मक्र-ए-दीगर अंगेख़्तन-ए-वज़ीर दर इज़्लाल-ए-क़ौम
वज़ीर का मुकर्रर करना और तन्हाई में बैठना और क़ौम में शोरिश पैदा
मक्र-ए-दीगर आँ वज़ीर अज़ ख़ुद ब-बस्त
वा'ज़ रा ब-गुज़ाश्त-ओ-दर ख़ल्वत-नशिस्त
दूसरा मक्र उस वज़ीर ने इख़्तियार किया
वा’ज़ कहना छोड़ा, तन्हाई में बैठ गया
दर मुरीदाँ दर फ़-कंद अज़ शौक़ सोज़
बूद दर ख़ल्वत चहल पंजाह रोज़
मुरीदों में शौक़ की सोज़िश डाल दी
चालीस पचास रोज़ तक तन्हाई में रहा
ख़ल्क़ दीवान: शुदंद अज़ शौक़-ए-ऊ
अज़ फ़िराक़-ए-हाल-ओ-क़ाल-ओ-ज़ौक़-ए-ऊ
उसके शौक़ से लोग दीवाने हो गए
हाल और गुफ़्तुगू और उसके ज़ौक़ की जुदाई से
लाबः-ओ-ज़ारी हमी कर्दंद-ओ-ऊ
अज़ रियाज़त गश्ता दर ख़ल्वत दो तू
लोग ख़ुशामद और ’आजिज़ी करते थे और वो
मुजाहदा की वजह से तन्हाई में कुबड़ा हो गया था
गुफ़्त: ईशाँ नीस्त मा रा बे-तु नूर
बे-'असा कश चूँ बुवद अहवाल-ए-कूर
उन्होंने कहा तेरे ब-ग़ैर हमारे लिए रौशनी नहीं है
लाठी पकड़ने वाले के ब-ग़ैर ना-बीना का हाल क्या होगा
अज़ सर-ए-इक्राम-ओ-अज़ बहर-ए-ख़ुदा
बेश अज़ीं मा रा म-दार अज़ ख़ुद जुदा
अज़ राह-ए-मेहरबानी और ख़ुदा के लिए
इससे ज़्यादा हम को अपने से जुदा न कर
मा चु तिफ़्लानेम-ओ-मा रा दायः तू
बर सर-ए-मा गुस्तराँ आँ सायः तू
हम बच्चों की तरह हैं और तू हमारी दाया है
वही साया तू हमारे ऊपर डाल दे
गुफ़्त जानम अज़ मोहिब्बाँ दूर नीस्त
लेक बैरूँ आमदन दस्तूर नीस्त
उसने कहा मेरी जान दोस्तों से दूर नहीं है
लेकिन बाहर आने का मेरे लिए हुक्म नहीं है
आँ अमीराँ दर शफ़ा'अत आमदंद
वाँ मुरीदाँ दर शना'अत आमदंद
वो अमीर सिफ़ारिश के लिए आए
और वो मुरीद ’आजिज़ी करने लगे
कीं चे बद-बख़्तीस्त मा रा ऐ करीम
अज़ दिल-ओ-दीं मांदः मा बे-तू यतीम
कि ऐ बुज़ुर्ग ये हमारी कैसी बद-बख़्ती है
हम दिल और दीन से तेरे ब-ग़ैर महरूम रह गए
तू बहानः मी कुनी-ओ-मा ज़ दर्द
मी ज़नेम अज़ सोज़-ए-दिल दमहा-ए-सर्द
तो तू बहाना कर रहा है और हम दर्द से
दिल की जलन से ठंडी आहें भर रहे हैं
मा ब-गुफ़्तार-ए-ख़ुदत ख़ू कर्द: ऐम
मा ज़ शीर-ए-हिक्मत-ए-तू ख़ुर्दः ऐम
हमें तेरी मीठी बातों की ’आदत हो गई है
हमने तेरी दानाई का दूध पिया है
अल्लाह अल्लाह ईं जफ़ा बा मा म-कुन
ख़ैर कुन इमरोज़ रा फ़र्दा म-कुन
ख़ुदा के लिए ये ज़ुल्म हम पर न कर
मेहरबानी कर, और आज को कल पर न टाल
मी देहद दिल मर तुरा कीं बे-दिलाँ
बे-तू गर्दंद आख़िर अज़ बे-हासिलाँ
क्या तेरा दिल इसकी इजाज़त देता है कि ये बे-दिल
तेरे ब-ग़ैर महरूमों में शामिल हो जाएँ
जुम्लः दर ख़ुश्की चु माही मी तपंद
आब रा ब-गुशा ज़ जु बरदार बंद
सब ऐसे तड़प रहे हैं जैसे मछली ख़ुश्की में
पानी खोल दे और नहर से बंद उठा दे
ऐ कि चूँ तू दर ज़मानः नीस्त कस
अल्लाह अल्लाह ख़ल्क़ रा फ़रियाद-रस
ऐ वो कि दुनिया में तुझ जैसा कोई नहीं है
ख़ुदा के लिए लोगों की फ़रियाद सुन ले
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