तफ़्सीर-ए-व-हुवा मा'कुम ऐनमा कुंतुम
वो तुम्हारे साथ है जहाँ भी तुम हो'' आयत की तफ़सीर और उस का बयान
बार-ए-दीगर मा ब-क़िस्सा आमदेम
मा अज़ाँ क़िस्सा बरूँ ख़ुद के शुदेम
हम फिर क़िस्सा की तरफ़ लौटते हैं
हम इस क़िस्सा से बाहर ही कब निकले हैं
गर ब-जहल आएम आँ ज़िंदान-ए-ऊस्त
वर ब-’इल्म आएम आँ ऐवान-ए-ऊस्त
अगर हम जहल में मतबला हैं तो वो उसका क़ैदख़ाना हैं
अगर इल्म से बहरावर हों, वो उस का महल है
वर ब-ख़्वाब आएम मस्तान-ए-वय-एम
वर ब-बेदारी ब-दस्तान-ए-वय-एम
अगर हम सो जाएँ, तो हम उस के मस्त हैं
अगर बेदार हैं, तो उस के दास्ताँ-गो हैं
वर ब-गरीएम अब्र-ए-पुर ज़र्क़ वय-एम
वर ब-ख़ंदेम आँ ज़माँ बर्क़ वय-एम
अगर हम रोएँ तो उस का साफ़ पानी भरा अब्र हैं
अगर हम हँसें तो उस वक़्त हम उस की बिजली हैं
वर बख़्शम-ओ-जंग ’अक्स-ए-क़हर-ए-ऊस्त
वर ब-सुल्ह-ओ-’उज़्र ’अक्स-ए-मेहर-ए-ऊस्त
अगर गु़स्सा और लड़ाई में हैं तो उस के क़हर के पर्तो हैं
अगर सुलह और मा'ज़रत में हैं तो उस की महर का पर्तो हैं
मा कियम अंदर जहन-ए-पेच-पेच
चूँ अलिफ़-ए-ऊ ख़ुद चे दारद हेच-हेच
इस पेच दर पेच दुनिया में हम क्या हैं?
अलिफ़ की तरह हैं जिस के पास कुछ नहीं है
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