पा-ए-वापस कशीदन-ए-ख़रगोश अज़ शेर चूँ नज़्दीक-ए-चाह रसीद
पा-ए-वापस कशीदन-ए-ख़रगोश अज़ शेर चूँ नज़्दीक-ए-चाह रसीद
कुँवें के पास आकर ख़रगोश का शेर पीछे हटना
चूँकि नज़्द-ए-चाह आमद शेर दीद
कज़ रह आँ ख़रगोश मानद-ओ-पा कशीद
जब शेर कुँवें के पास पहुँचा, देखा
कि ख़रगोश पीछे रह गया और हट गया
गुफ़्त पा वापस कशीदी तू चुरा
पा-ए-रा वापस म-कश पेश अंदर आ
उस (शेर )ने कहा तू पीछे क्यों हटा
पीछे को न हट, आगे आ
गुफ़्त कू पायम कि दस्त-ओ-पा-ए-रफ़्त
जान-ए-मन लर्जीद-ओ-दिल अज़ जा-ए-रफ़्त
उस ने कहा (ख़रगोश) कहाँ हैं,
मेरे हाथ पैर ख़त्म हो गए रूह काँप रही है दिल धड़क रहा है
रंग रूयम रा नमी बीनी चु ज़र
ज़ अंदरूँ ख़ुद मी देहद रंगम ख़बर
मेरे चेहरे का रंग नहीं देख रहा है, सोने का सा
मेरा रंग अंदरूनी हालत की ख़बर दे रहा है
हक़ चु सीमा रा मु’आर्रिफ़ ख़्वांदः अस्त
जिस्म-ए-’आरिफ़ सू-ए-सीमा मांदः अस्त
जब अल्लाह ने पेशानी को हाल बताने वाला फ़रमाया है
पहचानने वाले की निगाह, पेशानी पर पड़ती है
रंग-ओ-बू ग़म्माज़ आमद चूँ जरस
अज़ फ़रस आगाह कुनद बाँग-ए-फ़रस
रंग और बू, घड़ियाल की तरह चुगुलखोर है
घोड़े की आवाज़, घोड़े की ख़बर दे देती है
बाँग-ए-हर चीज़े रसानद ज़र ख़बर
ता ब-दानी बाँग-ए-ख़र अज़ बाँग-ए-दर
हर चीज़ की आवाज़ उस की दे देती है
गधे की आवाज़ को दरवाज़े की आवाज़ जुदा समझ
गुफ़्त पैग़म्बर ब-तमीज़-ए-कसाँ
मर्उ-मख़्फ़ीउन लदा तय्यिल-लिसाँ
इन्सानों के पहचानने के सिलसिला में पैग़ंबर सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
इन्सान ज़बान बन्द रखने के वक़्त, पोशीदा है
रंग-ए-रू अज़ हाल-ए-दिल दारद निशाँ
रहमतम कुन मेहर-ए-मन दर दिल-ए-निशाँ
चेहरा का रंग दिल की हालत की अलामत है
मुझ पर रहम कर, दिल में मेरी मोहब्बत बिठा
रंग रू-ए-सुर्ख़ दारद बाँग-ए-शुक्र
बाँग रू-ओ-क़ुव्वत-ओ-सीमा ब-बुर्द
सुर्ख़ चेहरे की रंगत, शुक्र की सदा रखती है
ज़र्द चेहरे की रंगत, सब्र और तकलीफ़ (की अलामत) रखती है
दर मन आमद आँ-कि दस्त-ओ-पा ब-बुर्द
रंग रूए-ओ-क़ुव्वत-ओ-सीमा ब-बुर्द
मुझ में वो चीज़ आ गई जो हवास बाख़्ता देती है
चेहरे का रंग और ताक़त और निशानी ख़त्म कर देती है
आँ-कि दर हर चेह दर आयद ब-शिकंद
हर दरख़्त अज़ बीख़-ओ-बुन ऊ बर कुनद
मुझ में वो चीज़ आ गई जो जिस चीज़ में आ जाए उस को शिकस्ता कर दे
दरख़्त को जड़ और बुनियाद से उखाड़ दे
दर मन आमद आँ-कि अज़ वे गश्त मात
आदमी-ओ-जानवर जामिद नबात
मुझ में वो चीज़ आ गई जिसमें मात खा गई
इन्सान और जानवर, जमा दात और नबातात
ईं ख़ुद अज्ज़ा अन्द कुल्लियात अज़ू
ज़र्द कर्दः रंग-ओ-फ़ासिद कर्द: बू
ये छोटी चीज़ें हैं लेकिन बड़ी चीज़ें उनकी वजह से
रंगत ज़र्द किए हुए हैं और बू बिगाड़े हुए हैं
ता-जहाँ गह साबिरस्त-ओ-गह शकूर
बोस्ताँ गह हुल्लः पोशद गाह 'ऊर
यहाँ तक कि दुनिया कभी साबिर है और कभी शुक्रगुज़ार
बाग़ कभी जोड़ा पहनता है, कभी नंगा है
आफ़्ताबे कू बर आयद नार गूँ
सा'अते दीगर शवद ऊ सर-निगूँ
सूरज जो आग की तरह बरामद होता
दूसरे वक़्त वो औंधा हो जाता है
अख़्तराने ताफ़्त: बर चार ताक़
लहज़ः-लहज़ः मुब्तिला-ए-एहतिराक़
चार गोशा ख़ेमा (आसमान) पर चमकने वाले ये सितारे
दम-ब-दम जलने में मुबतला हैं
माह कू अफ़्ज़ूद ज़ अख़्तर दर जमाल
शुद ज़ रंज-ए-दिक़ मानिंद-ए-ख़याल
चाँद जो हुस्न में सितारों से बढ़ा हुआ है
दिक के मर्ज़ की वजह से हिलाली की तरह है
ईं ज़मीन-ए-बा-सुकून-ए-बा-अदब
अंदर आरद ज़लज़लः-हश दर लरज़ तब
ये पुर सुकून और बा-अदब ज़मीन
ज़लज़ला उस को जाड़े बुख़ार में मुबतला कर देता है
ऐ बुसा कि ज़ीं बला-ए-मुर्द-रेग
गश्त: अस्त अंदर जहाँ ऊ ख़ुर्द-ओ-रेग
ऐ (मुख़ातब) बहुत से पहाड़ इस जे़ल मुसीबत से
दुनिया में वो बारीक रेता बन गए हैं
ईं हवा बा-रूह आमद मुक़्तरिन
चूँ क़ज़ा आयद शवद ज़िश्त-ओ-’अफ़िन
ये हवा जो रूह से वाबस्ता है
जब क़ज़ा आती है तो वबा और गंदी जाती है
आब ख़ुश कू रूह रा हमशीरः शुद
दर ग़दीरे ज़र्द-ओ-तल्ख़-ओ-तीरः शुद
ख़ुशगवार पानी अगरचे रूह का भाई बन गया है
लेकिन गढ़े मैं ज़र्द और कड़वा और गदला हो गया
आतिशे कू बाद दारद दर बुरूत
हम यके बादे बरो ख़्वाँद यमूत
आग जो निहायत सरकश मग़रूर है
यकायक इस पर हवा ''तू मरे'' पढ़ देती है
हाल-ए-दरिया ज़ इज़्तिराब-ओ-जोश-ए-ऊ
फ़ह्म कुन तब्दीलहा-ए-होश-ए-ऊ
दरिया का हाल उस के इज़तिराब-ओ-जोश से
समझ ले। यही उस के होश की तब्दीली है
चर्ख़-ए-सरगर्दाँ कि अंदर जुस्तजूस्त
हाल-ए-ऊ चूँ हाल-ए-फ़रज़ंदान-ए-ऊस्त
सर गर्दां आसमाँ जो जुस्तजू में है
उस की हालत उस के फ़रज़न्दों जैसी है
गह हज़ीज़-ओ-गाह-ए-औसत गाह-ए-औज
अंदरू अज़ सा’द-ओ-नह्से फ़ौज-फ़ौज
कभी हज़ीज़ और कभी औसत, कभी औज
इस में फ़ौज दर फ़ौज साद और नहस हैं
ख़ुद ऐ जुज़्वै ज़ कुल्लुहा मुख़्तलत
फ़ह्म मी कुन हालत-ए-हर मुंबसित
अपने से, ऐ जुज़्व जो कुल से मिला जुला है
हर मुफ़रद की हालत को समझ ले
चूँकि कुल्लियात रा रंजस्त-ओ-दर्द
जुज़्व ईशाँ चूँ न-बाशद रू-ए-ज़र्द
जब कुल्लियात को रंज और दर्द है
तो उन का जुज़्व क्यों ज़र्द चेहरा न होगा
ख़ास्सः जुज़्वै कू ज़ अज़दादस्त जम'
ज़ आब-ओ-ख़ाक-ओ-आतिश-ओ-बादस्त जम'
ख़ुसूसन वो जुज़्व जो अज़दाद का मजमूआ है
पानी और मिट्टी और आग और हवा मजमूआ है
ईं 'अजब न-बुवद कि मेश अज़ गरग जस्त
ईं 'अजब कीं मेश दिल दर गरग बस्त
ये ताज्जुब की बात न होगी कि भेड़, भेड़िए से छूट भागी
ये ताज्जुब है कि भेड़ ने भेड़िए से दिल लगा लिया
ज़िंदगानी आश्ती-ए-ज़िद्दहास्त
मर्ग आँ कंंदर मियान-ए-शाँ जंग ख़ास्त
ज़िंदगी, मुख़ालिफ़ चीज़ों का बाहमी ताल्लुक़ है
मौत ये है कि उनके दरमियान जंग शुरू हो गई
लुत्फ़-ए-हक़ ईं शेर रा-ओ-गोर रा
इल्फ़ दादस्त ईं दो ज़िद दूर रा
अल्लाह का करम है कि शेर और गोरख़र
दो मुख़ालिफ़ों को वफ़ादारी में उलफ़त अता कर दी
चूँ जहाँ रंजूर-ओ-ज़िन्दानी बुवद
चह अजब रंजूर अगर फ़ानी बूद
जब दुनिया बीमार और क़ैदी हो
तो क्या ताज्जुब है अगर बीमार फ़ानी हो
ख़्वाँद बर शेर-ए-ऊ अज़ीं रू पंदहा
गुफ़्त मन पस-मांदःअम ज़ीं बंदहा
उसने शेर को इस किस्म की नसीहतें सुनाईं
बोला में उन रुकावटों की वजह से पीछे रहा हूँ
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