दोश दीदम कि मलाएक दर-ए-मय-ख़ान: ज़दंद
दोश दीदम कि मलाएक दर-ए-मय-ख़ान: ज़दंद
गिल-ए-आदम ब-सरिश्तंद-ओ-ब-पैमान: ज़दंद
मधुशाला में दस्तक दे कर पिछली रात फ़रिश्तों ने
आदम की मिट्टी को मथ कर बना दिया रस का प्याला
साकिनान-ए-हरम-ए-सिर्र-ए-अ'फ़ाफ़-ए-मलकूत
बा मन-ए-राह-नशीं बादः-ए-मस्तानः ज़दंद
उस रहस्यमय देवलोक के महलों के बाशिंदों ने
मुझ जैसे पथवासी जन को दिया मस्त मद का प्याला
आसमाँ बार-ए-अमानत न-तवानिस्त कशीद
क़ुरअः-ए’-फ़ाल बनाम-ए-मन-ए-दीवान: ज़दंद
आसमान भी झेल न पाया बोझ, प्रेम की धाती को
पासा जब फेंका तो उसमें मुझ पगले का भाग्य जगा
मा ब-सद ख़िर्मन-ए-पिंदार ज़े रह चूँ न-रवेम
चूँ रह-ए-आदम-ए-ख़ाकी ब-यके दानः ज़दंद
एक अन्न के दाने पर जब फिसल गए आदम के पैर
दंभों के खलिहान बीच रह कर हम क्युँ न भटक जाएं
आतिश आँ नीस्त कि बर शो'लः-ए-ऊ खन्दद शम्अ'
आतिश आँ अस्त कि दर ख़िरमन-ए-परवान: ज़दंद
जिसकी लौ पर इतराता है दीपक, वो तो आग नहीं
आग वही है जो पतंग के अन्तस्तल में जलती है
जंग-ए-हफ़्ताद-ए-दो-मिल्लत हम: रा उ’ज़्र बनेह
चु न-दीदंद हक़ीक़त रह-ए-अफ़्सानः ज़दंद
सत्तर पर दो और बहत्तर जाति-पाति के झगड़े हैं
और करें क्या, दूर सत्य से और रूढ़ी के जकड़े हैं
शुक्र-ए-एज़द कि मियान-ए-मन-ओ-ऊ सुल्ह फ़िताद
हूरियाँ रक़्स-कुनाँ सग़र-ए-शुक्रानः ज़दंद
सुलह हो गई मुझमें उसमें, धन्यवाद है ईश्वर का
इसी ख़ुशी में मदिरा पीकर लगी नाचने अप्सरियाँ
कस चू 'हाफ़िज़' न-कशीद अज़ रूख़-ए-अंदेश: नक़ाब
ता सर-ए-ज़ुल्फ़-ए-अ'रूसान-ए-सुख़न शान: ज़दंद
काव्य-सुंदरी लगी सँवरने जिस दिन से इस जगती में
‘हाफ़िज़’ जैसा उठा न पाया कोई भी घूँघट उसका
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