ता'ज़ीम-ए-ना'त-ए-मुस्तफ़ा 'अलैहिस्सलाम कि मज़कूर बुवद दर इंजील
आँ-हुज़ूर की ता’ज़ीम की ता’रीफ़ जो इंजील में थी
बूद दर इंजील नाम-ए-मुस्तफ़ा
आँ सर-ए-पैग़म्बराँ बहर-ए-सफ़ा
मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम) का नाम इंजील में था
जो पैग़म्बरों के सरदार और सफ़ा के समुंद्र हैं
बूद ज़िक्र-ए-हुलियः-हा-ओ-शक्ल-ए-ऊ
बूद ज़िक्र-ए-ग़ज़्व-ओ-सौम-ओ-अक्ल-ए-ऊ
उनके हुलिया और शक्ल का ज़िक्र था
उनके जिहाद और रोज़े और खाने का ज़िक्र था
ताइफ़ः-ए-नस्रानियाँ बहर-ए-सवाब
चूँ रसीदंदे बदाँ नाम-ओ-ख़िताब
’ईसाइयों की एक जमा’अत सवाब के लिए
जब उस नाम और ख़िताब पर पहुँचते
बोस: दादंदे बराँ नाम-ए-शरीफ़
रू निहा-दंदे बदाँ वस्फ़-ए-लतीफ़
उस मुतबर्रक नाम को बोसा देते
उस पाक ता’रीफ़ पर मुँह रख देते
अंदरीं फ़ित्नः कि गुफ़्तेम आँ गिरोह
ऐमन अज़ फ़ित्नः बुदंद-ओ-अज़ शिकोह
उस क़िस्सा में जिस गिरोह का मैंने ज़िक्र किया है
वो ख़ौफ़-ओ-ख़तर से बे-ख़ौफ़ था
ऐमन अज़ शर्र-ए-अमीरान-ओ-वज़ीर
दर पनाह-ए-नाम-ए-अहमद मुस्तजीर
सरदारों और वज़ीर के शर्र से मुत्म’इन
और अहमद (सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम) का नूर साथी और मदद-गार बन गया
नस्ल-ए-ईशाँ नीज़ हम बिसयार शुद
नूर-ए-अहमद नासिर आमद यार शुद
उनकी नस्ल भी ज़्यादा हो गई
(और) अहमद (सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम) का नूर साथी और मदद-गार बन गया
वाँ गिरोह-ए-दीगर अज़ नस्रानियाँ
नाम-ए-अहमद दाश्तंदे मुस्तहाँ
लेकिन ’ईसाइयों का दूसरा गिरोह
अहमद (सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम) के नाम की बे-हुरमती करता था
मुस्तहान-ओ-ख़्वार गश्तन्द अज़ फ़ितन
अज़ वज़ीर-ए-शूम रा-ए-शूम फ़न
वो फ़ित्नों की वजह से ज़लील-ओ-ख़्वार हो गए
बद राय और बद-कार वज़ीर के
हम मुख़ब्बत दीन-ए-शॉं-ओ-हुक्म-ए-शॉं
अज़ प-ए-तूमार-हा-ए-कझ़ बयाँ
उनका मज़हब और उनका क़ानून भी तह-ओ-बाला हो गया
कज-बयान दफ़्तरों की वजह से
नाम-ए-अहमद ईं चुनीं यारी कुनद
ता कि नूरश चूँ निगह-दारी कुनद
अहमद (सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम) का नाम जब इस तरह मदद करता है
तो उनका नूर किस क़दर मदद कर सकता है
नाम-ए-अहमद चूँ हिसारे शुद हसीं
ता चे बाशद ज़ात-ए-आँ रूहुल-अमीं
अहमद (सल्लल्लाहु ’अलैहि व-सल्लम का नाम जब मज़बूत क़िला’ बना
तो उस रूहुल-अमीन की ज़ात किस दर्जा की होगी
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