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Sufinama

इज़ाफ़त कर्दन-ए-आदम आँ ज़ल्लत रा ब-ख़्वेशतन कि रब्बना-ज़लमना-ओ-इज़ाफ़त कर्दन-ए-इब्लीस गुनाह-ए-ख़ुद रा ब-ख़ुदा कि बि-मा-अग़्वैतनी

रूमी

इज़ाफ़त कर्दन-ए-आदम आँ ज़ल्लत रा ब-ख़्वेशतन कि रब्बना-ज़लमना-ओ-इज़ाफ़त कर्दन-ए-इब्लीस गुनाह-ए-ख़ुद रा ब-ख़ुदा कि बि-मा-अग़्वैतनी

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    रोचक तथ्य

    اردو ترجمہ: سجاد حسین

    इज़ाफ़त कर्दन-ए-आदम आँ ज़ल्लत रा ब-ख़्वेशतन कि रब्बना-ज़लमना-ओ-इज़ाफ़त कर्दन-ए-इब्लीस गुनाह-ए-ख़ुद रा ब-ख़ुदा कि बि-मा-अग़्वैतनी

    हज़रत-ए-आदम अलैहिस-सलाम का अपनी लग़्ज़िश को अपनी तरफ़ मंसूब करना कि हमारे रब हमने ज़ुल्म और शैतान का अल्लाह ताला की तरफ़ मंसूब करना कि मेरे रब मुझे तूने क्यों गुमराह किया

    कर्द-ए-मा-ओ-कर्द-ए-हक़ हर दो ब-बीं

    कर्द-ए-मा रा हस्त दाँ पैदास्त ईं

    अल्लाह के फे़'ल और हमारे फे़'ल, दोनों को देख

    हमारे फे़'ल को तू मौजूद समझ, ये ज़ाहिर है

    गर न-बाशद फ़े'ल-ए-ख़ल्क़ अंदर मयाँ

    पस ब-गो कस रा चरा कर्दी चुनाँ

    अगर मख़लूक़ का फे़'ल मौजूद हो

    तो किसी को कह कि तूने ऐसा क्यों किया?

    ख़ल्क़-ए-हक़ अफ़'आल-ए-मा रा मूजिदस्त

    फ़े'ल-ए-मा आसार-ए-ख़ल्क़-ए-ईज़दस्त

    अल्लाह की आफ़रीनश हमारे अफ़'आल की मूजिद है

    हमारे फे़अल, अल्लाह की आफ़रीनश के नतीजे हैं

    नातिक़े या हर्फ़ बीनद या ग़रज़

    कै शवद यक दम मुहीत-ए-दो-'अरज़

    इसलिए कि बोलने वाला या हर्फ़ों को देखता है या मतलब को

    एकदम दो हालतों पर कैसे हावी हो सकता है?

    गर ब-मा'नी रफ़्त शुद ग़ाफ़िल ज़ हर्फ़

    पेश-ओ-पस यक दम न-बीनद हेच तर्फ़

    अगर माना की तरफ़ गया, हुरूफ़ से ग़ाफ़िल हुआ

    कोई आँख एकदम आगे और पीछे देख सकती

    आँ ज़माँ कि पेश बीनी आँ ज़माँ

    तू पस-ए-ख़ुद के ब-बीनी ईं बदाँ

    जिस वक़्त तू आगे देखता उस वक़्त

    तू अपने पीछे कब देख सकता है, ये समझ ले

    चूँ मुहीत-ए-हर्फ़-ओ-मा'नी नीस्त जाँ

    चूँ बुवद जाँ ख़ालिक़-ए-ईं हर-दो-आँ

    जब एक जान हुरूफ़ और माना पर हावी नहीं हो सकती है

    तो जान दोनों की ख़ालिक़ कैसे हो सकती है?

    चूँ मुहीत-ए-हर दो आमद पिसर

    वा न-दारद कारश अज़ कार-ए-दिगर

    बेटा! अल्लाह सब पर हावी है

    उस को एक काम दूसरे काम से नहीं रोकता है

    गुफ़्त शैताँ कि बि-मा-अग़्वैतनी

    कर्द फ़े'ल-ए-ख़ुद निहाँ देव-ए-दनी

    शैतान ने कहा कि मुझे क्यों गुमराह किया?

    कमीने शैतान ने अपने फे़'ल को छुपाना

    गुफ़्त आदम कि ज़लमना नफ़्सना

    ज़ फे़'ल-ए-हक़ न-बुद ग़ाफ़िल चु मा

    आदम (अलैहिस्सलाम) ने कहा हम ने अपने ऊपर ज़ुल्म किया

    वो अपने फे़'ल से हमारी तरह ग़ाफ़िल थे

    दर गुनह अज़ अदब पिनहानश कर्द

    ज़ाँ गुनह बर ख़ुद ज़दन बर ब-ख़ूर्द

    उन्होंने गुनाह (के मु'आमला) पर अदब की वजह से उस (अल्लाह के फे़'ल को छुपा लिया

    अपने ऊपर गुनाह ले लेने से उन्हों ने फल खाया

    बा'द-ए-तौब: गुफ़्तश आदम मन

    आफ़रीदम दर तु आँ जुर्म-ओ-मेहन

    तौबा के बाद उन से कहा आदम! क्या मैंने नहीं

    पैदा किया था तुझ में वो जुर्म और मुसीबतें

    कि तक़्दीर-ओ-कज़ा-ए-मन बुदाँ

    चूँ ब-वक़्त-ए-'उज़्र कर्दी आँ निहाँ

    क्या वो मेरी तक़दीर और क़ज़ा थी?

    तूने उज़्र के वक़्त उस को क्यों छुपाया?

    गुफ़्त तर्सीदम अदब न-गुज़ाश्तम

    गुफ़्त मन हम पास आनत दाश्तम

    हज़रत-ए-आदम ने कहा मैं डरा, अदब को छोड़ा

    (अल्लाह ताला) ने फ़रमाया मैंने भी तेरे लिए उस का लिहाज़ रखा

    हर कि आरद हुरमत हुरमत बरद

    हर कि आरद क़ंद लौज़ीनः खुरद

    जो शख़्स ताज़ीम करता है इज़्ज़त पाता है

    जो शख़्स शुक्र लाता है वो बादामी हलवा खाता है

    तय्यइबात अज़ बहर-ए-कि लित-तय्यिबीं

    यार रा बर कश ब-रंजाँ-ओ-ब-बीं

    पाक चीज़ें किस के लिए हैं, पाक लोगों के लिए

    दोस्त को ख़ुश रख, रंजीदा कर और देख

    यक मिसाल दिल प-ए-फर्क़े बयार

    ता ब-दानी जब्र रा अज़ इख़्तियार

    दिल! एक माल फ़र्क़ करने के लिए ला

    ताकि तू जब्र को इख़्तियार से जुदा समझ सके

    दस्त काँ लर्ज़ां बुवद अज़ इर्तिआ'श

    वाँ-कि दस्ते रा तु लर्ज़ानी ज़ जाश

    वो हाथ जो रा'शा से हल रहा है

    और वो हाथ जिसको तू जगह से हिला रहा है

    हर दो जुम्बिश आफ़रीदः-ए-हक़-शनास

    लेक न-तवाँ कर्द ईं बा आँ क़ियास

    दोनों हरकतों को अल्लाह की पैदा-कर्दा समझ

    लेकिन इसको उस पर क़ियास नहीं किया जा सकता है

    ज़ीं पशेमानी कि लर्ज़ानीदियश

    चूँ पशेमाँ नीस्त मर्द-ए-मुर्त'इश

    उस से तो शर्मिंदा है जिसको तूने हिलाया है

    रा'शा वाला इन्सान क्यों शर्मिंदा नहीं है?

    बहस-ए-'अक़्लस्त ईं चे बहस हीलः-गर

    ता ज़'ईफ़े रह बरद आँ-जा मगर

    ये अक़्ली बेहस है, अक़्ल क्या है, हीलागर है

    शायद कोई कमज़ोर (उसके ज़रिया) उस मक़ाम तक पहुँच जाए

    बहस-ए-'अक़्ली गर दुर-ओ-मर्जां बुवद

    आँ दिगर बाशद कि बहस-ए-जाँ बुवद

    अक़्ली बहस, ख़्वाह मोती और मूँगा हो

    रुहानी बहस दूसरी ही चीज़ है

    बह्स-ए-जाँ अंदर मक़ामे दीगरस्त

    बादः-ए-जाँ रा क़वामे दीगरस्त

    रुहानी बहस का मक़ाम दूसरा है

    रुहानी शराब का क़वाम ही दूसरा है

    आँ ज़माँ कि बहस-ए-'अक़्ली साज़ बूद

    ईं 'उमर बा बुल-हकम हमराज़ बूद

    जिस ज़माना में अक़्ली बहस मुहय्या थी

    ये (हज़रत) उमर अबू जहल के साथ हमराज़ थे

    चूँ 'उमर अज़ 'अक़्ल आमद सू-ए-जाँ

    बुल-हकम बू-जहल शुद दर बहस-ए-आँ

    उमर जब अक़्ल से रूह की तरफ़ आए

    उनकी बहस में बुलहकम अबू जहल बन गया

    सू-ए-हिस्स-ओ-सू-ए-'अक़्ल कामिलस्त

    गरचे ख़ुद निस्बत ब-जाँ जाहिलस्त

    अक़्ल और हवास के ए'तिबार से वो पूरा है

    अगरचे रूह के ए'तिबार से वो जाहिल है

    बहस-ए-'अक़्ल-ओ-हिस्स असर दाँ या सबब

    बहस-ए-जानी या 'अजब या बुल-'अजब

    अक़्ली और हिस्सी बहस को असर या सबब समझ

    रुहानी बहस या अजीब है या उस से भी बढ़कर है

    ज़ौ-ए-जाँ आमद न-मांद मुस्तज़ा

    लाज़िम-ओ-मल्ज़ूम-ओ-नाफ़ी मुक़्तज़ा

    रोशनी के तालिब! रूह का नूर जब आया

    लाज़िम और मलज़ूम और नाफ़ी मुक़तज़ी रहे

    ज़ाँ-कि बीना रा कि नूरश बाज़िग़ अस्त

    अज़ दलील-ए-चूँ 'असा बस फ़ारिग़ अस्त

    इसलिए कि वो बीना जिसकी रोशनी चमक रही है

    लाठी और लाठी पकड़ने वाले से बे-नियाज़ है

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