Sufinama

क़िस्सः-ए-हुदहुद-ओ-सुलैमान दर बयान-ए-आँकि चूँ क़ज़ा आयद चश्म-हा-ए-रौशन बस्तः शवद

रूमी

क़िस्सः-ए-हुदहुद-ओ-सुलैमान दर बयान-ए-आँकि चूँ क़ज़ा आयद चश्म-हा-ए-रौशन बस्तः शवद

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    क़िस्सः-ए-हुदहुद-ओ-सुलैमान दर बयान-ए-आँकि चूँ क़ज़ा आयद चश्म-हा-ए-रौशन बस्तः शवद

    हज़रत-ए-सुलैमान अलैहिस्सलाम और हुद हुद का क़िस्सा और

    उस का बयान कि जब क़ज़ा आती है आँखें बन्द हो जाती हैं

    चूँ सुलैमाँ रा सरा पर्दः-ज़दंद

    पेश-ए-ऊ मुर्ग़ां ब-ख़िदमत आमदंद

    जब हज़रत-ए-सुलैमान का ख़ेमा लगाया गया

    तमाम परिन्दे ख़िदमत में हाज़िर हुए

    हम-ज़बान-ओ-महरम-ए-ख़ुद याफ़्तंद

    पेश-ए-ऊ यक-यक ब-जाँ ब-शिताफ़्तंद

    उन को अपना हम ज़बान और महर पाया

    एक एक करके दिल-ओ-जान से उनके सामने दौड़ आए

    जुम्लः मुर्ग़ां तर्क कर्द: चीक-चीक

    बा सुलैमाँ गश्त: अफ़सह मिन अख़ीक

    तमाम परिन्दों ने चीं चीं छोड़कर

    हज़रत सुलैमान के साथ तेरे भाई से भी ज़्यादा फ़सीह हो गए

    हम-ज़बानी ख़्वेशी-ओ-पैवंदियस्त

    मर्द बा ना-महरमाँ चूँ बंदियस्त

    हमज़बानी , क़राबत और रिश्तेदारी है

    इन्सान, नामहरमों के साथ क़ैदी जैसा है

    बसा हिंदू-ओ-तुर्क-ए-हम-ज़बाँ

    बसा दो तुर्क चूँ बे-गानगाँ

    (मुख़ातब) बहुत से हिंदू और तुर्क हम ज़बान (महरम हैं)

    (मुख़ातब दो तुर्क बेगानों की तरह हैं

    पस ज़बान-ए-महरमी ख़ुद दीगरस्त

    हम-दिली अज़ हम-ज़बानी बेहतरस्त

    महरमी की ज़बान दूसरी है

    हम दिली, हम ज़बानी से बेहतर है

    ग़ैर-ए-नुत्क़-ओ-ग़ैर-ए-ईमाँ-ओ-सजिल

    सद हज़ाराँ तर्जुमाँ खेज़द ज़ दिल

    बग़ैर बोले और बग़ैर इशारे और लिखने के

    दिल से लाखों तर्जुमान पैदा हो जाती हैं

    जुम्लः मुर्ग़ां हर यके असरार-ए-ख़ुद

    अज़ हुनर वज़ दानिश-ओ-अज़ कार-ए-ख़ुद

    तमाम परिन्दों में से हर एक अपने राज़

    हुनर और अक़्ल और अपने काम

    बा-सुलैमाँ यक-ब-यक वा मी-नुमूद

    अज़ बरा-ए-'अर्ज़ः-ए-ख़ुद रा मी सितूद

    हज़रत-ए-सुलेमान अलैहिस्सलाम से एक एक करके ज़ाहिर कर रहा था

    पेश करने के लिए अपनी तारीफ़ करता था

    अज़ तकब्बुर ने-ओ-अज़ हस्ती-ए-ख़्वेश

    बहर-ए-आँ ता रह देहद रा ब-पेश

    ना तकब्बुर से, और ना अपनी ख़ुदी से

    इस लिए कि वो अपनी पेशी का रास्ता दे दें

    चूँ ब-बायद बर्दः-ए-रा अज़ ख़्वाजः-इ

    'अर्ज़ः दारद अज़ हुनर दीबाजः-इ

    जब किसी ग़ुलाम के पास कोई आक़ा आता है

    वो हुनर का रुख़सार पेश करता है

    चूँकि दारद अज़ ख़रीदारीश नंग

    ख़ुद कुनद बीमार-ओ-शल्ल-ओ-कर्र-ओ-लंग

    जब वो उस की ख़रीदारी को ज़िल्लत समझता है

    अपने आपको बीमार और बहरा और लूला और लेंगड़ा बना लेता है

    नौबत-ए-हुदहुद रसीद-ओ-पेशः-अश

    वाँ बयान-ए-सन'अत-ओ-अंदेशः-अश

    हुद हुद और उस के पेशे बारी आई

    तो उस की कारी-गरी और तदबीर का बयान हुआ

    गुफ़्त शह यक हुनर काँ कहतरस्त

    बाज़ गोयम गुफ़्त-ए-कोतह बेहतरस्त

    उस ने कहा शाह! एक हुनर जो छोटा है

    कहता हूँ, मुख़्तसर बात बेहतर है

    गुफ़्त बर गो ता कुदामस्त आँ हुनर

    गुफ़्त मन आँगह कि बाशम औज बर

    उन्हों ने कहा, कि वो हुनर कौन सा है

    उस ने कहा जिस वक़्त मैं बुलन्दी पर होता हूँ

    ब-निगरम अज़ औज बा चश्म-ए-यक़ीं

    मन ब-बीनम आब दर क़ा'र-ए-ज़मीं

    बुलन्दी से, यक़ीन की आँख देखता हूँ

    ज़मीन की गहराई में पानी को देख लेता हूँ

    ता कुजा अस्त-ओ-चे 'उमक़स्तश चे रंग

    अज़ चे मी जोशद ज़ ख़ाके या ज़ संग

    कि कहाँ है उस की कितनी गहराई है, क्या रंग है?

    किस चीज़ में से उबल रहा है मिट्टी से या पत्थर से?

    सुलैमाँ बहर-ए-लश्कर गाह रा

    दर सफ़र मी दार ईं आगाह रा

    सुलैमान फ़ौजी कैम्प के लिए

    सफ़र में इस बा-ख़बर को साथ रख

    पस सुलैमान गुफ़्त नेक-ओ-रफ़ीक़

    दर बयाबाँ-हा-ए-बे-आब-ए-'अमीक़

    पस (हज़रत)-ए- सुलैमान ने कहा, हमारा सफ़र का साथ बन जा

    मेहरबान! बे-आब जंगलों में

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