सूर-परकास तहँ रैन कहँ पाइये
रैन-परकास नही सूर भासै
ज्ञान-परकास ज्ञान कहँ पाइये
होय अज्ञान तहँ ज्ञान नासै
काम बलवान तहँ प्रेम कहँ पाइये
प्रेम जहाँ होय तहँ काम नाही
कहै 'कबीर' यह सत्त विचार है
समझ विचार कर देख माँही
जहाँ सूरज की रौशनी फैली हुई है वहाँ रात कहाँ मिलेगी. और जहाँ रात का अंधेरा है वहाँ सूरज नहीं दिखाई देगा. ज्ञान की रौशनी में अज्ञान कहाँ मिलेगा और अज्ञान के अंधेरे में ज्ञान कि ज्योति नहीं दिखाई देगी. जहाँ वासना प्रबल है वहाँ प्रेम का पता नहीं और जहाँ प्रेम है वहाँ वासना का अस्तित्व नहीं. ‘कबीर’ कहते हैं कि सच्चा विचार यही है.
पकड़ समसेर संग्राम में पैसिये
देह-परजंत कर जुद्ध भाई
काट सिर बैरियाँ दाब जँह-का-तहाँ
आय दरबार में सीस नवाई
तलवार हाथ में लेकर रणक्षेत्र में उतरो और तब तक लड़ते रहो जब तक जान में जान है. दुश्मन का सर काट कर उसका कम तमाम करो, फिर मालिक के दरबार में आकर अपना सर झुका दो.
सुर संग्राम को देख भागै नहीं
देख भागै सोई सूर नहीं
काम और क्रोध मद-लोभ से जूझना
मचा घमसान तन-खेत माँहीं
सील और साँच संतोष साही भय
नाम समसेर तहाँ खूब बाजे
कहै 'कबीर' कोई जूझिहै सूरमा
कायराँ भीड़ तहँ तुर्त भाजे
वो रणक्षेत्र को देखकर घबराते नहीं और भागने वाले बहादुर नहीं होते. शरीर और प्राण के संग्राम में क्या घमासान लड़ाई हो रही है. काम, क्रोध, मद और लोभ मुक़ाबले पर खड़े हुए हैं. धीरज, संतोष और सत्य के राज्य में तलवार का नाम ऊँचा हो जाता है. ‘कबीर’ कहते हैं कि जब कोई सूरमा लड़ाई के लिए निकलता है तो कायरों की सेना पीठ दिखा कर भाग जाती है.
साध को खेल तो बिकट बेंड़ा मती
सती और सूर की चाल आगे
सूर घमसान है पलक दो-चार का
सती घमासान पल एक लागै
साध संग्राम है रैन-दिन जूझना
देह परजंत का काम भाई
सत्य की खोज करने वाले का संघर्ष बहुत कठिन है. सती और सुरमा की तुलना में इसका वचन निभाना ज़्यादा कठिन होता ह. सूरमा की लड़ाई दो-चार घंटे चलती है, सती का संघर्ष एक पल में समाप्त हो जाता है, परंतु सत्य को खोजने वाला दिन-रात संघर्ष करता है. उसकी लड़ाई जीवन के अंतिम क्षण तक चलती रहती है.
(अनुवाद: सरदार जाफ़री)
- पुस्तक : कबीर समग्र (पृष्ठ 768)
- रचनाकार :कबीर
- प्रकाशन : हिन्दी प्रचारक पब्लिकेशन प्रा.लि., वाराणसी (2001)
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