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जादू-निगहे राह-ज़ने चश्म-ए-सियाहे

अशरफ़

जादू-निगहे राह-ज़ने चश्म-ए-सियाहे

अशरफ़

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    जादू-निगहे राह-ज़ने चश्म-ए-सियाहे

    आराम-रुबा-ए-बुत-ए-सर-मस्त-ए-ख़ुमारे

    मेरा प्रिय वह है जिसके नेत्र मार्गदर्शी हैं और जिसकी आँखें श्यामल हैं, वह शांति और संतोष को नष्ट करने वाला, सदा मत्त रहने वाला है।

    बे-दाद-गरे कज-रविशे तुर्फ:-अदाए

    आतिश-फ़िगने माह-विशे लाल:-इ'ज़ारे

    वह अत्याचारी, टेढ़े मार्ग पर चलने वाला और अनोखी अदा रखने वाला है, वह ज्वाला बरसाने वाला, चाँद-सा सुंदर और लाल-कमल-सा मुख वाला है।

    ताज़:-चमने गुल-बदने कब्क-ख़रामे

    आहू-नज़रे फ़ित्न:-सरे रश्क-ए-बहारे

    वह ताज़ा उपवन-सा, गुलाब-सा काया वाला और ललित गति से चलने वाला है, वह मनोहर नेत्रों वाला, उपद्रव-सा और वसन्त का ईर्ष्याजनक रूप है।

    ज़हरा-सिफ़ते शम्अ'-रूख़े नग़्म:-सराए

    तन्नाज़-जवाने सनमे-नुक्त:-गुज़ारे

    वह शुक्र-तारा-सा, दीपक-मुख और राग का रचयिता है, वह नाज़-नखरों से भरपूर और सूक्ष्म बिन्दुओं को जन्म देने वाला प्रतिमा है।

    पुर्सीद चू 'अशरफ़' कि तुई ख़ल्क़-फ़रेबे

    अज़ राह-ए-तबख़्तुर-सुख़्ने गुफ़्त कि आरे

    जब अशरफ़ ने उससे पूछा—“क्या तू जगत को छलता है?,तो उसने नखरों के साथ उत्तर दिया—“हाँ।”

    स्रोत :
    • पुस्तक : नग़्मात-ए-सिमा (पृष्ठ 385)
    • प्रकाशन : नूरुलहसन मौदूदी साबरी (1935)

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