सवाल कर्दन-ए-रसूल अज़ 'उमर अज़ सबब-ए-इब्तिला-ए-अर्वाह बा-ईं आब-ओ-गिल अज्साद
रुम के एलची का हज़रत-ए-उमर से रूहों के इस आप-ओ-गिल के जिस्म में मुबतला होने का सबब पूछना
गुफ़्त या-’उमर चे हिकमत बूद-ओ-सिर्र
हब्स-ए-जाँ साफ़ी दरीं जा-ए-कदिर
(हज़रत)-ए-उमर से बोला क्या हिकमत और क्या राज़ था?
इस मसफ़्फ़ा चीज़ को इस मुक़द्दर मिट्टी में क़ैद करने का
आब-ए-साफ़ी दर गिले पिन्हाँ शुद:
जान-ए-साफ़ी बस्तः-ए-अबदाँ शुदः
साफ़ पानी, मिट्टी में छिपा हुआ है
मुसफ़्फ़ा रूह जिस्मों से वाबस्ता हो गई
गुफ़्त तू बहसे शगर्फे़ मी-कुनी
मा’नी-ए-रा बंद-ए-हर्फ़े मी-कुनी
(हज़रत-ए-उमर ने कहा तू अजीब बहस कर रहा है
माना को लफ़्ज़ों में क़ैद कर रहा है
हब्स कर्दी मा'नी-ए-आज़ाद रा
बंद हर्फ़े कर्दः-ए-तू बाद रा
आज़ाद माना को तूने क़ैद कर दिया
आवाज़ को भी तू ने लफ़्ज़ों का पाबंद कर दिया
अज़ बरा-ए-फ़ाइदः ईं कर्दः-इ
तू कि ख़ुद अज़ फ़ाइदः दर पर्दः-इ
तू ने फ़ायदा के लिए ये किया है
हालाँकि तू ख़ुद फ़ायदा से हिजाब में है
आँ-कि अज़ वै फ़ाइदः ज़ाइदः शुद
चूँ न-बीनद आँ-चे मा रा दीदः शुद
जिस ज़ात से वो फ़ायदा पैदा हुआ है
वो उस को क्यों न देखेगा जिसको हमने देखा है
सद हज़ाराँ फाइदः अस्त-ओ-हर यके
सद हज़ाराँ पेश-ए-आँ यक अंदके
लाखों फ़ायदे हैं
और उन में से एक के सामने लाखों फ़ायदे कम हैं
आँ दम-ए-नुत्क़त कि जुज़्व-ए-जुज़्व-हास्त
फ़ाइदः शुद कुल्ल-ए-कुल ख़ाली चरास्त
तेरी गोयाई जो जुज़्वों का जुज़्व है
मुफ़ीद हुई, तो कुल का कुल ख़ाली क्यों है?
तू कि जुज़्वी कार-ए-तू बा फ़ाइदः अस्त
पस चरा दर ता'न-ए-कुल आरी तु दस्त
तू जो कि एक जुज़्व है, तेरा काम बाफ़ायदा है
फिर तू कुल पर तानाज़नी के लिए क्यों आमादा होता है?
गुफ़्त रा गर फ़ाइदः न-बुवद म-गो
वर बुवद हल-ए-ए’तिराज़-ओ-शुक्र जू
बोलने में अगर फ़ायदा न हो तो न बोल
अगर हो तो एतिराज़ छोड़ दे और शुक्र ये अदा कर
शुक्र-ए-यज़्दाँ तौक़-ए-हर गर्दन बुवद
ने जिदाल-ओ-रू-तुर्श कर्दन बुवद
अल्लाह का शुक्र हर गर्दन में तौक़ की तरह होना चाहिए
न कि झगड़ा और मुंह बिगाड़ना
गर तुर्श-रू बूदन आमद शुक्र-ओ-बस
पस चु सिर्कः शुक्र गोए नीस्त कस
अगर तुर्श रू होना ही सिर्फ शुक्र है
तो सिरका का सा शुक्र गुज़ार कोई नहीं है
सर्क रा गर राह बायद दर जिगर
गो ब-शौ सर कंगबीं ऊ अज़ शकर
अगर सिरका को जिगर में जाने का रास्ता चाहिए
कह दो, शकर से मिलकर सिकंजीं बने
मा'नी अंदर शे'र जुज़ बा-ख़ब्त नीस्त
चूँ फ़लासंगस्त अंदर ज़ब्त नीस्त
शेअर में माना बयान करना बग़ैर गड़-बड़ (मुम्किन) नहीं है
जंगल के पत्थरों की तरह है उनका ज़ब्त करना मुम्किन नहीं है
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.