हिकायत-ए-मर्द-ए-बक़्क़ाल-ओ-तूती-ओ-रोग़न रेख़्तन-ए-तूती दर दुक्कान
रोचक तथ्य
हिंदी अनुवाद: सज्जाद हुसैन
हिकायत-ए-मर्द-ए-बक़्क़ाल-ओ-तूती-ओ-रोग़न रेख़्तन-ए-तूती दर दुक्कान
एक बनिए और तूती का क़िस्सा और तूती का दुकान के अंदर तेल बहाना
बूद बक़्क़ाले-ओ-वै रा तूतिए
ख़ुश-नवा-ए-सब्ज़ गोया तूतिए
एक बनिया था और उसकी एक तूती थी
जो ख़ुश-आवाज़, सब्ज़-रंग और बोलने वाली थी
दर दुकाँ बूदे निगहबान-ए-दुकाँ
नुक्तः गुफ़्ते बा-हमः सौदागराँ
(ये तूती) दुकान पर दुकान की हिफ़ाज़त करती थी
और तमाम सौदागरों से दिल-चस्प बातें करती थी
दर ख़िताब-ए-आदमी नातिक़ बुदे
दर नवा-ए-तूतियाँ हाज़िक़ बुदे
वो आदमियों से ख़िताब करने में उन जैसी बातें करती
और तूतियों के साथ नवा-संजी में माहिर थी
जस्त अज़ सू-ए-दुकाँ सू-ए-गुरेख़्त
शीशःहा-ए-रोग़न-ए-गुल रा ब-रेख़्त
भागने के लिए दुकान की बीच में कूदी
(और) रौग़न-ए-गुल की शीशियाँ बहा दीं
अज़ सू-ए-ख़ानः ब-यामद ख़्वाजः अश
बर दुकाँ ब-नशिस्त फ़ारिग़ ख़्वाजः वश
उसका मालिक घर से (वापस) आया
(और) ख़ुश-ख़ुश, इत्मीनान से दुकान पर बैठ गया
दीद पुर-रोग़न दुकान-ओ-जामः चर्ब
बर सरश ज़द गश्त तूती कल ज़-ज़र्ब
(लेकिन) दुकान को तेल से पुर और कपड़ों को चिकना देख कर
उसके सर पर ऐसी मार लगाई कि तूती गंजी हो गई
रोज़ के चंदे सुख़न कोताह कर्द
मर्द-ए-बक़्क़ाल अज़ नदामत आह कर्द
चंद दिन तक (तूती) ने बात करनी छोड़ दी
बनिए ने नदामत-ओ-अफ़सोस से आह की
रीश बर मी कंद-ओ-मी गुफ़्त ऐ दरेग़
काफ़्ताब-ए-ने'मतम शुद ज़ेर-ए-मेग़
वो (अपनी) दाढ़ी को नोचता और कहता था हाय अफ़सोस
मेरी ने’मत का सूरज बदली में आ गया
दस्त-ए-मन ब-शिकस्तः बूदे आँ ज़माँ
चूँ ज़दम मन बर सर-ए-आँ ख़ुश-ज़बाँ
उस वक़्त मेरे हाथ टूट गए होते
जब मैंने उस ख़ुश-ज़बान (तूती) के सर पर ज़र्बें मारी थीं
हदियः-हा मी दाद हर दरवेश रा
ता ब-याबद नुत्क़-ए-मुर्ग़-ए-ख़्वेश रा
वो हर फ़क़ीर को तोहफ़े तक़्सीम कर रहा था
ताकि अपने तूती की गोयाई को पा ले
बा'द-ए-सेह रोज़-ओ-सेह शब हैरान-ओ-ज़ार
बर दुकाँ ब-नशिस्त: बुद नौमीद-वार
तीन दिन और तीन रात के बा’द हैरान-ओ-बद-हाल
मायूसी की हालत में दुकान पर बैठा था
मी नमूद आँ मुर्ग़ रा हर गूँ शगुफ़्त
ता कि बाशद कन्दर आयद ऊ ब-गुफ़्त
हर क़िस्म की अनोखी चीज़ें उस परिंदे को दिखाता था
और फिर त'अज्जुब से अपने होंट काटता था
जोलक़ी-ए-सर बरहनः मी गुज़श्त
ता सर-ए-बे-मू चु पुश्त-ए-तास-ओ-तश्त
इत्तिफ़ाक़न एक गुदड़ी-पोश उधर से गुज़र रहा था
जिसका सर परात और तश्त की पुश्त की तरह (बालों) से साफ़ था
तूती अंदर गुफ़्त आमद दर ज़माँ
बाँग बर दरवेश ज़द कि हे फुलाँ
तूती (उस को देख कर) फ़ौरन बोल पड़ी
उसको पुकारा और ’अक़्ल-मंदों की तरह (सवाल किया)
अज़ चे ऐ कल बा-कलाँ आमेख़्ती
तू मगर अज़ शीशः रोग़न रेख़्ती
ऐ गंजे तू गंजों में क्यूँ शामिल हुआ
शायद तू ने भी शीशी से तेल गिराया है
अज़ क़ियासश ख़ंदः आमद ख़ल्क़ रा
कू चू ख़ुद पिंदाश्त साहब दल्क़ रा
उसके इस क़ियास से लोग हँस पड़े
कि उसने गुदड़ी वाले को अपना जैसा समझा
कार-ए-पाकाँ रा क़ियास अज़ ख़ुद म-गीर
गरचे मानद दर न-बिश्तन शेर-ओ-शीर
पाक लोगों के काम को अपने पर क़ियास न कर
अगरचे लिखने में शेर (दरिंदा) और शीर (दूध) यक-साँ होता है
जुम्लः-'आलम ज़ीं सबब गुमराह शुद
कम कसे ज़-अब्दाल-ए-हक़ आगाह शुद
इस वजह से पूरा 'आलम गुमराह हो गया
बहुत कम कोई ख़ुदा के अब्दाल से वाक़िफ़ हुआ
हमसरी बा-अंबिया बर्दाश्तन्द
औलिया रा हम-चु ख़ुद पिंदाश्तंद
(उन्हों ने) नबियों के साथ बराबरी का दा’वा खड़ा कर दिया
और औलिया को अपना जैसा समझ लिया
गुफ़्त: ईं-कि मा बशर ईशाँ बशर
मा-ओ-ईशाँ बस्तःए-ख़्वाबीम-ओ-ख़ोर
ये कहा कि हम भी इन्सान हैं और वो भी इन्सान हैं
हम और वो सोने और खाने के पाबंद हैं
ईं न-दानिस्तंद ईशाँ अज़ 'अमा
हस्त फ़र्क़े दर्मियाँ बे-मुंतहा
अँधे-पन से वो ये न समझे
कि उन दोनों में बे-इंतिहा फ़र्क़ है
हर-दो गूँ ज़ंबूर ख़ुर्दन्द अज़ महल
लेक शुद ज़ाँ नेश-ओ-ज़ीं दीगर 'असल
दोनों क़िस्म की भिड़ों ने एक ही जगह से खाया
लेकिन उससे डँक और उससे शहद बना
हर-दो गूँ आहू गिया ख़ूर्दन्द-ओ-आब
ज़ीं यके सरगीं शुद-ओ-ज़ाँ मुश्क-ए-नाब
दोनों क़िस्म के हिरनों ने घास, और पानी खाया-पिया
उस एक का गोबर बना और दूसरे का ख़ालिस मुश्क
हर-दो ने ख़ुर्दन्द अज़ यक आब-ख़ोर
ईं यके ख़ाली-ओ-आँ दीगर शकर
दोनों नर्सलों ने एक घाट से पानी पिया
लेकिन एक खोखली और दूसरी शकर से भरी हुई है
सद हज़ाराँ ईं चुनीं अश्बाह बीं
फ़र्क़-ए-शॉं हफ़्ताद सालः-ए-राह बीं
इस तरह की लाखों मिसालें तेरे सामने हैं
(लेकिन) उनमें सत्तर साला-राह का फ़र्क़ दिखाई देता है
ईं ख़ुरद गर्दद पलीदी ज़ू जुदा
आँ ख़ुरद गर्दद हमः नूर-ए-ख़ुदा
ये खाता है तो उस से नजासत निकलती है
और वो जो कुछ खाता है, सब ख़ुदा का नूर बन जाता है
ईं ख़ुरद ज़ायद हमः बुख़्ल-ओ-हसद
आँ ख़ुरद ज़ायद हमः 'इश्क़-ए-अहद
ये खाता है तो सरासर बुख़्ल और हसद पैदा होता है
और वो खाता है तो सब ख़ुदा का इश्क़ बन जाता है
ईं ज़मीन-ए-पाक-ओ-आँ शोरस्त-ओ-बद
ईं फ़रिश्तः-ए-पाक-ओ-आँ देवस्त-ओ-दद
ये पाक ज़मीन है और वो बंजर और ख़राब
ये पाक फ़रिश्ता है और वो भूत और दरिंदा
हर-दो सूरत गर बहम मानद रवास्त
आब-ए-तल्ख़-ओ-आब-ए-शीरीं रा सफ़ास्त
दोनों सूरतें अगर एक जैसी हैं, ठीक है
नमकीन और शीरीं पानी में सफ़ाई मौजूद है
जुज़ कि साहिब ज़ौक़ के शनासद ब-याब
ऊ शनासद आब-ए-ख़ुश अज़ शोरः-आब
सिवाए साहिब-ए-ज़ौक़ के कोई नहीं पहचान सकता है,
समझ ले वही मीठे और खारे पानी को पहचानता है
सेहर रा बा-मो'जिज़ः कर्द: क़ियास
हर-दो रा बर मक्र पिंदारद असास
जादू को मो’जिज़ा पर क़ियास कर के
दोनों की बुनियाद मक्र-ओ-फ़रेब पर समझता है
साहिरान-ए-मूसा अज़ अस्तीज़ः रा
बर गिरफ़्तः चूँ ’असा-ए-ऊ-'असा
जादू-गरों ने मूसा से लड़ाई के लिए
उनकी लाठी जैसी लाठी उठाई
ज़ीं 'असा ता-आँ 'असा फ़र्क़ीस्त झ़र्फ़
ज़ीं 'अमल ता-आँ 'अमल राहे शगर्फ़
(लेकिन) इस लाठी और उस लाठी में गहरा फ़र्क़ है
इस काम में और उस काम में बड़ा फ़ासिला है
ला'नतुल्लाह ईं 'अमल रा दर क़फ़ा
रहमतुल्लाह आँ 'अमल रा दर वफ़ा
इस काम के पीछे अल्लाह की ला’नत है
उस काम में अल्लाह की रहमत शामिल-ए-हाल है
काफ़िराँ अंदर मरे बूज़ीनः तब'
आफ़ते आमद दरून-ए-सीनः तब'
काफ़िर लोग झगड़ा करने में बंदर की ख़स्लत रखते हैं
(और) उनकी ये ख़स्लत सीना में छुपी हुई एक आफ़त है
हर-चे मर्दुम मी-कुनद बूज़ीनः हम
आँ कुनद कज़ मर्द बीनद दम-बदम
जो कुछ इन्सान करता है बंदर भी करता है
जो इन्सान से पै-दर-पै देखता है वो करता है
ऊ गुमाँ बुर्दः कि मन कर्दम चु-ऊ
फ़र्क़ रा कि दानद आँ इस्तेज़ः-रू
उसने गुमान किया कि मैंने उसकी तरह किया
वो लड़ाका फ़र्क़ को कब देखता है
ईं कुनद अज़ अम्र-ओ-ऊ बह्र-ए-सतेज़
बर-सर-ए-इस्तेज़ः रूयाँ ख़ाक रेज़
ये (मोमिन) हुक्म-ए-ख़ुदा-वंदी से करता है और
वो (काफ़िर) झगड़े के लिए झगड़ा करने वालों के सर पर ख़ाक डाल
आँ मुनाफ़िक़ बा-मुवाफ़िक़ दर नमाज़
अज़ पय-ए-इस्तेज़ः आयद ने नियाज़
वो मुनाफ़िक़ मोमिन के साथ, नमाज़ में
मुक़ाबला के लिए आता है न कि नियाज़-मंदी के लिए
दर नमाज़-ओ-रोज़ः-ओ-हज्ज-ओ-ज़कात
बा-मुनाफ़िक़ मोमिनाँ दर बुर्द-ओ-मात
नमाज़ और रोज़ा और हज और ज़कात में
मोमिन, मुनाफ़िक़ के साथ जीत और हार में हैं
मोमिनाँ रा बुर्द बाशद 'आक़िबत
बर मुनाफ़िक़ मात अंदर आख़िरत
अंजाम-ए-कार मोमिनों की जीत होगी
आख़िरत में मुनाफ़िक़ को हार होगी
गरचे हर-दो बर-सर-ए-यक बाज़िअंद
हर-दो बाहम मरवज़ी-ओ-राज़िअंद
अगरचे दोनों एक बाज़ी लगाए हुए हैं
लेकिन ये दोनों मर्व और रे के बाशिंदों की तरह (बा-हम मुख़्तलिफ़) हैं
हर यके सू-ए-मक़ाम-ए-ख़ुद रवद
हर यके बर विफ्क़-ए-नाम-ए-ख़ुद रवद
हर एक अपने मक़ाम की तरफ़ जाता है
हर एक अपने नाम के मुताबिक़ काम करता है
मोमिनश ख़्वानंद जानश ख़ुश शवद
वर मुनाफ़िक़ गो-ए-पुर-आतिश शवद
तू उसको मोमिन कहे तो उसकी रूह ख़ुश होती है
और अगर मुनाफ़िक़ कहे तो मुश्त’इल और आग से पुर हो जाता है
नाम-ए-ऊ महबूब अज़ ज़ात-ए-वे.अस्त
नाम-ए-ईं मब्ग़ूज़ अज़ आफ़ात-ए-वे.अस्त
उसका नाम उसकी ज़ात की वजह से प्यारा है
और उसका नाम उसकी आफ़तों की वजह से मूजिब-ए-बुग़्ज़-ओ-‘अदावत है
मीम-ओ-वाव-ओ-मीम-ओ-नूँ तशरीफ़ नीस्त
लफ़्ज़-ए-मोमिन जुज़ पए ता'रीफ़ नीस्त
‘मीम’ और ‘वाव’ और ‘मीम’ और ‘नून’ में कोई शराफ़त नहीं है
लफ़्ज़-ए-मोमिन पहचान के ’अलावा और कुछ कहीं है
गर मुनाफ़िक़ ख़्वानियश ईं नाम-ए-दूँ
हम-चु कझ़दुम मी ख़लद दर अंदरूँ
अगर उसको मुनाफ़िक़ कहे तो ये ज़लील नाम
बिच्छू (के डँक( की तरह उस के दिल में चुभता है
गर न ईं नाम इश्तिक़ाक़-ए-दोज़ख़स्त
पस चरा दर वै मज़ाक़-ए-दोज़ख़स्त
अगर वो नाम दोज़ख़ से नहीं बना है
फिर उसमें दोज़ख़ का ज़ाइक़ा क्यूँ है
ज़िश्ती-ए-आँ नाम-ए-बद अज़ हर्फ़ नीस्त
तल्ख़ी-ए-आँ आब-ए-बह्र अज़ ज़र्फ़ नीस्त
बुरे नाम की बुराई हुरूफ़ की वजह से नहीं है
और उस समुंद्री पानी की कड़वाहट बर्तन की वजह से नहीं है
हर्फ़-ए-ज़र्फ़ आमद दरू मा'नी चु-आब
बह्र-ए-मा'नी ’इंदहु-उम्मुल-किताब
हुरूफ़ बर्तन हैं और उनमें मा’नी पानी की तरह हैं
मा’नी का समुंद्र वो है जिसके पास उम्मुल-किताब है
बह्र-ए-तल्ख़-ओ-बह्र-ए-शीरीं दर जहाँ
दरमियाँ शाँ बर्ज़ख़-उल-ला-यब्ग़ियाँ
मीठा और खारा-दरिया साथ-साथ रवाँ है
और उनके दरमियान एक आड़ है, ये एक दूसरे से चढ़ते नहीं
दाँ-कि ईं हर-दो ज़-यक अस्ले रवाँ
बर गुज़र ज़ीं हर-दो रौ ता-अस्ल-ए-आँ
जान ले कि ये दोनों एक ही अस्ल से रवाँ हैं
दोनों से गुज़र कर उनकी अस्ल तक पहुँच गया
ज़र्र-ए-क़ल्ब-ओ-ज़र्र-ए-नेको दर 'अयार
बे-महक हरगिज़ नदाने ज़-'एतिबार
खोटा सोना और खरा सोना परखने में
ब-ग़ैर कसौटी के हरगिज़ क़ाबिल-ए-‘ऐतबार नहीं
हर-कि रा दर जाँ ख़ुदा ब-नहद महक
हर यक़ीं रा बाज़ दानद ऊ ज़-शक
ख़ुदा जिसके दिल में कसौटी रख देता है
बिला-शुबहा वो यक़ीन को शक से जुदा कर लेता है
दर दहान-ए-ज़िंदः ख़ाशाकी जेहद
आँगः आरामद कि बे-रूनश नेहद
ज़िंदा के मुँह में अगर तिंका गिर जाए
तो उसको चैन उसी वक़्त आता है जब उसको बाहर निकाल दे
दर हज़ाराँ लुक़्मः यक ख़ाशाक-ए-ख़ुर्द
चूँ दर आमद हिस्स-ए-ज़िंदः पय ब-बुर्द
हज़ारों लुक़्मों में एक छोटा सा तिनका
जब आया तो ज़िंदा की हिस ने उसका पता लगा लिया
हिस्स-ए-दुनिया नर्दबान-ए-ईं जहाँ
हिस्स-ए-दीनी नर्दबान-ए-आसमाँ
दुनिया का एहसास, इस जहाँ की सीढ़ी है
और आख़िरत का एहसास, आसमान की सीढ़ी है
सेहत-ए-ईं हिस्स ब-जूईद अज़ तबीब
सेहत-ए-आँ हिस्स ब-ख़्वाहीद अज़ हबीब
इस हिस की तुदरुस्सी तबीब से मा’लूम करो
और उस हिस की तंदरुस्ती महबूब से मा’लूम करो
सेहत-ए-ईं हिस्स ज़-मा'मूरी-ए-तन
सेहत-ए-आँ हिस्स ज़-वीराने बदन
इस हिस की तंदरुस्ती बदन की तंदरुस्ती से है
और उस हिस की तंदरुस्ती बदन की शिकस्तगी से है
राह-ए-जाँ मर जिस्म रा वीराँ कुनद
बा'द अज़ाँ वीरानी आबादाँ कुनद
रूह का बादशाह, जिस्म को वीरान करता है
और उसकी वीरानी के बा’द उसको आबाद करता है
कर्द वीराँ ख़ानः बह्र-ए-गंज-ए-ज़र
वज़ हमाँ गंजश कुनद मा'मूर-तर
सोने के ख़ज़ाना के लिए उसने अपने घर को वीरान किया
और उसी ख़ज़ाना से फिर उसको बहुत ज़ियादा आबाद कर देता है
आब रा ब-बुरीद-ओ-जू रा पाक कर्द
बा'द अज़ाँ दर जू रवाँ कर्द आब खुर्द
उसने पानी को बंद किया और नहर को पाक किया
फिर उसने नहर में पीने का पानी छोड़ दिया है
पोस्त रा ब-शिगाफ़्त-ओ-पैकाँ रा कशीद
पोस्त-ए-ताज़ः बा'द अज़ानश बर दमीद
खाल में शिगाफ़ किया, तीर को खींचा
उसके बा’द नई खाल उससे पैदा हो गई
क़िलअ' वीराँ कर्द-ओ-अज़ काफ़िर सितद
बा'द अज़ाँ बर साख़्तश सद बुर्ज-ओ-सद
उसने क़िला’ को वीरान किया और काफ़िर से छीना है
उसके बा’द उस पर सैंकड़ों बुर्ज और फ़सीलें बनाई हैं
कार-ए-बे-चूँ रा कि कैफ़ियत नेहद
ईं कि गुफ़्तम हम ज़रूरत मी देहद
यकता के काम की कैफ़ियत कौन बयान करे
ये जो कुछ मैंने कहा है ब-ज़रूरत कहा है
गह चुनीं ब-नुमायद-ओ-गह ज़िद्द-ए-ईं
जुज़ कि हैरानी न-बाशद कार-ए-दीं
कभी यूँ जल्वा-आरा होता है और कभी उसके बर-’अक्स
दीन का काम हैरत के ब-ग़ैर नहीं है
ने चुनाँ हैराँ कि पुश्तश सू-ए-ऊस्त
बल चुनीं हैरान-ओ-ग़र्क़-ओ-मस्त दोस्त
न ऐसे हैरान कि उनकी पुश्त उसकी तरफ़ हो
बल्कि ऐसे हैरान कि उनका चेहरा उसके सामने है
आँ यके रा रू-ए-ऊ शुद सू-ए-दोस्त
वाँ यके रा रू-ए-ऊ ख़ुद रू-ए-दोस्त
उस एक का रुख़ दोस्त की जानिब हुआ
और उस एक का अपना रुख़ ख़ुद दोस्त का रुख़ है
रू-ए-हर यक मी निगर मी दार पास
बू कि गर्दी तू ज़-ख़िदमत रू-शनास
हर एक के रुख़ को देख और अदब कर
हो सकता है कि तू ख़िदमत से साहिब-ए-मा’रिफ़त बन जाए
चूँ बसे इबलीस आदम रू-ए-हस्त
पस ब-हर दस्ते न-शायद दाद दस्त
चूँकि बहुत से शैतान इन्सानी चेहरे के हैं
इसलिए हर हाथ में हाथ न पकड़ाना चाहिए
ज़ाँ-कि सय्याद आवरद बाँग-ए-सफ़ीर
ता फ़रेबद मुर्ग़ रा आँ मुर्ग़-गीर
शिकारी परिंदे जैसी आवाज़ इसलिए निकालता है
ताकि वो पकड़ने वाला, परिंदे को धोका दे
ब-शिनवद आँ मुर्ग़ बाँग-ए-जिन्स-ए-ख़्वेश
अज़ हवा आयद ब-याबद दाम-ओ-नेश
वो परिंदा अपने हम-जिंस की आवाज़ सुनता है
(और) फ़िज़ा से उतरता है तो जाल और डँक पाता है
हर्फ़-ए-दर्वेशाँ ब-दुज़्दद मर्द-ए-दूँ
ता ब-ख़्वानद बर सलीमे ज़ाँ फ़ुसूँ
कमीना आदमी फ़ुक़रा के कलिमात चुरा लेता है
ताकि किसी भोले-भाले पर वो मंत्र पढ़े
कार-ए-मर्दां रौशनी-ओ-गर्मियस्त
कार-ए-दूनाँ हीलः-ओ-बे-शर्मियस्त
मर्दों का काम रौशनी और गर्मी (पहुँचाना) है
(और) कमीनों का काम (धोका देना) और बे-शर्मी है
शीर-ए-पश्मीं अज़ बरा-ए-गद कुनंद
बू-मुसैलम रा लक़ब अहमद कुनंद
गदा-गरी के लिए ऊन का शेर बनाते हैं
मुसैलमा (कज़्ज़ाब) को अहमद का लक़ब देते हैं
बू-मुसैलम रा लक़ब कज़्ज़ाब माँद
मर मोहम्मद रा ऊलुल-अल्बाब माँद
मुसैलमा का लक़ब कज़्ज़ाब रहा
और (मोहम्मद सल्लल्लाहु ’अलैहि-व-सल्लम) का साहिब-ए-’अक़्ल रहा
आँ शराब-ए-हक़ ख़ितामश मुश्क-ए-नाब
बादः रा ख़तमश बुवद गंद-ओ-'अज़ाब
वो हक़ की शराब है जिसकी मुहर ख़ालिस मुश्क की है
(और) शराब की मुहर गंदगी और ’अज़ाब है
- पुस्तक : मसनवी मा'नवी रूमी (पृष्ठ 1)
- रचनाकार :मौलाना जलालुद्दीन रूमी
- प्रकाशन : Chaapkhana-e-Sipahr,Tehran (1925)
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.