बयान-ए-आँकि ईं इख़्तिलाफ़ात दर सूरत-ए-रविश अस्त ने दर हक़ीक़त-ए-राह
इस बयान में कि रफ़्तार की सूरत में इख़्तिलाफ़ है न कि रास्ता की हक़ीक़त में
ऊ ज़ यक रंगी-ए-'ईसा बू न-दाश्त
वज़ मिज़ाज-ए-ख़ुम्म-ए-'ईसा ख़ू न-दाश्त
उसको हज़रत-ए-’ईसा की यक-रंगी की ख़ुशबू न पहुँची थी
और न हज़रत-ए-’ईसा के ख़ुम के मिज़ाज की ’आदत रखता था
जामः-ए-सद रंग अज़ आँ ख़ुम्म-ए-सफ़ा
सादः-ओ-यक रंग गश्ते चूँ ज़िया
उस सफ़ाई के ख़ुम से सद रंगे कपड़े
नूर की तरह सादा और यक-रंग हो जाते थे
नीस्त यक-रंगे कज़ ऊ ख़ेज़द मलाल
बल मिसाल-ए-माही-ओ-आब-ए-ज़ुलाल
ऐसी यकरंगी नहीं जिससे तबी'अत उकता जाये
बल्कि उसकी मिसाल, मछली और साफ़ पानी की है
गरचे दर ख़ुश्की हज़ाराँ रंग-हास्त
माहियाँ रा बा युबूसत जंग-हास्त
अगरचे ख़ुशकी में हज़ारों रंग हैं
लेकिन मछलियों को ख़ुश्की से बड़ी मुख़ालफ़त है
कीस्त माही चीस्त दरिया दर मसल
ता बदाँ मानद मलिक अज़्ज़-ओ-जल
कौन है मछली, क्या है दरिया, मिसाल देने में
कि उस से ख़ुदा-ए-’अज़्ज़-ओ-जल्ल मुशाबेह हो
सद हज़ाराँ बहर-ओ-माही दर वुजूद
सज्दे आरद पेश-ए-आँ इक्राम-ओ-जूद
मौजूदात में से लाखों दरिया और मछलियाँ
उस बहर-ए -सख़ावत के सामने सर ब-सुजूद हैं
चंद बारान-ए-'अता बाराँ शुदः
ता बदाँ आँ बहर दुर्र अफ़्शाँ शुदः
बख़्शिश की बहुत सी बारिशें बरसीं
यहाँ तक कि उनसे वो समुंद्र मोती बरसाने वाला बना
चंद ख़ुर्शीद-ए-करम अफ़रोख़्तः
ता कि अब्र-ओ-बहर जूद आमोख़्तः
करम के बहुत से सूरज तुलू’ हुए
तब बादल और समुंद्र ने सख़ावत सीखी
परतव-ए-दानिश ज़दः बर ख़ाक-ओ-तीं
ता शुदः दानः पज़ीरंदः ज़मीं
मिट्टी और पानी पर उसकी ज़ात की रौशनी पड़ी
तब ज़मीन, दाने को क़ुबूल करने वाली बनी
ख़ाक अमीन-ओ-हर चे दर वै काश्ती
बे-ख़ियानत जिन्स-ए-आँ बर्दाश्ती
ज़मीन अमानत-दार (बनी) और जो कुछ तू ने उसमें बोया
ब-ग़ैर किसी ख़ियानत के उसकी जिन्स को उठाया
ईं अमानत ज़ाँ अमानत याफ़तस्त
काफ़ताब-ए-'अद्ल बर वै ताफ़तस्त
(ज़मीन) ने ये अमानत-दारी उसकी मेहरबानी से पाई है
क्यूँकि उस पर इन्साफ़ का सूरज चमका है
ता निशान-ए-हक़ ने-यारद नौ बहार
ख़ाक सिर्र-हा रा न-कर्दः आश्कार
जब तक मौसम-ए-बहार अल्लाह का हुक्म बन कर नहीं आता
मिट्टी सब्ज़े को ज़ाहिर नहीं करती
आँ जवादे कि जमादे रा ब-दाद
ईं ख़बर-हा वीं अमानत वीं सिदाद
वो सख़ी जिसने जमादात कर दिए
ये पैग़ामात और ये अमानत और ये राह-रवी
मर जमादे रा कुनद फ़ज़्लश ख़बीर
'आक़िलाँ रा कर्द: क़ह्र-ए-ऊ ज़रीर
उसका करम हर जमाद को बा-ख़बर बना देता है
और उसका क़हर ’अक़्ल-मंदों को अँधा कर देता है
जान-ओ-दिल रा ताक़त-ए-आँ जोश नीस्त
बा कि गोयम दर जहाँ यक गोश नीस्त
जान और दिल में उस जोश की ताक़त नहीं है
किससे कहूं? दुनिया में कोई कान नहीं है
हर कुजा गोशे बुद अज़ वै चश्म गश्त
हर कुजा संगे बुद अज़ वै यश्म गश्त
जहाँ कहीं कान था उस जोश की वजह से आँख बन गया
और जहाँ कहीं पत्थर था वो यश्ब बन गया
कीमिया साज़स्त चे बुवद कीमिया
मो'जिज़ः बख़्श अस्त चे बुवद सीमिया
वो कीमिया-साज़ है, कीमिया क्या होती है?
मो’जिज़ा ’इनायत करने वाला है, सीमिया क्या होती है
ईं सना गुफ़्तन ज़ मन तर्क-ए-सनास्त
कीं दलील-ए-हस्ती-ओ-हस्ती ख़तास्त
मेरा ये ता’रीफ़ करना, ता’रीफ़ न करना है
इसलिए कि ये (अपने) वुजूद की दलील है और वुजूद का (एहसास) ग़लती है
पेश-ए-हस्त-ए-ऊ ब-बायद नीस्त बूद
चीस्त हस्ती पेश-ए-ऊ कूर-ओ-कबूद
उसके वुजूद के सामने नीस्त हो जाना चाहिए
हस्ती क्या होती है? उसके सामने अँधी और सियाह-पोश है
गर न-बूदे कूर अज़ ऊ ब-गुदाख़्ते
गर्मी-ए-ख़ुर्शीद रा ब-शनाख़्ते
अगर अंधी न होती उससे पिघल जाती
आफ़ताब की गर्मी को पहचानती
वर न-बूदे ऊ कबूद अज़ ता'ज़ियत
कै फ़सुर्दे हम-चु यख़ ईं नाहियत
अगर वो (हस्ती) ता’ज़ियत की वजह से सियाह-पोश न होती
तो इस जानिब (दुनिया) बर्फ़ की तरह क्यूँ ठिठुरती
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