Sufinama

फ़िरिस्तादन-ए-शाह रसूलाँ ब-समरक़ंद ब-आवुर्दन-ए-ज़रगर

रूमी

फ़िरिस्तादन-ए-शाह रसूलाँ ब-समरक़ंद ब-आवुर्दन-ए-ज़रगर

रूमी

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    फ़िरिस्तादन-ए-शाह रसूलाँ ब-समरक़ंद ब-आवुर्दन-ए-ज़रगर

    बादशाह का एलचियों को समरक़ंद रवाना करना, उस सुनार की तलाश में

    शह फ़िरस्ताद आँ तरफ़ यक दो रसूल

    हाज़िक़ान-ओ-काफ़ियान-ए-बस 'उदूल

    फिर एक दो क़ासिद उस तरफ़ रवाना किए

    जो माहिर, कार-गुज़ार और बहुत नेक थे

    ता समरक़ंद आमदंद आँ दो रसूल

    अज़ बराए ज़रगर-ए-शंग-ए-फ़ुज़ूल

    वो दोनों सरदार समरक़ंद में आए

    उस सुनार के पास बादशाह की तरफ़ से ख़ुश-ख़बरी लेकर

    कए लतीफ़ उस्ताद-ए-कामिल मा'रिफ़त

    फ़ाश अंदर शहर-हा अज़ तू सिफ़त

    कि नाज़ुक काम करने वाले उस्ताद पूरी शनाख़्त वाले

    शहरों में तेरी ख़ूबी फैली हुई है

    नक फुलाँ शह अज़ बरा-ए-ज़र-गरी

    इख़्तियारत कर्द ज़ीरा मेहतरी

    अब फ़ुलाँ बादशाह ने ज़ेवर घड़ने के लिए

    तुझे चुना है क्यूँकि तू (ज़र-गरी) में सरदार है

    ईं-कि ईं ख़िलअ'त ब-गीर-ओ-ज़र्र-ओ-सीम

    चूँ बियाई ख़ास बाशी-ओ-नदीम

    अब ये जोड़ा और सोना, चाँदी ले

    (और) जब तू आएगा, ख़ास और हम-नशीं होगा

    मर्द माल-ओ-ख़िल्'अत-ए-बिस्यार दीद

    ग़र्रः शुद अज़ शहर-ओ-फ़रज़ंदाँ बुरीद

    मर्द ने जब बहुत सा माल और जोड़ा ख़िल्’अत देखा

    तो फ़रेफ़्ता हो गया (और) शहर और औलाद से जुदा हो गया

    अंदर आमद शादमाँ दर राह मर्द

    बे-ख़बर काँ शाह क़स्द-ए-जानश कर्द

    मर्द, ख़ुशी-ख़ुशी रास्ते पर पड़ गया

    (इस से) बे-ख़बर कि बादशाह ने उसकी जान का इरादा किया है

    अस्ब-ए-ताज़ी बर नशिस्त-ओ-शाद ताख़्त

    ख़ूँ ब-हा-ए-ख़्वेश रा ख़िल'अत शनाख़्त

    ‘अरबी घोड़े पर बैठा, और ख़ुशी-ख़ुशी दौड़ा

    (और) अपने ख़ून के ‘इवज़ को शाही जोड़ा समझा

    शुदः अंदर सफ़र बा-सद रज़ा

    ख़ुद ब-पा-ए-ख़्वेश ता सू-उल-क़ज़ा

    अफ़सोस कि हँसी-ख़ुशी सफ़र करने वाला

    अपने पाँव से बुरी मौत की तरफ़ रवाना हुआ है

    दर ख़यालश मुल्क-ओ-'इज़्ज़-ओ-मेहतरी

    गुफ़्त 'इज़्राईल रू आरे बरी

    उसके ख़याल में तो हुकूमत-ओ-‘इज़्ज़त और सरदारी थी

    मलकुल-मौत ने कहा कि जा हाँ ये सब चीज़ें तू हासिल करेगा

    चूँ रसीद अज़ राह आँ मर्द-ए-ग़रीब

    अंदर आवुर्दश ब-पेश-ए-शह तबीब

    जब वो मुसाफ़िर रास्ता तय कर के पहुँचा

    तो तबीब उसको बादशाह के सामने लाया

    सू-ए-शाहनशाह बुर्दनदश ब-नाज़

    ता ब-सोज़द बर-सर-ए-शम्अ-'ए-तराज़

    उसको बादशाह के सामने बड़े नाज़ के साथ ले गया

    ताकि उसको तराज़ की शम्अ’ के सर पर जला दे

    शाह दीद रा बसी ता'ज़ीम कर्द

    मख़्ज़न-ए-ज़र रा बदू तस्लीम कर्द

    बादशाह ने उसको देखा और बहुत ता’ज़ीम की

    (और) सोने का ख़ज़ाना उसके सुपुर्द कर दिया

    पस हकीमश गुफ़्त कए सुल्तान-ए-मह

    आँ कनीज़क रा बदीं ख़्वाजः ब-देह

    फिर तबीब ने उससे कहा बड़े बादशाह

    वो लौंडी उस सरदार (सुनार) को दे दे

    ता कनीज़क दर विसालश ख़ुश शवद

    आब-ए-वस्लश दफ़्'-ए-आँ आतिश शवद

    ताकि लौंडी उसके वस्ल से ख़ुश हो जाए

    और उसके वस्ल का पानी उस आग का दाफ़े’ हो

    शह बदो बख़शीद आँ मह-रू-ए-रा

    जुफ़्त कर्द आँ हर-दो सोहबत जू-ए-रा

    बादशाह ने वो चाँद से मुखड़े वाली उसको बख़्श दी

    उन दोनों वस्ल चाहने वालों का निकाह कर दिया

    मुद्दत-ए-शश माह मी राँदंद काम

    ता ब-सेहत आमद आँ दुख़्तर तमाम

    छ: महीना (की मुद्दत) तक उन्होंने मक़्सद-बर-आरी की

    यहाँ तक कि उस लड़की को पूरी सेहत हो गई

    बाद अज़ाँ अज़ बहर-ए-ऊ शर्बत ब-साख़्त

    ता ब-ख़ुर्द-ओ-पेश-ए-दुख़्तर मी गुदाख़्त

    उसके बा’द उस (तबीब) ने उसके लिए शर्बत बनाया

    जिस को वो पीता और लड़की सामने घुलता था

    चूँ ज़े रंजूरी जमाल-ए-ऊ न-मांद

    जान-ए-दुख़्तर दर वबाल-ए-ऊ न-मांद

    जब मरज़ की वजह से उसका हुस्न रहा

    तो लड़की की जान उसके वबाल में रही

    चूँकि ज़िश्त-ओ-ना-ख़ुश-ओ-रुख़ ज़र्द शुद

    अंदक अंदक दर दिल-ए-ऊ सर्द शुद

    चूँकि, बद-सूरत और ना-गवार और ज़र्द-रू हो गया

    आहिस्ता-आहिस्ता उसके दिल में (‘इश्क़) ठंडा हो गया

    'इश्क़-हाए कज़ पए रंगे बुवद

    'इश्क़ न-बुवद 'आक़िबत नंगे बुवद

    वो ‘इश्क़, जो रंग की ख़ातिर होता है

    ‘इश्क़ नहीं होता, अंजाम-ए-कार ज़िल्लत-ओ-रुस्वाई होती है

    काश काँ हम नंग बूदे यक्सरी

    ता न-रफ़्ते बर वे आँ बद-दावरी

    काश वो ‘आर (हुस्न-ए-ज़ाहिरी) पाइदार होता

    ताकि उस पर ये ज़ुल्म होता

    ख़ूँ दवीद अज़ चश्म-ए-हम-चूँ जू-ए-ऊ

    दुश्मन-ए-जान-ए-वै आमद रू-ए-ऊ

    उसकी नहर जैसी आँखों से ख़ून बहने लगा

    (और) उसका चेहरा उसकी जान का दुश्मन बना

    दुश्मन-ए-ताऊस आमद पर्र-ए-ऊ

    बसी शह रा ब-कुश्तः फ़र्र-ए-ऊ

    मोर के दुश्मन उसके पर हुए

    (और) बहुत से शाहों को उनकी शान-ओ-शौकत ने मारा

    गुफ़्त मन आँ आहूवम कज़ नाफ़-ए-मन

    रेख़्त आँ सय्याद ख़ून-ए-साफ़-ए-मन

    उसने कहा, मैं वो हिरन हूँ कि मेरी नाफ़ से

    उस सय्याद ने मेरा साफ़ ख़ून बहा दिया

    मन आँ रूबाह-ए-सहरा कज़ कमीं

    सर बुरीदंदश बरा-ए-पोस्तीं

    (मुख़ातिब) मैं जंगल की वो लोमड़ी हूँ कि घात में बैठ कर

    पोस्तीन के लिए उन्होंने मेरा सर काट लिया

    मन आँ पीले कि ज़ख़्म-ए-पील-बाँ

    रेख़्त ख़ूनम अज़ बरा-ए-उस्तुख़्वाँ

    मैं वो हाथी हूँ कि पील-बाँ के ज़ख़्म ने

    हड्डियों की ख़ातिर मेरा ख़ून बहा दिया

    आँ-कि गश्तस्तम पय-ए-मादून-ए-मन

    मी न-दानद कि न-ख़सपद ख़ून-ए-मन

    जिस ने मुझे मुझसे कम-तर की ख़ातिर मार डाला

    उसको मा’लूम नहीं कि मेरा ख़ून राएगाँ जाएगा

    बर मनस्त इमरोज़-ओ-फ़र्दा बर वैयस्त

    ख़ून-ए-चूँ मन कस चुनीं ज़ाए' के अस्त

    मुसीबत आज मुझ पर और कल उस पर है

    मुझ जैसे आदमी का ख़ून यूँ राएगाँ कैसे हो सकता है

    गरचे दीवार अफ़्कनद साया-दराज़

    बाज़ गर्दद सू-ए-ऊ आँ साया-बाज़

    अगरचे दीवार लंबा साया डालती है

    लेकिन वो साया फिर उसकी तरफ़ लौटता है

    ईं-जहाँ कोहस्त-ओ-फे़'ल-ए-मा-निदा

    सू-ए-मा आयद निदा-हा रा सदा

    ये दुनिया एक पहाड़ है और हमारा फ़े’ल आवाज़

    आवाज़ों की गूँज हमारी तरफ़ लौटती है

    ईं ब-गुफ़्त-ओ-रफ़्त दर दम ज़ेर-ए-ख़ाक

    आँ कनीज़क शुद ज़-'इश्क़-ओ-रंज पाक

    ये कहा और फ़ौरन ज़ेर-ए-ज़मीन चला गया

    वो लौंडी दर्द-ओ-ग़म से नजात पा गई

    ज़ाँ-कि 'इश्क़-ए-मुर्दगाँ पायंदः नीस्त

    ज़ाँ-कि मुर्दः सू-ए-मा आयंदः नीस्त

    इसलिए कि मुर्दों से ‘इश्क़ पायदार नहीं है

    इसलिए कि मुर्दा हमारी तरफ़ वापस आने वाला नहीं है

    'इश्क़ ज़िंदः दर रवाँ-ओ-दर बसर

    हर-दमे बाशद ज़े-ग़ुन्चः ताज़ः-तर

    ज़िंदा का ‘इश्क़ रूह और आँख (बातिन-ओ-ज़ाहिर) हैं

    हर वक़्त ग़ुन्चा से भी ज़ियादा तर-ओ-ताज़ा रहता है

    'इश्क़ आँ ज़िंदः कजीं कू बाक़ी अस्त

    कज़ शराब-ए-जाँ फ़ज़ायत साक़ी अस्त

    उस ज़िंदा का ‘इश्क़ इख़्तियार कर जो सदा रहने वाला है

    और जाँ-फ़ज़ा शराब से मुझे सैराब करने वाला है

    'इश्क़ आँ ब-गुज़ीं कि जुमल: अंबिया

    याफ़्तंद अज़ 'इश्क़-ए-ऊ कार-ओ-किया

    उसका ‘इश्क़ इख़तियार कर कि तमाम नबियों ने

    उसके ‘इश्क़ से इ’ज़्ज़-ओ-शरफ़ पाया

    तू म-गो मा रा बर आँ शह बार नीस्त

    बा-करीमाँ कार-हा दुश्वार नीस्त

    तू ये कह कि हमारी रसाई उस बादशाह तक नहीं है

    करीमों पर बड़े काम दुश्वार नहीं होते

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