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सलाम कर्दन-ए-रसूल-ए-रूम अमीर-उल-मोमिनीन रा रज़ी-अल्लाहु 'अन्हु

रूमी

सलाम कर्दन-ए-रसूल-ए-रूम अमीर-उल-मोमिनीन रा रज़ी-अल्लाहु 'अन्हु

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    रोचक तथ्य

    हिंदी अनुवाद: सज्जाद हुसैन

    सलाम कर्दन-ए-रसूल-ए-रूम अमीर-उल-मोमिनीन रा रज़ी-अल्लाहु 'अन्हु

    हज़रत-ए-उमर का क़ैसर रुम के एलची से बात करना और रुम के एलची का हज़रत-ए-उमर से सवाल करना

    कर्द ख़िदमत मर 'उमर रा-ओ-सलाम

    गुफ़्त पैग़म्बर सलाम आँगः कलाम

    उस ने (हज़रत-ए- उमर की ताज़ीम की और सलाम किया

    पैग़ंबर (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया है पहले इस्लाम फिर कलाम

    पस 'अलैकश गुफ़्त-ओ-ऊ रा पेश ख़्वांद

    ऐमनश कर्द-ओ-ब-पेश-ए-ख़ुद न-शांद

    फिर (हज़रत उमर ने) असको वालैकि कहा आगे बुलाया

    उस को मुतमइन किया और अपने पास बिठाया

    ला-तख़ाफ़ू हस्त नुज़्ल-ए-ख़ाइफ़ाँ

    हस्त दर ख़ुर अज़ बराए ख़ाइफ़ आँ

    डरने वालों की मेहमानी का खाना''न डरो'' है,

    और उस से डरने वालों के लाइक़ (ख़ुशख़बरी) है

    हर कि तर्सद मर्व रा ऐमन कुनंद

    मर दिल-ए-तर्संदः रा साकिन कुनंद

    जो डरता है उसको मुतमइन करते हैं

    जिसका दिल डरे उस को तसकीन देते हैं

    आँ-कि ख़ौफ़श नीस्त चूँ गोई म-तर्स

    दर्स चे देही नीस्त मुहताज-ए-दर्स

    जिसको डर हो, उसको ''न डर'' तो कैसे कहेगा?

    सबक़ क्या सिखाता है वो सबक़ का ज़रूरतमन्द नहीं है

    आँ दिल अज़ जा रफ़्तः रा दिल-शाद कर्द

    ख़ातिर-ए-वीरानश रा आबाद कर्द

    उस की बर्बाद तबीयत को आबाद कर दिया

    उस घबराए हुए को ख़ुश कर दिया

    बा'द अज़ आँ गुफ़्तश सुख़न-हा-ए-दक़ीक़

    वज़ सिफ़ात-ए-पाक-ए-हक़ ने'मुर्रफ़ीक़

    उसके बाद उन्होंने उस से बारीक बातें कीं

    अल्लाह पाक की सिफ़ात के बारे में जो बेहतरीन रफ़ीक़ है

    वज़ नवाज़िश-हा-ए-हक़ अब्दाल रा

    ता ब-दानद मक़ाम-ओ-हाल रा

    और औलिया पर अल्लाह ताला की नवाज़िशों के बारे में

    ताकि वो मुक़ाम और हाल को समझ जाएँ

    हाल चूँ जल्वः अस्त ज़ाँ ज़ेबा 'अरूस

    वीं मक़ाम आँ ख़ल्वत आमद बा-'अरूस

    हाल, गोया उस हसीन दुल्हन का जलवा है

    और मुक़ाम, दुल्हन के साथ ख़लवत है

    जल्वः बीनद शाह-ओ-ग़ैर-ए-शाह नीज़

    वक़्त-ए-ख़ल्वत नीस्त जुज़ शाह-ए-'अज़ीज़

    जलवा तो शाह और शाह के ग़ुलाम (भी) देखते हैं

    लेकिन ख़लवत के वक़्त बाइज़्ज़त बादशाह के सिवा कोई नहीं

    जल्वः कर्दः 'आम-ओ-ख़ासाँ रा 'अरूस

    ख़ल्वत अंदर शाह बाशद या 'अरूस

    दुल्हन अवाम और ख़वास को जलवा दिखाई है

    दुल्हन के साथ ख़लवत में (सिर्फ़) बादशाह होता है

    हस्त बिसयार अहल-ए-हाल अज़ सूफि़याँ

    नादिरस्त अहल-ए-मक़ाम अंदर मयाँ

    सूफ़ियों में अहल-ए-हाल बहुत हैं

    उन में साहब-ए-मुक़ाम कम हैं

    अज़ मनाज़िल-हा-ए-जानश याद दाद

    वज़ सफ़र-हा-ए-रवानश याद दाद

    उस को जान की मंज़िलें बतलाएँ

    और उस को रूह के सफ़र याद दिलाए

    वज़ ज़माने कज़ ज़माँ ख़ाली बुदस्त

    वज़ मक़ाम-ए-क़ुद्स कि अजलाली बुदस्त

    उस ज़माना की याद दिलाई जो (कै़द)-ए- ज़माँ से ख़ाली था

    और उस मुक़ाम-ए-कुदुस की जो जलाली है

    वज़ हवा-ए-कन्दर-ओ-सीमुर्ग़-ए-रूह

    पेश अज़ीं दीदस्त परवाज़-ओ-फ़ुतूह

    और उस हवा की जिसमें रूह के सीमुरग़ ने

    इस से पहले ख़ुशी की परवाज़ देखी है

    हर यके परवाज़श अज़ आफ़ाक़ बेश

    वज़ उम्मीद-ओ-नहमत-ए-मुश्ताक़ बेश

    उस की हर एक परवाज़ आलम से बढ़ी हुई थी

    मुश्ताक़ की उम्मीद और क़सद से बढ़ी हुई थी

    चूँ 'उमर अग़्यार रू रा यार याफ़्त

    जान-ए-ऊ रा तालिब-ए-असरार याफ़्त

    जब (हज़रत)-ए-उमर ने बेगाना सूरत को यार पाया

    और उस की तबीयत को असरार का तालिब पाया

    शैख़-ए-कामिल बूद-ओ-तालिब मुश्तही

    मर्द-ए-चाबुक बूद-ओ-मर्कब दर गही

    शेख़ कामिल था, और तालिब पुर शौक़

    सवार होशियार था, और सवारी तैयार

    दीद आँ मुर्शिद कि इरशाद दाश्त

    तुख़्म-ए-पाक अंदर ज़मीन-ए-पाक काश्त

    मुर्शिद ने देखा कि वो इस्ते'दाद रखता है

    पाक बीज पाक ज़मीन में बो दिया

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