'इताब कर्दन-ए-आतिश रा आँ बादशाह-ए-जहूद
रोचक तथ्य
हिंदी अनुवाद: सज्जाद हुसैन
'इताब कर्दन-ए-आतिश रा आँ बादशाह-ए-जहूद
यहूदी (बादशाह) का आग पर ग़ुस्सा करना कि क्यूँ नहीं जलाती और उसका जवाब
रू ब-आतिश कर्द शह-ए-कए तुंद-ख़ू
आँ जहाँ सोज़-ए-तबी'ई ख़ूत कू
बादशाह आग की तरफ़ मुतवज्जिह हुआ कि ऐ बद-मिज़ाज
तेरी दुनिया को जलाने वाली फ़ित्री ’आदत कहाँ है
चूँ नमी सूज़ी चे शुद ख़ासियतत
या ज़ बख़्त मा दिगर शुद नीयतत
तू जलाती क्यूँ नहीं, तेरी ख़ासियत कहाँ गई
या हमारे नसीब से तेरी निय्यत बदल गई
मी न-बख़्शाई तू बर आतिश-परस्त
आँ-कि न-परस्तद तुरा ऊ चूँ बरस्त
तू आग के पूजने वाले को भी नहीं बख़्शती है
जो तुझे नहीं पूजता वो क्यूँ बच गया
हरगिज़ ऐ आतिश तू साबिर नीस्ती
चूँ न-सोज़ी चीस्त क़ादिर नीस्ती
ऐ आग तू सब्र करने वाली हरगिज़ नहीं है
क्यूँ नहीं जलाती है? क्या है जो तू क़ादिर नहीं है
चश्म बंदस्त ईं 'अजब या होश बंद
चूँ न-सोज़द आतिश-ए-अफ़रोज़ बुलंद
हाय त’अज्जुब ये नज़-रबंदी है या हवास-बंदी
ऐसा बुलंद शो’ला जलाता क्यूँ नहीं है
जादू-ए-कर्दत कसे या सीमियास्त
या ख़िलाफ़-ए-तब' तू अज़ बख़्त-ए-मास्त
किसी ने तुझ पर जादू किया है या तिलिस्म
या तेरा तबी’अत के ख़िलाफ़ (काम) हमारे नसीबा की वजह से है
गुफ़्त आतिश मन हुमा-नम आतिशम
अंदर आ ता तू ब-बीनी ताबिशम
आग ने कहा मैं वही आग हूँ
अंदर आजा, ताकि तू मेरी गर्मी देखे
तब' मन दीगर न-गश्त-ओ-'उंसुरम
तेग़-ए-हक़्क़म हम ब-दस्तूरी बुरम
मेरी तबी’अत और अस्ल नहीं बदली है
मैं ख़ुदा की तल्वार हूँ, इजाज़त ही से काटती हूँ
बर दर-ए-ख़िर्गः सगान-ए-तूर्कमाँ
चापलूसी कर्द: पेश-ए-मेहमाँ
तुर्कमानों के कुत्ते, ख़ैमा के दरवाज़ा पर
मेहमान के आगे ख़ुशामद करते हैं
वर ब-ख़िर्गः ब-गुज़रद बे-गान: रू
हमल: बीनद अज़ सगाँ शेरानः ऊ
अगर ख़ैमा के पास से अजनबी गुज़रता है
तो वो कुत्तों से शेरों जैसा हमला देखता है
मन ज़ सग कम नीस्तम दर बंदगी
कम ज़ तुर्के नीस्त हक़ दर ज़िंदगी
मैं गु़लामी में, कुत्ते से कम नहीं हूँ
अल्लाह तआ’ला ज़िंदा होने में किसी तुर्क से कम नहीं है
आतिश-ए-तबी'अत अगर ग़मगीं कुनद
सोज़िश अज़ अम्र-ए-मलीक-ए-दीं कुनद
अगर तेरे मिज़ाज की आग तुझे ग़म-गीं करती है
दीन के मालिक के हुक्म से सोज़िश करती है
आतिश-ए-तबी'अत अगर शादी देहद
अंदरू शादी मलीक-ए-दीं नेहद
अगर तेरे मिज़ाज की गर्मी, ख़ुशी देती है
दीन का मालिक, उसमें ख़ुशी रख देता है
चूँकि ग़म बीनी तू इस्तिग़फ़ार कुन
ग़म ब-अम्र-ए-ख़ालिक़ आमद कार कुन
जब तू ग़म देखे, तो तौबा कर
ग़म, ख़ुदा के हुक्म से काम करता है
चूँ ब-ख़्वाहद 'ऐन-ए-ग़म शादी शवद
'ऐन-ए-बंद-ए-पा-ए-आज़ादी शवद
जब वो चाहता है ’ऐन-ए-ग़म, ख़ुशी बन जाता है
ख़ुद बेड़ी, आज़ादी बन जाती है
बाद-ओ-ख़ाक-ओ-आब-ओ-आतिश बंदः अन्द
बा-मन-ओ-तू मुर्दः बा-हक़ ज़िंदः अन्द
हवा, मिट्टी, पानी और आग ग़ुलाम हैं
मेरे और तेरे ए’तिबार से मुर्दा हैं, लेकिन अल्लाह के नज़दीक ज़िंदा हैं
पेश-ए-हक़ आतिश हमेश: दर क़ियाम
हम-चु 'आशिक़ रोज़-ओ-शब पेचाँ मुदाम
आग, अल्लाह के सामने हमेशा खड़ी है
’आशिक़ की तरह, बे-जान, दिन और रात मुसलसल
संग बर आहन ज़नी बैरूँ जेहद
हम ब-अम्र-ए-हक़ क़दम बैरूँ नेहद
तू लोहे पर पत्थर मारेगा आग निकलेगी
वो भी ख़ुदा के हुक्म से बाहर निकलती है
आहन-ओ-संग सितम बर हम म-ज़न
कीं दो मी ज़ानेद हम-चूँ मर्द-ओ-ज़न
ज़ुल्म के लोहे और पत्थर को बाहम न टकरा
इसलिए कि दोनों मर्द और ’औरत की तरह बच्चे देते हैं
संग-ओ-आहन ख़ुद सबब आमद-ओ-लेक
तू ब-बाला-तर निगर ऐ मर्द-ए-नेक
पत्थर और लोहा ख़ुद सबब हैं लेकिन
ऐ नेक मर्द तू ज़्यादा ऊँचा देख
कीं सबब रा आँ सबब आवुर्द पेश
बे-सबब के शुद सबब हरगिज़ ज़ ख़्वेश
इसलिए कि इस सबब को उस सबब ने पैदा किया है
कोई सबब, बिला किसी सबब के ख़ुद-ब-ख़ुद कब हुआ है
वाँ सबब-हा कि-अंबिया रा रहबरस्त
आँ सबब-हा ज़ीं सबब-हा बरतरस्त
वो अस्बाब जो अंबिया के रहनुमा हैं
वो अस्बाब, इन अस्बाब से बाला-तर हैं
ईं सबब रा आँ सबब आमिल कुनद
बाज़ गाहे बे-बर-ओ-आतिल कुनद
इस सबब को वो सबब, ’अमल करने वाला बनाता है
फिर कभी बे-पर, और मु’अत्तल बना देता है
ईं सबब रा महरम आमद ’अक़्ल-हा
वाँ सबब-हा रास्त महरम अंबिया
इस सबब से हमारी ’अक़्ल वाक़िफ़ है
और उन अस्बाब को अंबिया जानते हैं
ईं सबब चे बुवद ब-ताज़ी गो रसन
अंदरीं चे ईं रसन आमद ब-फ़न
ये सबब क्या होता है? ’अरबी में कह दे रस्सी
इस कुएँ में ये रस्सी तदबीर से आई है
गर्दिश-ए-चर्ख़ः रसन रा ’इल्लतस्त
चर्ख़ गर्दां रा न-दीदन ज़ल्लतस्त
घेड़ी की गर्दिश, इस रस्सी की ’इल्लत है
घेड़ी घुमाने वाले को न देखना ग़लती है
ईं रसन-हा-ए-सबब-हा दर जहाँ
हाँ-ओ-हाँ ज़ीं चर्ख़-ए-सरगर्दाँ मदाँ
दुनिया में इन अस्बाब की रस्सियों को
हरगिज़-हरगिज़, इस घूमने वाले चर्ख़ (आसमान) की वजह से न जानना
ता नुमाई सिफ़्र-ओ-सरगर्दाँ चु चर्ख़
तू न-सोज़ी तू ज़ बे-मग़्ज़ी चु मर्ख़
ताकि तू ख़ाली, और आसमान की तरह सरगर्दां न रहे
और बे-’अक़्ली की वजह से मुर्ख़ की तरह न जले
बाद-ए-आतिश मी शवद अज़ अम्र-ए-हक़
हर दो सरमस्त आमदंद अज़ ख़म्र-ए-हक़
हवा और आग अल्लाह के हुक्म से वुजूद में आते हैं
अल्लाह की शराब से दोनों मस्त हैं
आब-ए-हिल्म-ओ-आतिश ख़श्म ऐ पिसर
हम ज़ हक़-बीनी चू ब-गुशाई बसर
ऐ बेटा बुर्द-बारी का पानी और ग़ुस्सा की आग
भी तू अल्लाह की जानिब से देखेगा अगर आँख खोलेगा
गर न-बूदे वाक़िफ़ अज़ हक़ जान-ए-बाद
फ़र्क़ के कर्दे मियान क़ौम-ए-’आद
हवा की जान, अगर अल्लाह से वाक़िफ़ न होती
क़ौम-ए-’आद के नेक-ओ-बद में कब फ़र्क़ करती
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