्ज़ा से निकाल देगा
जब्र-ए-तू ख़ुफ़्तन बुवद दर रह म-ख़ुस्ब
ता ब-बीनी आँ दर-ओ-दरगः म-ख़ुस्ब
अपने आपको मजबूर समझना, सो जाना है, रास्ता में न सो
जब तक उस दर और दरगाह को न देख ले, न सो
हाँ म-ख़ुस्ब ऐ जब्री-ए-बे-ए'तिबार
जुज़ ब-ज़ेर-ए-आँ दरख़्त-ए-मेवः-दार
ऐ बे-भरोसा जब्री हरगिज़ न सोना
उस मेवा-दार दरख़्त के नीचे के सिवा
ता कि शाख़ अफ़्शाँ कुनद हर लहज़ः बाद
बर सर-ए-ख़ुफ़्तः ब-रेज़द नुक़्ल-ओ-ज़ाद
ताकि हवा हर लहज़ा शाख़ को हिलाए
(और) हमेशा तेरे लिए नुक़्ल-ओ-तोशा मुहय्या करती रहे
जब्र ख़ुफ़्तन दर मयान-ए-रहज़नाँ
मुर्ग़-ए-बे-हंगाम के याबद अमाँ
ख़ुद को मजबूर समझना, डाकूओं के दरमियान सो जाना है
बे-वक़्त अज़ान देने वाला मुर्ग़ कब बचता है
वर इशारत-हाश रा बीनी ज़नी
मर्द पिंदारी-ओ-चूँ बीनी ज़नी
अगर उसके इशारों पर तू नाक चढ़ाएगा
तू अपने आपको मर्द समझता है, और जब ग़ौर करेगा तो ’औरत है
ईं क़द्र 'अक़्ले कि दारी गुम शवद
सर कि 'अक़्ल अज़ वै ब-पर्रद दुम शवद
तू जिस क़दर ’अक़्ल रखता है, वो गुम हो जाएगी
जिस सर से अक़ल उड़ जाए वो दुम बन जाता है
ज़ाँ-कि बे-शुक्री बुवद शूम-ओ-शनार
मी बरद बे-शुक्र रा दर का'र-ए-नार
चूँकि ना-शुक्री, मनहूस और ना-मुबारक होती है
ना-शुक्रे को जहन्नम के गढ़े में ले जाती है
गर तवक्कुल मी कुनी दर कार कुन
कस्ब कुन पस तकियः बर जब्बार कुन
अगर तू तवक्कुल करता है, कारोबार में कर
कमा, और फिर अल्लाह पर भरोसा कर
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