ख़ुद तजल्ली कर्द बर ख़ुद आँ बुत-ए-अ'य्यार-ए-मा
ख़ुद तजल्ली कर्द बर ख़ुद आँ बुत-ए-अ'य्यार-ए-मा
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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ख़ुद तजल्ली कर्द बर ख़ुद आँ बुत-ए-अ'य्यार-ए-मा
शाहिद-ए-रु-ए-ख़ुद आमद यार-ए-गुल-रुख़्सार-ए-मा
हमारे उस चतुर प्रेमी ने ख़ुद अपने आप पर अपनी तजल्ली दिखाई
मगर फूल जैसे चेहरे वाले हमारे महबूब पर वो ख़ुद आशिक़ हो गया
मुक़्तज़ा-ए-हुस्न बाशद जल्वः-गर बूदन ब-ख़ुद
मेहर-ओ-मह दर आईनः-बीं शाहिद-ए-गुफ़्तार-ए-मा
अपने हुस्न को दिखाना हुस्न का तक़ाज़ा होता है
हमारे इस दा’वे की सच्चाई को चाँद और सूरज के आईने में देखो
या-रब ईं रू नूर-ए-ताबानस्त या अफ़सून-ओ-सेह्र
कज़ तिलिस्म-ए-जादू-अश दीवान: शुद हुश्यार-ए-मा
ऐ ख़ुदा! ये चेहरा कोई रौशन नूर है या कोई जादू
जिसके मंत्रों से हमारा होशयार, दीवाना हो गया
मू-ए-ऊ गेसू-ए-मुश्कीनस्त या दुक्कान-ए-इ’त्र
शुद पुर-अज़ बू-ए-दिल-आवेज़िश सर-ए-अ’त्तार-ए-मा
उस की ज़ुल्फ़ ख़ुशबूदार बाल हैं या कोई ‘इत्र की दुकान
कि जिसकी महक से हमारे ’अत्तार का दिमाग़ ख़ुशबूदार हो गया
हुस्न-ए-ख़ुद न-गुज़ाश्त ता बीनद ब-सू-ए-मा-सिवा
ता ब-यायद सू-ए-मा आँ यार-ए-ख़ुश-रफ़्तार-ए-मा
उसने अपने हुस्न को न छोड़ा ताकि वो मासिवा की तरफ़ मुतवज्जुह हो
ताकि हमारा वो ख़ुश-ख़िराम महबूब हमारी तरफ़ आए
बस कि मुज्मल यक निगाहे सू-ए-मा हम कर्दः-बूद
गो ब-इस्तिस्ना न-कर्दः रू-ब-इस्तिहज़ार-ए-मा
हाँ कि मुज्मलन उसने एक निगाह हमारी तरफ़ भी की थी
अगरचे उसने इस्तिस्ना के साथ हमारे सामने ज़ुहूर नहीं किया था
मुख्तफ़ी दर ज़ात-ए-ऊ बूदेम चूँ रोग़न ब-शीर
सिर्र-ए-ख़ुद मी-दीद-ओ-आमद बर सर-ए-असरार-ए-मा
हम उस की ज़ात में इस तरह गुम थे जैसे दूध में रौग़न वो अपने राज़ को देख रहा था और हमारे राज़ों की पर्दा-दरी करने लिए आया
अज़ अज़ल चूँ बर्क़ ब-गुज़श्त अज़ रह-ए-मुल्क-ए-ज़ुहूर
दीद-ए-बिल-इज्माल नक़्द-ओ-जिंस ईं बाज़ार-ए-मा
ज़ुहूर की मम्लकत के रास्ते वो अ’ज़ल में बर्क़ की तरह गुज़रा
उसने इजमाली पर हमारे इस बाज़ार (दुनिया) के नक़्द-ओ-जिन्स का मुशाहिदा किया
बूद शाख़-ओ-बर्ग-ओ-गुल दर तुख़्म-ए-ज़ातश मुंदमिज
दर तमाशा-ए-ख़ुदश शुद सैर-ए-ईं-गुलज़ार-ए-मा
उस की ज़ात के तुख़्म मैं शाख़-ओ-बर्ग और फूल शामिल थे
ख़ुद अपना तमाशा देखने के लिए उसने हमारे चमन की सैर की
बे-तअ’य्युन बूद कुंज-ए-मख़्फ़ी अंदर कुंज-ए-ग़ैब
दर तअ'य्युन आमद आँ गंजीनः-ए-असरार-ए-मा
ग़ैब के गोशे में बग़ैर किसी तशख़्ख़ुस-ओ-त’अय्युन के उस की ज़ात पोशीदा ख़ज़ाना थी असरार का हमारा वो ख़ज़ाना दुनिया में तशख़्ख़ुस-ओ-त’अय्युन के साथ ज़ाहिर न हुआ
जलव:-ए-नूरे नुमूद-ओ-नूर-ए-अहमद नाम साख़्त
बस बुवद अहमद अहद अज़ रू-ए-ईं गुफ़्तार-ए-मा
उसने अपने नूर का एक जल्वा दिखाया और उस का नाम अहमद रखा
फिर हमारे अनुसार अहमद ही अहद हुआ
अज़ तअ'य्युन अव्वल-ओ-वहदत बयाने कर्द:-अम
ऐ 'नियाज़' आवर ब-गोश ईं गौहर-ए-शहवार-ए-मा
सावधानी से मैंने एकत्व और एकत्व की प्रतिज्ञा का वर्णन किया है
ऐ ‘नियाज़’ हमारे इन क़ीमती मोतियों को अपने कानों में भर ले
- पुस्तक : दीवान-ए-नियाज़-ए-बे-नियाज़ (पृष्ठ 26)
- संस्करण : First
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