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मुझ़दः बुर्दन-ए-ख़रगोश सू-ए-नख़चीराँ कि शेर दर चाह उफ़्ताद

रूमी

मुझ़दः बुर्दन-ए-ख़रगोश सू-ए-नख़चीराँ कि शेर दर चाह उफ़्ताद

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    रोचक तथ्य

    हिंदी अनुवाद: सज्जाद हुसैन

    मुझ़दः बुर्दन-ए-ख़रगोश सू-ए-नख़चीराँ कि शेर दर चाह उफ़्ताद

    ख़रगोश का शिकारों के पास ख़ुशख़बरी ले जाना कि शेर कुँवें में गिर गया है

    चूँ-कि ख़रगोश अज़ रिहाई शाद गश्त

    सू-ए-नख़चीराँ दवाँ शुद ता ब-दश्त

    ख़रगोश जब रिहाई से ख़ुश हुआ

    जंगल में शिकारों की तरफ़ रवाना हुआ

    शेर रा चूँ दीद दर चह कुश्त: ज़ार

    चर्ख़ मी ज़द शादमाँ ता मर्ग़-ज़ार

    उस ने जब शेर को अपने ज़ुलम में मुबतला देखा

    वह तेज़ अपनी क़ौम की तरफ़ भागा

    दस्त मीज़द चूँ रहीद अज़ दस्त-ए-मर्ग

    सब्ज़-ओ-रक़्साँ दर हवा चूँ शाख़-ओ-बर्ग

    जब मौत के पंजे से छूटा, तालियाँ बजाता था

    जिस तरह शाख़ और पत्ते हवा में सबज़ और रक़्साँ होते हैं

    शाख़-ओ-बर्ग अज़ हब्स-ए-ख़ाक आज़ाद शुद

    सर बर आवर्द-ओ-हरीफ़-ए-बाद शुद

    शाख़ और पत्ते मिट्टी की क़ैद आज़ाद हुए

    तो सर उभारा और हुआ के दोस्त हो गए

    बर्ग-हा चूँ शाख़ रा ब-शिगाफ़्तंद

    ता ब-बाल-ए-दरख़्त इश्ताफ़्तंद

    पत्तों ने जब शाख़ को चीरा

    यहाँ तक कि दरख़्त के ऊपर तक चढ़ गए

    बा ज़बान-ए-शतअहु शुक्र-ए-ख़ुदा

    मी सरायद हर बर-ओ-बरगे जुदा

    शता' की ज़बान से ख़ुदा का शुक्र

    हर बर्ग-ओ-बार अलग अलग अदा कर रहा है

    कि ब-परवर अस्ल-ए-मा रा ज़ुल-'अता

    ता दरख़्त अस्तग़लज़ आमद वस्तवा

    अता करने वाले ने हमारी जड़ की परवरिश की

    यहाँ तक कि दरख़्त मोटा हो गया, फिर सीधा हो गया

    जान-हा-ए-बस्तः अंदर आब-ओ-गिल

    चूँ देहंद अज़ आब-ओ-गिल-हा शाद दिल

    पानी और मिट्टी में मुक़य्यइद,जानें

    जब पानी और मिट्टी से ख़ुशी के साथ रहा की जाती हैं

    दर हवा-ए-'इश्क़-ए-हक़ रक़्साँ शवंद

    हम-चु क़ुर्स-ए-बद्र बे-नुक़्साँ शवंद

    अल्लाह के इश्क़ की हवा में नाचती हैं

    चौधवीं रात के चाँद की तरह बे नुक़्सान हो जाती हैं

    जिस्म-ए-शाँ दर रक़्स-ओ-जान-हा ख़ुद म-पुर्स

    वाँ-कि गर्द-ए-जान अज़ाँ-हा ख़ुद म-पुर्स

    उनके जिस्म रक़्स करते हैं जानों के मुताल्लिक़ तू पूछ

    और जो (मुजस्सम) जान बन जाते हैं उनके बारे में भी पूछ

    शेर रा ख़रगोश दर ज़िंदाँ न-शांद

    नंग-ए-शेरे कू ज़ ख़रगोशे ब-मांद

    शेर को ख़रगोश ने क़ैदख़ाना में डाल दिया

    शेर के लिए शर्मनाक बात है कि वो एक ख़रगोश से आजिज़ हो गया

    दर चुनाँ नंगी-ओ-आँ-गह ईं 'अजब

    फ़ख़्र-ए-दीं ख़्वाहद कि गोयन्दश लक़ब

    तो से ही नंग में (ममतला) है और फिर ताज्जुब है

    तू चाहता है कि तुझे फ़ख़्र-ए-दीं का लक़ब दें

    तु शेरी दर तक-ए-ईं चाह फ़र्द

    नफ़्स-ए-चूँ ख़रगोश ख़ूनत रेख़्त-ओ-ख़ुर्द

    (ग़ाफ़िल) तू ज़माना के इस कुँवें की गहराई में शेर की

    तेरा नफ़स ख़रगोश की तरह है जो क़हर से तेरा ख़ून बहाता है

    नफ़्स-ए-ख़रगोशत ब-सहरा दर चरा

    तू ब-क़ा'र-ए-ईं चह-ए-चूँ-ओ-चरा

    तेरा ख़रगोश (सिफ़त) नफ़स जंगल के अंदर चरने में मशग़ूल है

    और तू चूँ विचरा के इस कुँवें की गहराई में है

    सू-ए-नख़चीराँ दवीद आँ शेर गीर

    कबशिरू या-क़ौमो इज़-जा-अल-बशीर

    वो शेर को फाँसने वाला, शिकारों की तरफ़ दौड़ा

    कि क़ौम ख़ुशख़बरी हासिल कर लो जबकि ख़ुशख़बरी देने वाला गया

    मुझ़दः-मुझ़दः गिरोह-ए-'ऐश-साज़

    काँ सग-ए-दोज़ख़ ब-दोज़ख़ रफ़्त-बाज़

    मुबारक, मुबारक ऐश मनाने वाले गिरोह

    वो दोज़ख़ का कुत्ता फिर दोज़ख़ में चला गया

    मुझ़दः-मुझ़दः काँ 'अदुव्व-ए-जान-हा

    कंंद क़हर-ए-ख़ालिक़श दंदानिहा

    मुबारक मुबारक कि तक़दीर से ज़ालिम, कुँवें में

    गिर गया, ख़ुदा के इन्साफ़ और मेहरबानी से

    आँ-कि अज़ पंजः बसे सर-हा ब-कूफ़्त

    हम-चु ख़स जारूब-ए-मर्गश हम बरूफ़्त

    वो जिसने पंजे से बहुत से सर तोड़ डाले

    मौत की झाड़ू ने उसको भी कूड़े की तरह झाड़ दिया

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