Sufinama

हिकायत-ए-नै

रूमी

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    हिकायत-ए-नै

    बाँसुरी का क़िस्सा

    बि-शिनो अज़ नै चुँ हिकायत मी-कुनद

    वज़ जुदाईहा शिकायत मी-कुनद

    बाँसुरी से सुन! क्या बयान करती है

    और जुदाइयों की (क्या) शिकायत करती है!

    कज़ नियस्ताँ ता मरा बबुरीद:अन्द

    अज़ नफ़ीरम मर्द-ओ-ज़न नालीदः-अंद

    कि जब से मुझे बंसुली से काटा है

    मेरे नाला से मर्द-ओ-’औरत (सब) रोते हैं

    सीनः ख़्वाहम शरह:-शरह: अज़ फ़िराक़

    ता ब-गोयम शरह-ए-दर्द-ए-इश्तियाक़

    मैं ऐसा सीना चाहती हूँ जो जुदाई से पारा-पारा हो

    ताकि मैं ’इश्क़ के दर्द की तफ़्सील सुनाऊँ

    हर कसे कू दूर मानद अज़ अस्ल-ए-ख़्वेश

    बाज़ जोयद रोज़गार-ए-वस्ल-ए-ख़वेश

    जो कोई अपनी अस्ल से दूर हो जाता है

    वो अपने वस्ल का ज़माना फिर तलाश करता है

    मन ब-हर जम'ईयते नालाँ शुदम

    जुफ़्त-ए-बद-हालाँ-ओ-ख़ुश-हालाँ शुदम

    मैं हर मज्मा’ में रोई

    ख़ुश-औक़ात और बद-अहवाल लोगों के साथ रही

    हर कसे अज़ ज़न्न-ए-ख़ुद शुद यार-ए-मन

    अज़ दरून-ए-मन न-जुस्त असरार-ए-मन

    हर शख़्स अपने ख़याल के मुताबिक़ मेरा यार बना

    और मेरे अंदर से मेरे राज़ों की जुस्तुजू की

    सिर्र-ए-मन अज़ नाल:-ए-मन दूर नीस्त

    लेक चश्म-ओ-गोश रा आँ नूर नीस्त

    मेरा राज़, मेरे नाला से दूर नहीं है

    लेकिन आँख और कान के लिए वो नूर नहीं है

    तन ज़े-जान-ओ-जाँ ज़े-तन मस्तूर नीस्त

    लेक कस रा दीद-ए-जाँ दस्तूर नीस्त

    बदन, रूह से और रूह, बदन से छुपी हुई नहीं है

    लेकिन किसी के लिए रूह को देखने का दस्तूर नहीं है

    आतिशस्त ईं बाँग-ए-नाय-ओ-नीस्त बाद

    हर कि ईं आतिश न-दारद नीस्त बाद

    बाँसुरी की ये आवाज़ आग है, हवा नहीं है

    जिसमें ये आग हो, वो नीस्त-ओ-नाबूद हो

    आतिश-ए-'इश्क़स्त कंंदर नै फ़िताद

    जोशिश-ए-'इश्क़स्त कन्दर मय फ़िताद

    ‘इश्क़ की आग है जो बाँसुरी में लगी है

    ’इश्क़ का जोश है जो शराब में आया है

    नै हरीफ़-ए-हर कि अज़ यारे बुरीद

    पर्दःहा अश पर्दः-हाय मा दरीद

    बाँसुरी, उसकी साथी है जो यार से कटा हो

    उसके रागों ने हमारे दिल के पर्दे फाड़ दिए

    हम चु नै ज़हरे-ओ-तिर्याक़े कि दीद

    हम चु नै दम-साज़-ओ-मुश्ताक़े कि दीद

    बाँसुरी जैसा ज़हर और तिर्याक़ किसने देखा है?

    बाँसुरी जैसा साथी और ’आशिक़ किसने देखा है?

    नै हदीस-ए-राह-ए-पुर-ख़ूँ मी-कुनद

    क़िस्सः हा-ए-'इश्क़ मज्नूँ मी-कुनद

    बाँसुरी ख़तरनाक रास्ता की बात करती है

    मज्नूँ के ’इश्क़ के क़िस्से बयान करती है

    महरम-ए-ईं होश जुज़ बेहोश नीस्त

    मर ज़बाँ रा मुश्तरी चूँ गोश नीस्त

    उस होश का राज़-दाँ बेहोश के ’अलावा कोई नहीं है

    ज़बान का ख़रीदार कान जैसा कोई नहीं है

    दर ग़म-ए-मा रोज़हा बेगाह शुद

    रोज़हा बा-सोज़हा हमराह शुद

    हमारे ग़म में बहुत से दिन ज़ाए’ हुए

    बहुत से दिन सोज़िशों के साथ ख़त्म हुए

    रोज़हा गर रफ़्त गो रौ बाक नीस्त

    तू ब-माँ आँ कि चुँ तू पाक नीस्त

    दिन अगर गुज़रें तो कह दो गुज़रें परवा नहीं है

    वो कि तुझ जैसा कोई पाक नहीं है, तो रहे!

    हर कि जुज़ माही ज़े-आबश सैर शुद

    हर कि बे-रोज़ी अस्त रोज़श देर शुद

    जो मछली के ’अलावा है उसके पानी से सैर हुआ

    जो बे-रोज़ी है उस का वक़्त ज़ाए’ हुआ

    दर नयाबद हाल-ए-पख़तः हेच ख़ाम

    पस सुख़न कोताह बायद वस्सलाम

    कोई नाक़िस, कामिल का हाल नहीं मा’लूम कर सकता

    पस बात मुख़्तसर चाहिए, वस्सलाम

    बंद ब-गुसिल बाश आज़ाद पिसर

    चंद बाशी बंद-ए-सीम-ओ-बंद-ए-ज़र

    बेटा! क़ैद को तोड़, आज़ाद हो जा

    सोने, चाँदी का क़ैदी कब तक रहेगा?

    गर ब-रेज़ी बहर रा दर कूज़ः-इ

    चंद गुंजद क़िस्मत-ए-यक रोज़ः-इ

    अगर तू दरिया को एक प्याले में डाले

    कितना आएगा? एक दिन का हिस्सा

    कूज़ः-ए-चश्म-ए-हरीसाँ पुर-नशुद

    ता सदफ़ क़ाने' न-शुद पुर दुर न-शुद

    हरीसों की आँख का प्याला भरा

    जब तक सीप ने क़ना’अत की मोती से भरा

    हर कि रा जामः ज़े-'इश्क़े चाक शुद

    ज़े-हिर्स-ओ-ऐ'ब-ए-कुल्ली पाक शुद

    जिसका जामा ’इश्क़ की वजह से चाक हुआ

    वो हिर्स और ‘ऐब से बिलकुल पाक हुआ

    शाद बाश 'इश्क़-ए-ख़ुश सौद-ए-मा

    तबीब-ए-जुमल: 'इल्लतहा-ए-मा

    ख़ुश रह, हमारे अच्छे जुनून वाले ’इश्क़

    हमारी तमाम बीवीयों के तबीब

    दवा-ए-निख़्वत-ओ-नामूस-ए-मा

    तू अफ़लातून-ओ-जालीनूस-ए-मा

    हमारे तकब्बुर और ‘इज़्ज़त-तलबी की दवा!

    कि तू हमारा अफ़्लातून और जालीनूस है!

    जिस्म-ए-ख़ाक अज़ 'इश्क़ बर अफ़्लाक शुद

    कोह दर रक़्स आमद-ओ-चालाक शुद

    ख़ाकी-जिस्म ’इश्क़ की वजह से आसमानों पर पहुँचा

    पहाड़, नाचने लगा और होशियार हो गया

    'इश्क़ जान-ए-तूर आमद 'आशिक़ा

    तूर मस्त-ओ-ख़र्रा मूसा सा'इक़ा

    ’आशिक़! ’इश्क़ तूर की जान बना

    तूर मस्त बना और मूसा बे-होश हो कर गिरे

    बा-लब-ए-दम-साज़-ए-ख़ुद गर जुफ़्तमे

    हम चु नै मन गुफ़्तनेहा गुफ़्तमे

    अगर मैं अपने यार के होंट से मिला हुआ होता

    बाँसुरी की तरह कहने की बातें कहता

    हर कि अज़ हम ज़बाने शुद जुदा

    बे-नवा शुद गरचे दारद सद-नवा

    जो शख़्स दोस्त से जुदा हुआ

    बे-सहारा हुआ, ख़्वाह सौ सहारे रखे

    चूँकि गुल रफ़्त-ओ-गुलिस्ताँ दर गुज़श्त

    न-शिनवी ज़ाँ पस ज़े-बुलबुल सरगुज़िश्त

    जब फूल ख़त्म हुआ और बाग़ वीरान हो गया

    उसके बा’द तू बुलबुल की सरगुज़श्त सुनेगा

    जुमल: मा'शूकस्त-ओ-'आशिक़ पर्द:-इ

    ज़िंदः मा'शूक़स्त-ओ-'आशिक़ मुर्दः-इ

    तमाम काइनात मा’शूक़ है और ’आशिक़ पर्दा है

    मा’शूक़ ज़िंदा है और ’आशिक़ मुर्दा है

    चुँ न-बाशद 'इश्क़ रा परवा-ए-ऊ

    चु मुर्ग़े माँद बे-पर वा-ए-ऊ

    जब ’इश्क़ को उसकी परवा हो

    वो बे-पर के परिंदे की तरह है, उस पर अफ़्सोस है

    मन चे-गूनः होश दारम पेश-ओ-पस

    चुँ न-बाशद नूर-ए-यारम पेश-ओ-पस

    मैं क्या कहूँ कि मैं आगे-पीछे का होश रखता हूँ

    जब कि मेरे दोस्त का नूर साथी हो

    'इश्क़ ख़्वाहद किईं सुख़न बैरूँ बुवद

    आईनः-ए-ग़म्माज़ न-बुवद चुँ बुवद

    इश्क़ चाहता है कि ये बात ज़ाहिर हो

    तेरा आईना ग़म्माज़ हो तो क्यूँकर हो?

    आईनः अत दानी चरा ग़म्माज़ नीस्त

    ज़ाँकि ज़ंगार अज़ रुख़श मुम्ताज़ नीस्त

    तू जानता है तेरा आईना ग़म्माज़ क्यूँ नहीं है

    इसलिए कि ज़िंदगी उसके चेहरे से 'अलाहिदा नहीं है

    बिशनवीद दोस्ताँ ईं दास्ताँ

    ख़ुद हक़ीक़त नक़्द-ए-हाल-ए-मास्त आँ

    दोस्तो इस क़िस्सा को सुनो

    वो ख़ुद हमारे मौजूदा हाल की हक़ीक़त है

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