बुर्दन-ए-बादशाह आँ तबीब रा बरसर-ए-बीमार ता-हाल-ए-ऊ रा ब-बीनद
रोचक तथ्य
हिंदी अनुवाद: सज्जाद हुसैन
बुर्दन-ए-बादशाह आँ तबीब रा बरसर-ए-बीमार ता-हाल-ए-ऊ रा ब-बीनद
बादशाह का ग़ैबी तबीब को बीमार के पास ले जाना
चूँ गुज़श्त आँ मज्लिस-ओ-ख़्वान-ए-करम
दस्त-ए-ऊ-ब-गिरिफ़्त-ओ-बुर्द अंदर हरम
जब वो मज्लिस और ख़्वान-ए-करम ख़त्म हुआ
उसने उसका हाथ पकड़ा और हरम-सरा में लेकर गया
क़िस्सःए-ई रंजूर-ओ-रंजूरी ब-ख़्वांद
बा'द अज़ आँ दर पेश रंजूरश न-शांद
बीमार, और मरज़ का हाल सुनाया
उस के बा’द उसको बीमार के सामने बिठाया
रंग-ओ-रू-ओ-नब्ज़-ओ-क़ारूरः बदीद
हम 'अलामातश हम अस्बाबश शुनीद
उसने चेहरा का रंग और नब्ज़ और क़ारूरा देखा
उसकी ‘अलामतें और अस्बाब भी सुनीं
गुफ़्त हर दारू कि ईशाँ कर्द: अन्द
आँ 'इमारत नीस्त वीराँ कर्द: अन्द
उसने कहा, जो दवा इन्होंने की है
वो ता’मीर नहीं है, उन्होंने वीरान किया है
बे-ख़बर बूदंद अज़ हाल-ए-दरून
अस्त'ईज़ुल्लाहा-मिम्मा-यफ़्तरून
वो अंदरूनी हालात से ला-‘इल्म थे
जो उन्होंने ग़लत-बयानी की है, उससे ख़ुदा की पनाह चाहता हूँ
दीद रंज-ओ-कश्फ़ शुद बर वै न-हुफ़्त
लैक पिन्हाँ कर्द-ओ-बा-सुल्ताँ न-गुफ़्त
उसने मरज़ देखा और राज़ उस पर खुल गया
लेकिन उसने छुपाया और बादशाह से न कहा
रंजिश अज़ सौदा-ओ-अज़ सफ़रा न-बूद
बू-ए-हर हैज़ुम पदीद आयद ज़े-दूद
उसका मरज़ सफ़रा और सौदा की वजह से न था
लकड़ी की बू, धुवें से ज़ाहिर हो जाती है
दीद अज़ ज़ारेश कू ज़ार-ए-दिलस्त
तन ख़ुशस्त-ओ-ऊ गिरफ़्तार-ए-दिलस्त
उसकी बीमारी से वो समझ गया कि वो दिल की बीमार है
बदन ठीक है और वो दिल (की बीमारी) में गिरफ़्तार है
आ'शिक़ी पैदास्त अज़ ज़ारी-ए-दिल
नीस्त बीमारी चू बीमारी-ए-दिल
दिल की बीमारी से ‘आशिक़ी ज़ाहिर है
दिल की बीमारी जैसी कोई बीमारी नहीं है
'इल्लत-ए-'आशिक़ ज़े-'इल्लतहा जुदास्त
'इश्क़ उस्तुर्लाब-ए-असरार-ए-ख़ुदासत
’आशिक़ की बीमारी, दूसरे लोगों की बीमारियों से जुदा है
‘इश्क़, ख़ुदा के भेदों का उस्तुर्लाब है
'आशिक़ी गर ज़ीं सर-ओ-गर ज़ाँ सरस्त
'आक़िबत मा रा बदाँ शह रहबरस्त
‘आशिक़ी ख़्वाह इधर की ख़्वाह उधर की है
बिल-आख़िर, उस शाह तक हमारी राहनुमा है
हर चे गोयम 'इश्क़ रा शरह-ओ-बयाँ
चुँ ब-'इश्क़ आयम ख़जिल बाशम अज़ आँ
मैं ‘इश्क़ की तशरीह और बयान जो कुछ करता हूँ
जब ‘इश्क़ में पड़ता हूँ तो उससे शर्मिंदा होता हूँ
गर चे तफ़्सीर-ए-ज़बाँ रौशन गरस्त
लैक 'इश्क़-ए-बे-ज़बाँ रौशन तरस्त
अगरचे ज़बाँ की तशरीह रौशनी डालने वाली है
लेकिन बे-ज़बान ‘इश्क़, ज़ियादा रौशन है
चुँ क़लम अंदर नविश्तन मी-शिताफ़्त
चुँ ब-'इश्क़ आमद क़लम बर ख़ुद शिगाफ़्त
जब क़लम लिखने में मसरूफ़ था
जब ‘इश्क़ पर पहुँचा ख़ुद क़लम में शिगाफ़ आ गया
'अक़्ल दर शरहश चू ख़र दर गिल ब-ख़ुफ़्त
शर्ह-ए-'इश्क़-ओ-'आशिक़ी हम 'इश्क़ गुफ़्त
‘अक़्ल, उसकी शरह में मिट्टी में फंसे गधे की तरह हो गई
‘इश्क़ और ‘आशिक़ी की शरह भी ‘इश्क़ ने ही की है
आफ़ताब आमद दलील-ए-आफ़ताब
गर दलीलत बायद अज़ वय रू म-ताब
आफ़ताब की दलील, ख़ुद आफ़ताब बना
अगर तुझे दलील दरकार है तो उससे मुँह न मोड़े
अज़ वय अर सायः निशाने मी-देहद
शम्स हर दम नूर-ए-जाने मी-देहद
साया, अगर उसका पता देता है
सूरज, हर वक़्त जान को नूर देता है
सायः ख़्वाब आरद तुरा हम चुँ समर
चुँ बर आयद शम्स इंशक़्क़ल-क़मर
साया, क़िस्सा-गोई की तरह तुझे सुलाता है
सूरज जब निकलता है चाँद शक़ हो जाता है
ख़ुद ग़रीबे दर जहाँ चुँ शम्स नीस्त
शम्स-ए-जाँ बाक़ीस्त ऊ रा अम्स नीस्त
दुनिया में सूरज जैसा कोई मुसाफ़िर नहीं है
रूह का सूरज बाक़ी है जिसके लिए कल गुज़श्ता नहीं है
शम्स दर ख़ारिज अगर चे हस्त फ़र्द
मी-तवाँ हम मिस्ल-ए-ऊ तस्वीर कर्द
सूरज, अगरचे ख़ारिज में एक ही है
उस जैसा भी तसव्वुर किया जा सकता है
शम्स-ए-जाँ कू ख़ारिज आमद अज़ असीर
न-बुवदश दर ज़ेहन-ओ-दर ख़ारिज नज़ीर
लेकिन वो सूरज से बाला-ओ-मस्त है
उसके ज़ेहन और ख़ारिज में कोई मिसाल नहीं है
दर तसव्वुर ज़ात-ए-ऊ रा गुंज कू
ता दर आयद दर तसव्वुर मिस्ल-ए-ऊ
तसव्वुर में उसकी ज़ात की गुंजाइश कहाँ है
कि तसव्वुर में उसकी मिसाल आ सके
चुँ हदीस-ए-रू-ए-शम्सुद्दीं रसीद
शम्स-ए-चारुम आसमाँ सर दर कशीद
जब शम्सुद्दीन के चेहरे की बात आ गई
चौथे आसमान के सूरज ने मुँह छिपा लिया
वाजिब आयद चूँकि आमद नाम-ए-ऊ
शर्ह रम्ज़े गुफ़्तन अज़ इन'आम-ए-ऊ
(अब) जब कि मैंने उनका नाम लिया है तो ज़रूरी हो गया
उनके इन’आम की थोड़ी सी शर्ह करना
ईं नफ़स जाँ दामनम बर ताफ़तस्त
बू-ए-पैराहान-ए-यूसुफ़ याफ़तस्त
इस वक़्त मेरी रूह मुस्त’इद हो गई है
इसने यूसुफ़ के लिबास की ख़ुशबू सूँघी है
अज़ बरा-ए-हक़्क़-ए-सोहबत सालहा
बाज़ गो हाले अज़ आँ ख़ुश-हालहा
बरसों की सोहबत का हक़ अदा करने के लिए
उस ख़ुश-अहवाल का कुछ हाल बयान कर
ता ज़मीन-ओ-आसमाँ ख़ंदाँ शवद
'अक़्ल-ओ-रूह-ओ-दीदः सद चंदाँ शवद
ताकि ज़मीन और आसमान हँस पड़े
‘अक़्ल, रूह और आँखें सौ गुना हो जाए
ला तुकल्लिफ़्नी फ़-इन्नी फ़िल-फ़ना
कल्लत अफ़्हामी फ़ला उहसी सना
मुझे मजबूर न कर मैं फ़ना में हूँ
मेरी समझ कुंद है, मैं पूरी ता’रीफ़ नहीं कर सकता
कुल्लु शैइन क़ालहु ग़ैरुल-मुफ़ीक़
इन तकल्लफ़ औ तसल्लफ़ ला यलीक़
मद-होश जो बात भी कहे
ख़्वाह तकल्लुफ़ करे या दराज़-बयानी,मुनासिब नहीं है
मन चे गोयम यक रगम हुश्यार नीस्त
शर्ह-ए-आँ यारे कि ऊ रा यार नीस्त
मैं क्या कहूं? मेरी एक रग भी होश में नहीं है
उस यार की तफ़्सील जिसका कोई शरीक नहीं है
शर्ह-ए-ईं हिज्रान-ओ-ईं ख़ून-ए-जिगर
ईं ज़माँ ब-गुज़ार ता-वक़्त-ए-दिगर
इस फ़िराक़ और खून-ए-जिगर की तफ़सील
अब दूसरे वक़्त के लिए छोड़
क़ाल अत्'इमनी फ़-इन्नी जा'इउन
व-अ'तजिल फ़ल-वक़्तु सैफ़ुन क़ाति'उन
उसने कहा, मुझे खिला, मैं भूकी हूँ
जल्दी कर कि वक़्त तेज़ तलवार है
सूफ़ी इब्न-उल-वक़्त बाशद ऐ रफ़ीक़
नीस्त फ़र्दा गुफ़्तन अज़ शर्त-ए-तरीक़
ऐ दोस्त! सूफ़ी इब्नुल-वक़्त होता है
कल का हवाला देना तरीक़ (सुलूक) के मुनासिब नहीं है
तू मगर ख़ुद मर्द-ए-सूफ़ी नीस्ती
हस्त रा अज़ नसियः ख़ेज़द नीस्ती
शायद तू ख़ुद सूफ़ी नहीं है
नक़्द की उधार से तबाही होती है
गुफ़्तमश पोशीदः ख़ुश-तर सिर्र-ए-यार
ख़ुद तू दर ज़िम्न-ए-हिकायत गोश दार
मैंने उससे कहा कि यार का राज़ छिपा हुआ अच्छा होता है
अलबत्ता तू उसको क़िस्सा के ज़िम्न में सुन ले
ख़ुश-तर आँ बाशद कि सिर्र-ए-दिलबराँ
गुफ़्त: आयद दर हदीस-ए-दीगराँ
बेहतर यही होता है कि मा’शूक़ों का राज़
दूसरों के क़िस्सा में बयान हो जाए
गुफ़्त मक्शूफ़-ओ-बरहना-ओ-बे-ग़ुलूल
बाज़ गो दफ़्'अम म-देह ऐ बुल-फ़ुज़ूल
खुल्लम-खुल्ला, बे-परवा और बे-ख़ियानत के बात कह दे
ऐ बकवासी (उलझी हुई बातें कर के )मुझे न सता
पर्दः-बरदार-ओ-बरहनः गो कि मन
मी-न-ख़स्बम बा-सनम बा-पैरहन
पर्दे उठा दे और बे-पर्दा कह क्यूँकि मैं
महबूब के साथ पैरहन में नहीं समा सकती
गुफ़्तम अर उ'र्यां शवद ऊ दर 'अयाँ
ने तू मानी ने कनारत ने मयाँ
मैंने कहा, अगर वो आँखों के सामने बे-पर्दा होगा
न तू रहेगी, न किनारा, न वस्त
आरज़ू मी-ख़्वाह लैक अंदाज़ह ख़्वाह
बर न-ताबद कोह रा यक बर्ग-ए-काह
मुराद माँग, लेकिन अंदाज़ा के मुताबिक़ माँग
घास का एक तिनका पहाड़ को बर्दाश्त नहीं कर सकता
आफ़्ताबे कज़ वै ईं 'आलम फ़रोख़्त
अंदके गर पेश आयद जुमल: सोख़्त
वो सूरज जिससे ये सारा ‘आलम रौशन है
अगर थोड़ा आगे आ जाए तो सबको जला दे
फ़त्नः-ओ-आशोब-ओ-ख़ूँरेज़ी मजो
बेश अज़ींं अज़ 'शम्स'-ए-तबरेज़ी म-गो
फ़ित्ना-ओ-फ़साद और तबाही की कोशिश न कर
और इससे ज़ियादा शम्स तबरेज़ के बारे में जुस्तुजू न कर
ईं न-दारद आख़िर अज़ आग़ाज़ गो
रौ तमाम-ए-ईं हिकायत बाज़ गो
इस बात का इख़्तिताम नहीं है शुरू’ से बात कह
जा, इस तमाम क़िस्से को फिर बयान कर
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